कभी भी शहर जाता हूं तो स्टेशनरी/किताब की दुकान पर जरूर जाता हूं। मेरी पत्नीजी को वह पसंद नहीं है। पर मुझे भी उनका टेर्राकोटा या नर्सरी पर पैसे खर्च करना पसंद नहीं है। लिहाजा हम दोनो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में जीते हैं।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
कभी भी शहर जाता हूं तो स्टेशनरी/किताब की दुकान पर जरूर जाता हूं। मेरी पत्नीजी को वह पसंद नहीं है। पर मुझे भी उनका टेर्राकोटा या नर्सरी पर पैसे खर्च करना पसंद नहीं है। लिहाजा हम दोनो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में जीते हैं।