20 मार्च 23
झारखण्ड – बंगाल सीमा से नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ 25-26 किलोमीटर पर है। प्रेमसागर अगर वहां चट पट दर्शन कर अगले शक्तिपीठ की ओर निकलने की उतावली न दिखायें और दिन भर शक्तिपीठ का वातावरण समझने-सूंघने में लगायें तो इतनी लंबी लंबी पदयात्रा करने का ध्येय सार्थक हो सकेगा।
इतने दिन बाद भी मैं समझ नहीं पाया कि प्रेमसागर का यात्रा ध्येय क्या है। पदयात्रा ध्येय है या पदयात्रा जल्दी जल्दी पूरा करना ही ध्येय है। पिछली द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा में संकल्प का बंधन था। यात्रा पूरा करना ध्येय था। यह यात्रा तो स्वप्न की प्रेरणा से है। मातृशक्ति ले जा रही हैं यात्रा पर। कहां कहां ले जायेंगी और कैसे ले जायेंगी, माता पर ही छोड़ना चाहिये।
पर मै प्रेमसागर का कोई यात्रा सलाहकार नहीं हूं। बड़े बड़े पण्डित-भक्त लोग उनको गाइड करने वाले हैं। हर विद्वान उन्हें अपने सुझाये तरीके से यात्रा करा रहा है!
खैर, अगर यात्रा ही अपने आप में ध्येय है तो यात्रा को ही उन्हें माता का प्रसाद मान कर उसमें रस लेना चाहिये। पर मेरी सलाह तो खांटी धरम-करम वाली सलाह नहीं है। देखें, वे क्या करते हैं। वैसे आज मेरी सलाह मान कर वे नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ के समीप लॉज में ही रुक गये। आज ही आगे बढ़ कर 50-60 किलोमीटर चलने की जल्दी नहीं दिखाई। मंदिर, परिवेश और वातावरण को देखने समझने का प्रयास किया।


आज का दिन वैसे भी उत्फुल्लता का था। रात में बारिश हुई थी। सवेरे सड़कें गीली थीं।
आज का दिन वैसे भी उत्फुल्लता का था। रात में बारिश हुई थी। सवेरे सड़कें गीली थीं। बीरभूम जिले का जंगली इलाका था। बढ़िया लगा चलने में। बीरभूम बंगाल के बर्दवान डिवीजन का उत्तरी-पश्चिमी जिला है। संथाल आदिवासी बहुल। संथाली भाषा में बीर का अर्थ वीर नहीं, जंगल होता है। बीरभूम यानी जंगल की भूमि। अपने नाम को सार्थक करता जिला है। और यह शाक्त श्रद्धा का गढ़ है। कई शक्तिपीठ हैं यहां। अगले सप्ताह भर में प्रेमसागर उन्ही के दर्शन करेंगे।
झारखण्ड के छोटा नागपुर पठार के इलाकों की तरह यहां भी जमीन में कोयला बहुत है। कोयले की खदाने और रेल के वैगनों-रेकों में कोयले का लदान होता है। नंदिकेश्वरी मंदिर के समीप ही रेल का जंक्शन है। सैंथिया जंक्शन।


झारखण्ड-बंगाल की सीमा से पैदल आते हुये प्रेमसागर को कई जगह चूने पत्थर के ढेर नजर आये।
झारखण्ड-बंगाल की सीमा से पैदल आते हुये प्रेमसागर को कई जगह चूने पत्थर के ढेर नजर आये। लाइमस्टोन भी निकलता होगा खदानों से और अगर वह है तो सीमेण्ट बनाने वाले कहां चूकेंगे। उसके लिये दो जरूरी तत्व – चूना और कोयला तो एक ही जगह उपलब्ध है। मैंने जानकारी अभी तलाशी नहीं, पर बीरभूम जिले में ताप विद्युत, सीमेण्ट बनाने और कोयले की खदानों के बारे में काफी जाना जा सकता है।
वैसे बीरभूम जिले की सरकारी वेबसाइट ने (आम तौर पर जैसा होता है) निराश ही किया। विकिपेडिया उससे कहीं बेहतर सोर्स है जानकारी का।

प्रेमसागर ने रास्ते में धान की रुपाई करते किसान-श्रमिक देखे।
जिले की पचहत्तर फीसदी आबादी, बावजूद खनिज सम्पदा के, कृषि पर अवलम्बित है। प्रेमसागर ने रास्ते में धान की रुपाई करते किसान-श्रमिक देखे। लोगों ने बताया कि कोई कोई दो और कोई तीन धान की फसल भी लेता है खेत से। आबादी का दबाव है और खेतों की जोत बड़ी नहीं है। बावजूद इसके कि दशकों यहां साम्यवादी विचारधारा की सरकारें रही हैं, खेती सामुदायिक नहीं, व्यक्तिगत दीखती है।
धान बहुत दीखा प्रेमसागर को रास्ते में। जगह जगह बड़ी बड़ी धान की बोरियां। “एक राइस मिल तो इतनी बड़ी थी, भईया जैसे कोई बहुत बड़ी फेक्टरी हो।” – प्रेमसागर ने बताया।
मयूराक्षी के बगल से चलना हुआ काफी हिस्से में। इस नदी को पार कर सैंथिया स्टेशन के पास नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ पड़ा। “भईया मेन ब्रिज की मरम्मत चल रही थी। एक दूसरे छोटे पुल से आना पड़ा। नदी का पाट बहुत बड़ा है पर पानी बहुत कम है।” – प्रेमसागर ने बताया।


मौचक लॉज और लड्डू शाह जी का धुंधला चित्र। इस लॉज में प्रेमसागर अगले कुछ दिन रुकने की सोच रहे हैं।
नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ, बस अड्डे और सैंथिया जंक्शन के पास ही है मौचक लॉज। मौके की जगह पर। इसके मालिक बनारस में वाराही माता जी के दर्शन की लाइन में प्रेमसागर के आसपास ही खड़े थे। यहां उन्होने प्रेमसागर को पहचान लिया। फिर तो प्रेमसागर को आश्वासन मिल गया कि जितने दिन भी रहना है, वे यहां रह सकते हैं। “कुल चारसौ अस्सी रुपया किराया है दिन भर का और साथ में भोजन चाय भी उपलब्ध हो रही है। बहुत साफ सुथरी और अच्छी जगह है। कहीं से भी ट्रेन या बस से आ कर आसानी से लॉज में पंहुचा जा सकता है।” – प्रेमसागर ने लॉजिस्टिक फायदे गिनाये। लॉज के मालिक लड्डू शाह जी का अच्छा चित्र नहीं ले पाये प्रेमसागर। जो धुंधला और हिला हुआ चित्र खींचा, वही ब्लॉग में लगा दिया है मैंने।

मंदिर परिसर में वृक्ष भी है और उसपर लिपटे मनौती के धागे भी। भक्तिमय वातावरण है वहां। भक्ति है, भय नहीं है।
नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ के बारे में कहा जाता है कि यहां सती का हार गिरा था। सती के हार गिरने की कथा मैहर (माई का हार) में भी है। सती क्या एकाधिक हार पहने थीं? कहीं कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। शक्तिपीठ स्त्रोत के अनुसार यहां के भैरव नंदिकेश्वर हैं – नंदी के देव। नंदिनी माता का शाब्दिक अर्थ है ‘जो आनंद की देवी हैं’। और आज प्रेमसागर जाने अनजाने में आनन्दित ही लगे अपनी बातचीत में मुझे। एक बड़ा सा प्रस्तर खण्ड है, गोल सा, जिसपर सिंदूर पुता है कि सब कुछ लाल नजर आता है। देवी का वही प्रतीक है। उसी की पूजा करते हैं भक्त।
[Slide Show] माता पार्वती के उदात्त और प्रेममयी स्वरूप नंदिनी की पूजा का स्थल है नंदिकेश्वरी मंदिर। दीवारों पर माता के विभिन्न रूपों के बड़े सुंदर चित्र उसी तरह सजाये गये हैं, जिस तरह की कल्पना उनकी पुराणों में की गयी है।
मंदिर परिसर में वृक्ष भी है और उसपर लिपटे मनौती के धागे भी। भक्तिमय वातावरण है वहां। भक्ति है, भय नहीं है। माता पार्वती के उदात्त और प्रेममयी स्वरूप नंदिनी की पूजा का स्थल है नंदिकेश्वरी मंदिर। दीवारों पर माता के विभिन्न रूपों के बड़े सुंदर चित्र उसी तरह सजाये गये हैं, जिस तरह की कल्पना उनकी पुराणों में की गयी है।
कल प्रेमसागर अपना सामान यहीं रख कर आसपास के एक दो अन्य शक्तिपीठों की पदयात्रा करेंगे और वहां से किसी वाहन द्वारा वापस लॉज में लौट आयेंगे। “भईया, सामान नहीं रहेगा तो चलना भी तेज तेज हो पायेगा।” – प्रेमसागर ने मुझे अपनी कल की स्ट्रेटेजी बताई। वे ट्रेनों और बसों के समय की जानकारी और किराया भी पता कर चुके हैं।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |

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