जलपाईगुड़ी से फालाकाटा

24 अप्रेल 2023

सवेरे निकल कर चलते चलते पिछले दिन का विवरण बताते हैं। आज सवेरे उन्होने पौने छ बजे फोन किया तो मैं अपनी पोती को वीडियो कांफ्रेंसिंग कर पढ़ा रहा था। उनसे बातचीत आधे घण्टे बाद ही हो पाई। वे तीस्ता पार कर आगे बढ़ चुके थे। नदी पार करते हुये चित्र मोहक हैं। सूर्योदय पूर्व में हो रहा है। और वे पूर्व की ओर बढ़ रहे हैं पुल पार करते हुये। नदी में सूरज की अरुणिमा चमत्कारी दृश्य प्रस्तुत करती है। चित्रों की टाइम लाइन बताती है कि सवेरे साढ़े पांच से पहले का समय है।

प्रेमसागर जिस स्थान पर रुके थे, वह नदी से साढ़े चार किमी दूर है नक्शे में। जरूर वे चार बजे उठ कर निकले होंगे। जो आदमी भोर में उठ कर निकलता है, वही आनंद ले सकता है ऐसे दृश्यों का।

तीस्ता नदी पार करते हुये चित्र

मैंने अपेक्षा की थी कि प्रेमसागर करीब 45 किमी चलेंगे और सालबाड़ी रेलवे स्टेशन के आसपास किसी जगह रुकेंगे। जब वे तीस्ता और जालढाका नदियां पार कर सालबाड़ी से गुजर रहे थे तो मैंने उन्हें वहीं कोई रात का ठिकाना तलाशने को कहा। पर उन्होने कहा कि कोई होटल या लॉज नहीं नजर आ रहा और किसी ने फोन कर उन्हें बताया है कि आगे फालाकाटा में लॉज हैं।

वे आगे बढ़ते गये। आगे दो और छोटी नदियां – अंग्रभाषा और एक और नक्शे में बिना नाम की नदी पार कर फालाकाटा पंहुचे, तभी उन्होने आज का विश्राम लिया। उस समय रात के आठ से ज्यादा ही बज रहे होंगे।

फालाकाटा में लॉज में पंहुचने के बाद उन्होने चालीस के आसपास चित्र मुझे ह्वाट्सएप्प पर ठेले। मोबाइल पर एक के बाद एक नोटीफिकेशन की घण्टी बजने लगती है और रुकती ही नहीं तो मुझे यकीन हो जाता है कि प्रेमसागर को कोई ठिकाना मिल गया है। चित्र भेज कर वे भोजन करेंगे और फिर बिना देरी किये सो जायेंगे। अगले दिन सवेरे चार बजे उठ कर चलने के लिये फिर से कमर कस कर तैयार।

“भईया, ठहरने को तो सस्ते में जगह मिल गयी। किराया तीन सौ सत्तर रुपया था। पर भोजन नहीं मिला। वहां होटल जो देता था उसमें मांसाहार भी था। होटल वाले कर्मियों ने ही कह दिया कि आपके लिये ठीक नहीं रहेगा। बाजार से आम और अंगूर था, वही खा कर सोना पड़ा। वैसे कल दोपहर में आराम किया था तो उस जगह शाकाहारी भोजन मिला। वहीं कर लिया था। काम चल गया।”

रात साढ़े आठ बजे उनका एप्प बताता है कि वे दिन भर में 52 किमी और 51787 कदम चले। पर नक्शे के अनुसार वे लगभग साठ किमी चले होंगे। आठ किमी का अंतर एप्प दे रहा है। “दिन में नेटवर्क काम नहीं कर रहा था भईया। अमूमन एयरटेल ठीक काम करता है पर यहां बीच बीच में गायब था। इसी लिये इतना फर्क बता रहा है मोबाइल”

बावन किलोमीटर का पैदल चलना अपने आप में बहुत है! पर वास्तव में जो चले – 60-61 किलोमीटर; वह तो बहुत ही ज्यादा है। और वह भी तब जब चलने के बाद भोजन की बजाय आम-अंगूर पर गुजारा करना हो!

दिन के बारे में उन्होने बताया – “भईया, यहां जिस रास्ते पर चला वह पुराना हाईवे है। पुल सभी अंग्रेजों के जमाने के मिले। आदमी ज्यादातर नेपाली जैसे लगते हैं। ज्यादातर लोगों के गले में कंठीमाला – तुलसी की माला – है। यहां लगभग हर एक औरत पान खाती हैं। सोपारी भी बहुत खाते हैं लोग। खेती भी होती है। और एक चीज देखी – लोग लॉटरी टिकट खूब खरीदते हैं। जगह जगह लॉटरी टिकट मेज पर रखे बेचने वाले थे। ज्यादातर टिकटों पर डीयर लिखा था। मुझे बताया कि लॉटरी पार तीस परसेण्ट सरकार कमाती है और दस परसेण्ट बेचने वाले को मिलता है।”

यानी, लोग भाग्यवादी हैं। चालीस परसेण्ट सरकार-बेचने वाले को दे कर चलने वाले धंधे में लोगों को बमुश्किल 20 प्रतिशत मिलता होगा। … सपने बेचने वाली सरकार! अभी प्रेमसागर पश्चिम बंगाल में चल रहे हैं। आगे जब असम में गुजरेंगे तब भी उनसे पूछा जायेगा कि क्या वहां भी लॉटरी ज्यादा बिकती है?

“भईया, मैं हाईवे से चला तो चाय के बागान नहीं दिखे। दूर हो सकता है रहे हों। आसपास मक्का की खेती नजर आ रही थी। इलाका हरा भरा था पर जंगल नहीं था। बताये हैं कि जंगल आगे आने वाला है।”

इलाका हरा भरा था पर जंगल नहीं था।

“लोग अच्छे हैं भईया। व्यवहार अच्छा है। बिहार के लोग भी मिले। एक जगह बिहार के लोगों से बात हुई। वे नारियल पानी बेच रहे थे। बताये कि महेंद्रनाथ बाबा मंदिर के इलाके के हैं। भईया मैं उस मंदिर का सेकरेटरी भी हूं। बाबा धाम से जुड़ा होने के कारण मुझे यह पद दे दिया है। मेरे यह बताने और उनकी भाषा में बात करने पर उन्होने सत्तर रुपये का डाभ चालीस रुपया में दे दिया।”

प्रेमसागर यूं ही पदयात्री नहीं बने हैं। व्यवहार से, सम्पर्क से और भाषा से लाभ लेना उन्हें आता है। नारियल पानी में सत्तावन परसेण्ट का डिसकाउण्ट तो मैं कभी न ले पाता! और, वही क्यों; मैं खुद रोज रोज प्रेमसागर का डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लिखे जा रहा हूं; इसी लालच में न कि प्रेमसागर वापसी में मेरे लिये एक किलो उत्तर बंगाल की चाय ले कर आयेंगे! प्रेमसागर के चक्कर में बहुत बेगारी करनी पड़ रही है जीडी को! :lol:

कल चलते चलना है। अभी 286 किमी दूर है कामाख्या पीठ। उसमें से 73 किमी पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में है। शेष असम में। अभी उत्तर पूर्व के बहुत अनुभव मिलेंगे प्रेमसागर को!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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