दाऊदनगर से करसारा के प्रमोद कुमार सिंह के यहाँ

10 मार्च 23

गूगल मैप था या प्रेमसागर की पगडण्डी के रास्ते चल कर शॉर्टकट तलाशने की प्रवृत्ति; कह नहीं सकते। दाऊदनगर से बरास्ते गोह सीधा साट रास्ता था गया का। मैप के हिसाब से 71 किमी। प्रेमसागर पगडण्डी पकड़ कर चल दिये। कोई प्वाइण्ट पगडण्डी पर आया होगा कि गूगल उन्हें गोह होते सीधे रास्ते की बजाय रफीगंज की ओर जाने को दिखाने लगा।

मैंने पौने आठ बजे उनसे बात की थी। उन्ही का फोन आया था। उसके बाद उन्होने अपनी लोकेशन शेयर की। उससे लगा था कि वे 2 किमी अलग चले थे, पर मेरा अंदाज था कि वे कोर्स करेक्शन कर सही रास्ते चलेंगे। उसके बाद बात नहीं हुई और पगडण्डी के रास्ते उनकी लोकेशन भी अपडेट नहीं हुई। शाम चार बजे के बाद देखा तो वे रफीगंज से कुछ किमी पीछे थे। अर्थात रास्ता बदल चुके थे। वाया रफीगंज गया 82 किमी पड़ता है दाऊदनगर से। उन्हें रास्ता बदलना 11 किमी अतिरिक्त चलायेगा!

पर जो हुआ, अच्छा ही हुआ। पगडण्डी के रास्ते ज्यादा लोग मिले, ज्यादा अनुभव। और अंत में एक सज्जन प्रमोद कुमार सिंह जी ने बड़े आदर से अपने घर रात गुजारने को रोका। “जै सियाराम जी! बाबा यहां चरन रखे मेरे यहां सब ऊपर वाले की किरपा है। मेरे धन्य भाग कि रास्ता चलते बाबाजी मेरे यहां पंहुचे। मेरा नाम प्रमोद कुमार सिंह है। गांव करसारा। ओबरा-रफीगंज रास्ते पर रफीगंज से पांच किलोमीटर पहले है।” – प्रमोद जी ने मुझे फोन पर कहा। प्रेमसागर ने जगह और मेजबान का नाम खुद बताने की बजाय फोन ही उनके हाथ दे दिया था। जिस श्रद्धा से प्रमोद जी ने जै सियाराम कहा, उससे मेरे प्रति उनकी श्रद्धा और प्रेम, दोनो प्रकट हो रहे थे। ज्यादा चलना हुआ तो हुआ; पर अच्छी बात यह हुई कि प्रमोद जी का आतिथ्य मिला।

गिरींद्रनाथ झा की पुस्तक “इश्क में माटी सोना” का एक स्क्रीनशॉट

रास्ते में लोगों से हुई बात में प्रेमसागर ने बताया कि लोग सम्पन्न मिले। मकान पक्के और बड़े। ज्यादातर के घर से कोई न कोई परदेश में है। शिक्षा का स्तर अच्छा है। लोग बच्चों को पढ़ा-लिखा कर बाहर जाने को प्रेरित करते हैं और इस बात को फख्र से बताते हैं कि उनका बेटा फलाँ जगह पर है।

मुझे ट्विटर-मित्र गिरींद्रनाथ झा की याद हो आई। पुस्तक “इश्क में माटी सोना” में जिक्र है कि उनके पिताजी हमेशा उनको पढ़ लिख कर बिहार से बाहर जाने की कहते रहे। शायद लोग ज्यादातर गिरींद्र के पिताजी की तरह हैं! अपने बेटे को दिल्ली-बम्बई-परदेश जाने को प्रेरित करने वाले। गांवगिरांव के लोग रूमानियत नहीं, ठोस अर्थशास्त्र पर जीते हैं। असुविधा में जी कर भी बेटे को बाहर भेजते हैं। और उस सोच का अच्छा परिणाम भी यहां दिखा – दाऊदनगर के पास गांव की अपेक्षाकृत सम्पन्नता में, जो प्रेमसागर ने बताई।

बाहर रह रहे बेटे यहां की डिजिटल मनी ट्रांसफर इकॉनॉमी से परिदृश्य बदल रहे होंगे, पर गिरींद्रनाथ की तरह रीवर्स माइग्रेशन कर बिहार के आसपास के इलाके को ट्रांसफार्म कर यहां का सोशियो-इकनॉमिक डेवलेपमेण्ट कर रहे होंगे? मुझे नहीं लगता। उत्कृष्टता के द्वीप कम ही हैं बिहार में। अन्यथा आंकड़े कुछ और बताते।

नदी-नहर-खेत-खलिहान के ढेरों चित्रों की बजाय पगडण्डी का वह साधारण सा चित्र मुझे भा गया जो प्रेमसागर ने राह चलते क्लिक किया था।

नदी-नहर-खेत-खलिहान के ढेरों चित्रों की बजाय पगडण्डी का वह साधारण सा चित्र मुझे भा गया जो प्रेमसागर ने राह चलते क्लिक किया था। पगडण्डी सही में घुमक्कड़ी है। मेरा बस चले तो प्रेमसागर दूरी न नापें। यात्रा-आनंद तलाशें। यह न गिनें कि कितने शक्तिपीठ पूरे हुये। यह देखें कि पगडण्डी कैसी है और कितने प्रमोद सिंह जैसे जै सियाराम कहने वाले लोग मिलते हैं!

दाऊदनगर के किनारे ग्रामीण इलाके में प्लास्टिक से नहर के जल का प्रदूषण नजर आ गया। मेरे ख्याल से प्रेमसागर ने यह जानबूझ कर नहीं खींचा होगा। पर यह बयान करता है कि इस कचरे के माध्यम से खेत की सिंचाई और उससे उपज का चना-सरसों-धान-गेंहू, सब प्रदूषित हो रहा है। प्लास्टिक और थर्मोकोल का प्रयोग बंद भी हो जाये तो भी जीवों की कोशिकाओं में हजारों साल बाद भी प्लास्टिक के सूक्ष्म कण गुणसूत्रों में समाये मिलेंगे।

दाऊदनगर के किनारे प्लास्टिक से नहर के जल का प्रदूषण नजर आ गया।

और यह सब किसी प्रचंड औद्योगिक जगह पर नहीं, बिहार के तथाकथित पिछड़े इलाके का हाल है। प्लास्टिक सर्वयापी हो गया है। मेरे बचपन में यह बिल्कुल नहीं था। अब यही भर है!

प्रमोद सिंह जी के यहां मजे से रहे प्रेमसागर। उनका आतिथ्य भरपूर था। हर जगह कमरा तलाशने और होटल से भोजन का जुगाड़ करने वाले प्रेमसागर को तो अचानक ही आनंद मिल गया होगा। दस किमी अतिरिक्त चलने पर मिला आनंद!

मुझे प्रेमसागर से ईर्ष्या हुई। मैं भी चलने वाला जीव होता, त्रिपुण्ड लगाये गेरुआ पहने, तो मेरा भी ठाठ होता। और बंधुवर क्या गजब का ट्रेवलॉग निकलता उससे! उस ट्रेवलॉग की और इस डियाकी (डिजिटल यात्रा कथा लेखन) की कोई तुलना ही नहीं! मैं एक डियाकर की बजाय एक सशक्त हस्ताक्षर बन जाता ट्रेवलॉगर की दुनियाँ में! :lol:

प्रमोद जी के चार बेटे हैं। एक शादी शुदा है। सो एक बहू। बहू ने खाने में लिट्टी-चोखा, साग, भुजिया सब बनाया था। सबका स्वाद पाये प्रेमसागर! रात इग्यारह बजे तक प्रमोद जी के यहां “बाबाजी” के साथ बतकही चलती रही। बगल के गांव मुखिया जी भी चर्चा में आ गये। एक सज्जन तो रात में प्रेमसागर की बगल में जमीन पर बिस्तर बिछा सोये। बोले – बाबाजी आपको अकेला नहीं छोड़ेंगे।

खड़े हैं प्रमोद कुमार सिंह। बीच में मुखिया जी। बांये वाले सज्जन रात में प्रेमसागर जी के पास ही जमीन पर बिस्तर लगा कर सोये। “बाबाजी को अकेला नहीं छोड़ सकते”।

मुझे प्रेमसागर से ईर्ष्या हुई। मैं भी चलने वाला जीव होता, त्रिपुण्ड लगाये गेरुआ पहने, तो मेरा भी ठाठ होता। और बंधुवर क्या गजब का ट्रेवलॉग निकलता उससे! उस ट्रेवलॉग की और इस डियाकी (डिजिटल यात्रा कथा लेखन) की कोई तुलना ही नहीं! मैं एक डियाकर की बजाय एक सशक्त हस्ताक्षर बन जाता ट्रेवलॉगर की दुनियाँ में! :lol:

प्रमोद जी के यहां की बतकही से निकला कि पास ही में आदि मानव के प्रमाण हैं। प्रेम सागर सासाराम के ताराचण्डी मंदिर के दर्शन (भले ही लौटानी में) करेंगे। आसपास के इलाके का माइथॉलॉजिकल इतिहास भी बहुत बताया प्रमोद जी ने। मैंने प्रेमसागर को प्रमोद जी का नम्बर ले लेने को कहा, जिससे भविष्य में उस इलाके की जानकारी ली जा सके!

कल शायद प्रेमसागर गया पंहुच जायें। वैसे तेज चल दूरी पार करने की बजाय यात्रा को जीना चाहिये प्रेमसागर को। शक्तिपीठों के दर्शन तो (मेरे अनुसार) एक निमित्त हैं। मुख्य है यात्रा। यात्रा माध्यम नहीं, प्रेमसागर की जिंदगी में मुकाम बनना चाहिये। यात्रा का रस, मंदिर के दर्शन के संतोष से कहीं ज्यादा महत्व का होता है – नहीं?

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रेमसागर की पदयात्रा के लिये अंशदान किसी भी पेमेण्ट एप्प से इस कोड को स्कैन कर किया जा सकता है।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

4 thoughts on “दाऊदनगर से करसारा के प्रमोद कुमार सिंह के यहाँ

  1. Prem Sagar ji ke saath ghumaane ke liye dhanyawad… isse pahle teen baar unki jyotirlingo ki yatra ke baare me padh chuka hoon.. Bas jo hissa chhoot gaya.. wo khalta hai… Prem sagar aur aap dono log is ke liye kaafi lambe samay tak yaad rakhe jayenge..

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