टुन्नू पण्डित के पेट्रोल पम्प के आसरे बगल में चार चक्का में हवा भरने और पंक्चर साधने की गुमटी खोल ली थी मुहम्मद दाऊद अंसारी ने। उसके बारे में मैं पहले ही लिख चुका हूं। पर टुन्नू पण्डित का पेट्रोल पम्प एनएचएआई तथा बिजली विभाग की लालफीताशाही में फंसा अभी भी कमीशनिंग का इंतजार कर रहा है। उस कमीशनिंग का मुझे इंतजार है कि जब चालू होगा तो जलसा होगा; भोज-भात खाने को मिलेगा। मुहम्मद दाऊद अंसारी को भी इंतजार है कि चालू होने पर वाहन वहां आने लगेंगे और उसे भी काम मिलेगा।
चार महीने हो गये। मैं रोज वहां से गुजरते देखता हूं कि बिजली वालों ने ट्रांसफार्मर खिसकाया या नहीं। खिसकाने पर एनएचएआई वाले अपना एनओसी देंगे और तब बीपीसीएल वाले खोलने देंगे पम्प। मैं यह भी देखता हूं कि बिजनेस न मिलने की दशा में भी मुहम्मद दाऊद अंसारी अभी भी वहां है या कहीं और चला गया?!
चार महीने बाद भी मुहम्मद दाऊद अंसारी वहीं है। रात में जब सर्दी थी तब वह गुमटी के अंदर सोता था। मौसम बदला तो गुमटी का शटर हल्का सा खोल कर सोने लगा। और मौसम बदला तो गुमटी के सामने एक खटिया/तख्ते पर मच्छरदानी लगा कर सोने लगा।
सवेरे सवेरे साइकिल चलाते वहां से गुजरने के कारण उसकी सोने की क्रिया को देखता जाता हूं।

इस बीच मौसम और खिलंदड़ बन गया है। रोज आंधी आ रही है और समय कुसमय बारिश भी हो रही है। खुले आसमान के लिये सोना रिस्क वाला हो गया है। रात में कब बारिश आ जाये और बोरिया बिस्तर लपेटना पड़े! सो मुहम्मद दाऊद अंसारी ने एक टटरी लगाई है। उसपर फूस की छत है और प्लास्टिक का तिरपाल लगाया है। बारिश के मौसम के लिये पुख्ता काम।
अब वह टटरी के नीचे सोता है। सामने से गुजरते हुये मैं सवेरे सात-साढ़े सात बजे भी सोते पाता हूं। अगर पेट्रोल पम्प चलने वाला हो जाता तो वह इतनी देर तक नहीं सोता। तख्ते पर मसहरी लगी है और वह गहरी नींद सो रहा है। उसकी नयी चप्पल नीचे जमीन पर है। कोई उस्ताद अभी तक उसकी नयी चप्पल उड़ा कर नहीं ले गया?! जब वह गुमटी के अंदर सोता था तो चप्पल भी अंदर ही रखता था।
गांवदेहात का जो हाल-कायदा है; उसके अनुसार उसे अपनी (नई) चप्पल सिरहाने तकिये के नीचे रखनी चाहिये। … मैं उसका खैरख्वाह हूं; पर इतना भी नहीं कि उसे उठा कर उसे चप्पल सिरहाने रखने की नसीहत दूं।

अब मेरी नित्य की साइकिल सैर में एक आईटम यह भी जुड़ गया है – देखना कि उसकी नई चप्पल सही सलामत खटिया के नीचे है या नहीं!
किसी जमाने में पांच सौ ट्रेनों के आवागमन का हिसाब किताब देखता था और दस पंद्रह हजार रेल कर्मचारियों के हित-अनुशासन का ध्यान रखता था। अब मैं यही वाच करता हूं कि मुहम्मद दाऊद अंसारी की चप्पल सलामत है या नहीं! 😆