08 अप्रेल 2023
गुड्डू पांड़े बताते हैं कि वे मूलत: बांसडीह, बलिया के हैं। बहुत से लोग बाहर से आये हैं इस इलाके – पूर्णिया – में। उसी तरह के वे हैं। वे किसान हैं और कृषि विशेषज्ञ भी। लोगों को खेती किसानी की जानकारी भी देते हैं। फोटो में स्मार्ट लगते हैं। पैंतीस छत्तीस के आसपास उम्र होगी।
कल प्रेमसागर के सुल्तानगंज पंहुचने पर गुड्डू पांड़े उन्हें अपने साधन से अपने गांव ले आये हैं। गांव का नाम है दियारा बिसहानपुर, जो सुल्तानगंज से 92किमी और पूर्णिया से 36 किमी दूर है।

दियारा शब्द के आते ही मन में बाढ़ और डूब में आने वाले इलाके का दृश्य आ जाता है। इस जगह से कोसी ज्यादा दूर नहीं हैं। उस पाट बदलने वाली नदी – जो साठ सत्तर किलोमीटर इधर या उधर खिसक जाती है बारिश के मौसम में – से दियारा बिसहानपुर तीस-पैंतीस किमी की ही दूरी पर है।
गुड्डू पाण्डेय का नाम अमरदीप है। एक अमरदीप शॉप दिखती है गूगल मैप पर। शायद उनका ही जनरल स्टोर है। उनके यहां के भेजे चित्र से उनका परिसर काफी बड़ा दिखता है। ट्यूब वेल है और चरी के खेत भी। चरी है तो गाय गोरू भी पाल रखे होंगे। अन्यथा चरी उगाने का क्या औचित्य?
और पिछले जमाने में अतिथि वहां रुकना पसंद करते थे, जहां गोरुआर अच्छा हो। भोजन में ढंग से दूध-दही-घी तो मिलें! 🙂
सम्पन्न ग्रामीण लगते हैं गुड्डू पांड़े जी। पर अंग प्रदेश की सम्पन्नता का भी क्या अर्थ है? यहां हर माता-पिता अपने बच्चे को पढ़ा कर यही सीख देते हैं कि बाहर निकल जाओ। यह आजका ही दृश्य नहीं है। कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी जी के उपन्यास कृष्णावतार में जरासंध भी आर्य-संसार पर वर्चस्व के अपने प्रयत्नों पर कृष्ण द्वारा पानी फेरे जाने की याद कर कहता है की उसके यहां (मगध साम्राज्य में) क्या है? “छोटे मोटे सामंतों की सरदारी करना ही तो है जो साल के छ महीने पानी से भरे दलदली इलाकों में रहने वाले लोगों पर शासन करते हैं”।
मैं पूर्णिया, मधेपुरा, कटिहार, मुंगेर, भागलपुर, किशनगंज आदि के जीवन को जानने की इच्छा रखता हूं। ये गंगा और कोसी तथा आधा दर्जन अन्य नदियों के दियारों का इलाका उर्वर जमीन और बाढ़ की विभीषिका के बीच झूलता है।
पर इस इलाके के ट्रेवलॉग का पीरियड भी कितना है? प्रेमसागर को यह इलाका अपनी सुविधायें देते हुये तीन चार दिन में पार करा देंगे। वे रात में रुकने का इंतजाम अपने घर पर करेंगे। सवेरे उन्हें पदयात्रा करने के स्थान पर अपने वाहन से छोड़ेंगे और शाम को उन्हें उठा कर अपने घर ले आयेंगे। यह तो ड्रेगन फ्लाई (अजगर मक्खी) जैसी फुदक कर चलने वाली पदयात्रा है!

अगर अमरदीप (गुड्डू) पाण्डेय इलाके के बारे में ज्यादा गहराई से और सूक्ष्मता से बताते हैं, तो प्रेमसागर को यूंही चलने दिया जायेगा। डियाकी (डिजिटल यात्रा कथा लेखन) के ज्यादा इनपुट्स उन्ही से लिये जायेंगे! यह मैंने आज सोचा है! आगे कुछ दिन गुड्डू पाण्डेय जी का नाम पोस्टों में आता रहेगा। 😀
सोमारी बाबा (प्रेमसागर) अपनी सुल्तानपुर से पदयात्रा कल प्रारम्भ करेंगे। आज वे गुड्डू पांड़े जी के घर, दियारा बिसहानपुर में आतिथ्य का आनंद ले रहे हैं।