उल्टी कालीन को सीधा कर एक व्यक्ति – अजय – ने मुझे दिखाया। उसने कहा कि उन्हें तो अपने काम की मजूरी मिलती है। मजूरी यानी रोजी रोटी का जरीया। बाकी, असल में कमाई तो मालिक या एक्स्पोर्टक की होती है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
उल्टी कालीन को सीधा कर एक व्यक्ति – अजय – ने मुझे दिखाया। उसने कहा कि उन्हें तो अपने काम की मजूरी मिलती है। मजूरी यानी रोजी रोटी का जरीया। बाकी, असल में कमाई तो मालिक या एक्स्पोर्टक की होती है।