26 मार्च 2023
मैं हेर फेर कर प्रेमसागर से सवाल करता हूं – अगले दिन सवेरे उठ कर चल देने की ऊर्जा या जोश कहां से मिलता है उन्हें? और यह सवाल ही उन्हें समझ नहीं आता। चलना उनकी डीफॉल्ट कण्डीशन है। चिड़िया से पूछा जाये कि वह रोज उड़ती कैसे है या मछली से पूछा जाये कि वह सतत तैरती कैसे है तो उसे सवाल समझ नहीं आयेगा। वैसा की कुछ यह सवाल प्रेमसागर के लिये है।
मैं उनकी यात्रा पर लिखने में ऊब सकता हूं। रोज एक नये शक्तिपीठ की यात्रा पर लिखना और उसपर पांच सात चित्र चुन कर टाइल्ड गैलेरी या स्लाइड शो के रूप में जोड़ देना मुझे कभी कभी टाइप्ड लगने लगता है। उनके यात्रा पथ पर अपनी कल्पना की सीमाओं के कारण कभी कभी खीझ भी होती है। पर प्रेमसागर के रोज उठ कर चल देने में कोई ऊब नहीं दिखती मुझे। और आजकल तो कहां जाना है, कितनी दूर अगला पड़ाव है, वह भी वे खुद तय करने की बजाय मुझसे पूछने लगे हैं। मुझे बहुत कुछ एक पूर्णकालिक कम्पेनियन जैसा मान रहे हैं शायद। मुझे जिसने न पदयात्रायें की हैं न जिसे उस इलाके का कोई अनुभव है। उनके भेजे चित्रों में ज्यादातर बांगला में लिखे पट्ट होते हैं जो मुझे समझ नहीं आते। फिर भी ब्लॉग पोस्टें लिखना एक मजबूरी है। अन्यथा उनकी यात्रा का बैकलॉग बनता चला जायेगा।
इस यात्रा में यहां बंगाल में उन्हें गुजरात जैसी भक्त मण्डली भी नहीं मिली है कि मैं उनपर उन भक्तों के द्वारा थोपे आभामण्डल का बहाना ले कर कटने की कोशिश करूं। मैं फंस गया हूं! 😆
प्रेमसागर के पैरों में मोच आयी। उसके कारण उनकी कमर में भी दर्द है। उन्होने पैरों में लगाने के लिये मलहम और पहनने के लिये एंकल-गार्ड तथा कमर की बेल्ट खरीदी। सात-आठ सौ का खर्च हुआ। वह सब पहन कर आज चल दिये। बताया – “कमर में बेल्ट पहनने से बहुत आराम है भईया।”



रास्ते में धान के खेत, उद्योग और अजय नदी
सवेरे समय पर उन्होने सईंथिया से बस पकड़ी जो वाया फुल्लारा बोलपुर ले गयी। एक सवा घण्टे लगे। उसके बाद अपना सामान का पिट्ठू पीठ पर लाद कर बोलपुर से उजानी तक की पदयात्रा उन्होने की। करीब बत्तीस किलोमीटर चले। रास्ते में बीरभूमि की बजाय दृश्य बदल गये हैं। जंगल नहीं हैं। धान के खेत ज्यादा हैं। कहीं कहीं एक दो फेक्टरी भी दिख जा रही हैं। आबादी यहां बर्दवान जिले में ज्यादा है।
शाम तीन-चार बजे के बीच उन्होने अजय नदी पार की। नदी का पाट बड़ा है, पर पानी उतना नहीं। फिर भी बिहार की नदियों की तरह मात्र रेत की नदी नहीं है अजय। आगे कुछ किलोमीटर बाद यह हुगली नदी में मिल जाती है। अजय नदी के दूसरे छोर पर मंगल चण्डी शक्तिपीठ है। वहां के पुजारी जी बताते हैं कि जब अजय में पानी लबालब हो जाता है तो मंदिर की सीमा से सट कर बहती हैं नदी।
मान्यता के अनुसार मंगल चण्डी शक्तिपीठ वह स्थल है जहां सती की हाथ की कलाई गिरी थी (प्रेमसागर वहां मंदिर स्थल पर जानकारी के अनुसार बांये हाथ की ठेहुनी कहते हैं पर कहीं इण्टरनेट पर दांये हाथ की कलाई लिखा है) और जहां के भैरव हैं कपिलाम्बर। मंगल चण्डी या मंगल चण्डिका के नाम से तीन जगहों पर शक्तिपीठ हैं। मुख्य उज्जैन में है। यह स्थान भी ‘उजानी’ कहा जाता है। सम्भव है इसका भी सम्बंध उज्जैन या उज्जयिनी से हो। फिलहाल प्रेमसागर अपने मार्ग में सभी शक्तिपीठों का दर्शन कर रहे हैं। उसी कड़ी में यहां पंहुचे हैं। उन्हें अपनी पदयात्रा में उज्जैन तो कभी जाना ही है!

मंदिर के पण्डित – पुजारी श्री सोमनाथ जी नौजवान हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी के पुजारी हैं वे। उनके बाबा भी इस मंदिर के पुजारी थे और उनके पिताजी भी। उनके साथ यहां उनकी माता, पत्नी और एक पुत्री रहते हैं। मंदिर में एक कमरा और एक हॉल है रात्रि गुजारने वाले श्रद्धालु तीर्थयात्रियों के लिये। कमरे का किराया पांच सौ है और सौ रुपये में वे भोजन का इंतजाम भी कर देते हैं। प्रेमसागर को उन्होने रहने का स्थान दे दिया। प्रेमसागर के बाद कुछ और यात्री भी आये पर उन्हें उन्होने मना कर दिया – प्रेमसागर को वचन जो दे चुके थे।
श्री बहुला शक्तिपीठ के उन लम्बी जटा वाले बाबा की तरह यहां सोमनाथ जी ने भी प्रेमसागर को दो चूड़ियां दी हैं। एक लाख की है और दूसरी किसी धातु की।
प्रेमसागर ने बताया कि मंदिर साफ सुथरा है। रमणीक है और साथ में भैरव – कपालेश्वर का भी स्थान है। मंदिर में ही रुकने का स्थान पा कर प्रेमसागर प्रसन्न लगे। “भईया, माता ने आज तय किया है कि उनके पास ही रात गुजारूं। यह मेरा बड़ा सौभाग्य है!”

रात में उन्हें अपेक्षा है कि पुजारी जी से बातचीत-बतकही होगी। “भईया, जो पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कारी होता है, उसमें सरलता होती है। अहंकार नहीं होता। ये पुजारी जी भी वैसे ही लगते हैं। उनसे मिल कर अच्छा लगा।” – प्रेमसागर ने कहा। शाम की आरती के लिये पुजारी जी ने उन्हें बुलाया भी है। वे भी प्रेमसागर को लम्बी शक्तिपीठ पदयात्री के नाते आदर दे रहे हैं।
कल प्रेमसागर क्षीरसागर में जोगद्या माता के शक्तिपीठ की ओर चलेंगे। वह स्थान यहां से बीस किलोमीटर दूर है। सम्भव हुआ तो वहां दर्शन कर वहां से दस पंद्रह किलोमीटर आगे चल कर कोई रात्रि विश्राम का स्थल तलाशेंगे। उसके आगे हुगली नदी के तट पर श्री श्रीश्री राजराजेश्वरी बगलामुखी शक्तिपीठ है। उसके थोड़ी दूर है शृन्खला शक्तिपीठ जिसका उल्लेख आदिशंकराचार्य के अष्टादश महाशक्तिपीठ श्लोक में है। पर दुर्भाग्यवश वह शक्तिपीठ अब है नहीं। अब वह जगह आर्कियॉलॉजिकल सर्वे के पास एक मॉन्यूमेण्ट के रूप में है। प्रेमसागर ने तय किया है कि वहां वे जायेंगे जरूर। अपनी आंखें मूंद कर प्रार्थना करने में तो वहां कोई मनाही नहीं है। उससे कौन रोक सकता है। माता की इच्छा वैसी है तो वही सही!
ॐ मात्रे नम:। हर हर महादेव। जय माता मंगल चण्डी।
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |
