28 मार्च 2023, दोपहर
आदिशंकर के अष्टादश शक्तिपीठ स्त्रोत में पहले श्लोक में तीसरा शक्तिपीठ नाम शृन्खलादेवी का है। यह स्थान प्रद्युम्न (पाण्डुआ, हुगली जिला, पश्चिम बंगाल) में है।
लङ्कायां शाङ्करी देवी कामाक्षी काञ्चिकापुरे ।
प्रद्युम्ने शृङ्खलादेवी चामुण्डी क्रौञ्चपट्टणे ॥1॥ – अष्टादश शक्तिपीठ स्त्रोत से
पर यह शक्तिपीठ है ही नहीं।
मैंने प्रेमसागर को इसके बारे में आगाह कर दिया था। वे अठारह महाशक्तिपीठों को कीली बना कर उनके आसपास के सभी तीर्थों-शक्तिपीठों की पदयात्रा कर रहे हैं। पर उन अठारह शक्तिपीठों में से तीन का दर्शन कठिन है। एक लंका में शांकरी देवी का है। दूसरा पाकिस्तान अधिकृत भारत में शारदा शक्तिपीठ है। ये दोनो शक्तिपीठ देश की सीमा के बाहर हैं।
तीसरा शक्तिपीठ यह शृन्खला देवी है जो खिलजी वंश के शासन के दौरान सन 1296-99 में उनके सेनापति जफर खान गाजी ने ध्वस्त कर दिया था। मंदिर के स्थान पर एक मस्जिद (बारी मस्जिद) की मीनार है। परिसर में ध्वस्त एक बड़े मंदिर के भग्नावशेष बिखरे हैं। आप इस साइट पर चित्र देख सकते हैं जो वे भग्नावशेष दिखाते हैं और जिन्हे देख कर कोई संशय नहीं रह जाता।






प्रेमसागर ने फिर भी कहा था कि वे वहां जायेंगे। मैंने कहा कि वे आर्कियॉलॉजिकल सर्वे के पट्ट का चित्र लेने का प्रयास करें, जिसपर शायद कुछ विवरण हो इस साइट का। उसके बाद मौन हो कर देवी का स्मरण कर वहां से चले आयें।
पर वहां प्रेमसागर के साथ बखेड़ा हो गया। उन्होने मीनार और आर्कियालॉजिकल सर्वे के पट्ट के चित्र लिये तो करीब सौ लोगों की भीड़ इकठ्ठा हो गयी। “वे लोग कह रहे थे भईया, क्या करोगे? इसे तोड़ोगे? सरकार भेजी है तुम्हें तोड़ने को? हम दीदी से बात करेंगे। रात में जहां रुकोगे तो हम सब मिलने आयेंगे।” – प्रेमसागर ने बताया कि उनके तेवर उग्र थे और भाषा धमकी वाली थी।



प्रेमसागर के साथ ए.एस.आई. के गार्ड, मीनार और शृन्खलादेवी स्थल पर ए.एस.आई. का पट्ट।
प्रेमसागर ने और कहा – “मैने भी कड़े हो कर बात किया कि मुझे राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है। मैं तो पदयात्री हूं। अच्छा लगा तो चित्र ले लिया। कोई गुनाह नहीं किया। अगर मैं भय दिखाता तो भईया वे हमला भी कर देते शायद। ए.एस.आई. के गार्ड साहब ने मेरा पक्ष लिया। वहां से बच कर आने के बाद मैंने पैदल चलने की बजाय आटो लिया। त्रिबेनी आ कर गंगाजी में स्नान किया।”
“भईया, मन बेचैन है। हमने कोई गलत काम नहीं किया। हम मीनार को तो छू भी नहीं रहे थे। वहां कोई पूजा करने भी नहीं गये थे। हमको तो उन्होने दो मिनट रुक कर शांत मन से देवी का ध्यान करने का भी मौका नहीं दिया। सौ डेढ़ सौ की भीड़ हमें उल्टा सीधा बोले, वैसा क्या किया था मैंने। मैंने तो उन लोगों से यही कहा कि रात में वे मुझसे मिलने आयेंगे तो मेरी ओर से मैं उन्हें भोजन कराऊंगा। मैंने कुछ गलत कहा क्या भईया?” – प्रेमसागर बार बार मुझे कहते रहे।
प्रेमसागर के भय का कारण समझ आता है। वे सौ थे और प्रेमसागर अकेले। उनके पास कोई सामाजिक-धार्मिक सहारा भी नहीं था। पर उस भीड़ वाले लोगों का व्यवहार समझ नहीं आता। उनके शंकित होने का क्या अर्थ है? पिछले हजार-बारह सौ साल में जो भारत में हुआ है, वह पीड़ादायक है। पर उसको भूलने और सौहार्द का उपाय क्या है? एक बार दोनो पक्ष यह मानें कि भूतकाल में गलतियां-अत्याचार हुये हैं और उसके खेद के पट्ट जगह जगह उसी तरह लगें जैसे जर्मनी में नात्सी अत्याचार के बारे में लगे हैं। एक बार की इस कवायद के बाद इतिहास भूल कर आगे का भारत रचा जाये। पर उसके लिये रोड़ा तो राजनीति है। या फिर धर्मों का फैलाया उन्माद। या दोनों।
प्रेमसागर के साथ हुई इस घटना ने मुझे व्यथित कर दिया। उस जगह से दूर आने पर मैंने उन्हें पास के हंसेश्वरी मंदिर के दर्शन करने की सलाह दी। शृन्खला देवी शक्तिपीठ की अनुपस्थिति में इस पुराने मंदिर में लोग जाते हैं और इसे शक्तिपीठ की तरह मानते हैं। इस मंदिर को सन 1799 में राजा न्रिशिनदेबराय महाशय जी ने बनवाया था। विकिपेडिया के अनुसार इस मंदिर का स्थापत्य तेरह मीनारों का है और “तांत्रिक सतचक्रभेद” दर्शाता है। मंदिर की मीनारों की पांच मंजिलें शरीर के पांच अंगों की प्रतीक हैं।

प्रेमसागर ने वहां के दर्शन किये। मुझे बताया – “भईया मंदिर पुराना है और बहुत अच्छा है। उसे संजो कर रखने के लिये उसमें घूमने की पूरी आजादी नहीं है। इस आशय का बोर्ड भी लगा है। पर वह सब खलता नहीं।
हंशेश्वरी मंदिर के दर्शन के बाद प्रेमसागर ने गंगा पार कर अपने रहने के लिये होटल तलाशा। “बहुत मंहगा है भईया। हजार रुपया किराया एक रात भर रुकने के लिये।” इस स्थान से कालीघाट 55 किलोमीटर दूर है। कल सवेरे प्रेमसागर कालीघाट के लिये रवाना हो जायेंगे। रानाघाट नामक जगह पर दीखता है नक्शे में यह स्थान जहां वे रात्रि विश्राम कर रहे हैं।
“रात में होटल का चार्ज मेरे पाकेट के हिसाब से ज्यादा था। इतना खर्चा रुकने में कभी नहीं हुआ। दिन की घटना के कारण भोजन करने का भी मन नहीं था। पर नींद भी नहीं आ रही थी। रात सवा नौ बजे होटल वाले ने फोन कर पूछा कि मैंने खाना नहीं लिया है। मैंने बे मन से भोजन किया।” – प्रेमसागर ने बताया।
कुल मिला कर आज की दोपहर की यात्रा प्रेमसागर भूल नहीं सकते। इसमें क्रोध, भय, रोमांच सब था। इसमें महाशक्तिपीठ था, जो नहीं था। उसके स्थान पर उन्होने पुराने और सुंदर हंसेश्वरी देवी के मंदिर के दर्शन किये।
28 मार्च 2023, सवेरे
इससे पहले आज सवेरे प्रेमसागर मायापुर से गंगा पार कर नवद्वीप आये। वहां पंहुच कर फोन किया यह बताने के लिये कि मायापुर के क्षेत्र में हुगली नदी पर संगम है – हुगली/गंगा और जालांगी नदी का। जब उन्होने नदी पार करने के लिये फेरी की सवारी की तो उन्होने जालांगी नदी का गंगा में मिलन देखा। जो चित्र सवेरे की रोशनी में हुगली और फेरी के भेजे हैं, उसमें नदी की जलराशि और फेरी की गतिविधियां मनमोहक हैं।
मायापुर से नवद्वीप : फेरी से हुगली नदी
मायापुर से नवद्वीप आ कर उन्होने बस से यात्रा की और श्री श्री राजराजेश्वरी बगलामुखी मंदिर पंहुचे। यह यात्रा उन्होने एक वाहन से की। राजराजेश्वरी मंदिर तंत्र साधना का मंदिर है। पर वहां प्रेमसागर को वैसा कुछ दिखा नहीं एक बूढ़ी महिला थीं। पुजारी जी की मां। उनको प्रणाम किया तो उन्होने यात्रा की सफलता का आशीर्वाद दिया। “वे वैसी लगी जैसे मेरी दादी माँ आशीर्वाद दे रही हों। बस उन्ही से मुलाकात हुई। मंदिर के पुजारी जी कलकत्ता गये हुये थे।”


श्री श्री राजराजेश्वरी बगलामुखी मंदिर
इस मंदिर से प्रेमसागर शृन्खला देवी के भग्न स्थल पर गये, जहां के बारे में ऊपर लिखा जा चुका है।
कलकत्ता समीप आता जा रहा है और रहने के लिये खर्चा बढ़ रहा है। प्रेमसागर परेशान दीखते हैं। मैं पाठकों से अपील करता हूं उनके लिये अंशदान देने के लिये।
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |

Log dharmik mamlon m yahan kuch jyada hi panicy h .Ishwar sadbuddi de avam Prem Sagar ji ki yatra agey sukhad ho yahi Ma se prarthana h
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आपकी शुभकामनाएं देख पढ़ कर अच्छा लगा. प्रेम सागर जी की यात्रा सकुशल और निर्विघ्न हो, यह हम सब की सोच है.
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