25 मई 2023
माँ छिन्नमस्ता का चित्रण घोर है। उनके और उनकी योगिनियों से इतर उनके सृजनात्मक स्वरूप की कल्पना करना कठिन है। मैं उस बारे में सोचने, ध्यान करने और जानकार लोगों से चर्चा करने को कहता हूं। पर वैसा कुछ नहीं होता। प्रेमसागर अभी अपने मोबाइल की जेबकतरी से उद्विग्न हैं। फिर भी वे अपना अकाउण्ट आदि सिक्योर करने में सफल होते हैं। मैंने पूछा नहीं, पर लगता है उन्हें नींद आयी होगी। नींद और गहरी नींद।
अगले दिन वे आगे की यात्रा को तैयार हैं। वे बज्रेश्वरी शक्तिपीठ की ओर निकल लिये हैं।
ईश्वर (या माँ) भीड़भाड़ वाली जगहों में रहते हैं? वे जेबकतरों, ठगों, आपकी जेब पर बक-ध्यान लगाये यांत्रिक रूप से मंत्रोच्चार करते पण्डा लोगों के बीच रहते हैं? मैं इस विषय में अंतिम तौर पर नहीं सोच पाता। मेरा सोचना था कि प्रेमसागर मुझे शायद कुछ उत्तर दे सकें – पर वे उत्तर देने के लिये नहीं हैं। वे मात्र आगे चलने के लिये हैं।

उत्तर तो खुद को खोजने हैं, जीडी। वैसे भी किसी ट्रेवलॉग के माध्यम से उत्तर थोड़े ही मिलते हैं।
चिंतपूर्णी से ज्वालाजी के रास्ते में सड़क घुमावदार थी, बहुत ही घुमावदार। तीखे यू टर्न। इतने कि कई जगह उनमें आने वाले वाहनों को देखने के लिये उन्नतोदर रिफ्लेक्टर लगे हैं। वाहनों की गति भी कम ही होती होगी। वृक्ष भी वे ही दीखते हैं जो मैदान में हैं। शायद इस स्थान की प्रकृति शिवालिक की तरह है। तराई के इलाके जैसी। प्रेमसागर के भेजे चित्रों में घुमावदार रास्ते, पहाड़ और घाटियां जरूर हैं, पर आम के वृक्ष भी हैं। प्रेमसागर का कहना है कि ये आम हमारे यहां के आम जैसे नहीं हैं। आकार में छोटे हैं।

व्यास नदी भी है और उसके खाड भी। खाड या खड्ड कुछ इस तरह हैं मानो नदी – व्यास या सतलुज स्त्री की मांग हों और खाड उससे निकली केशराशि या जटायें। जगह जगह बोर्ड लगे हैं कि खाड के पानी को पार करने का जोखिम न उठायें। पानी कभी भी तेज बहाव का हो कर खतरनाक हो सकता है।

एक सज्जन का चित्र भेजा है प्रेमसागर ने। बहुत सोच कर उनका नाम बता पाते हैं। रास्ते में आंधी-तूफान-पानी आया था तो दो तीन घण्टे उन्होने अपने घर में शरण दी थी। चाय और जलपान भी कराया था। “भईया, वे बोले कि एक घण्टा और रुक जायें तो उनकी पत्नी आने वाली हैं। तब वे भोजन करा सकेंगे। पर मुझे तो आगे बढ़ना था। जितनी देर भोजन का इंतजार करता उतने में तो काफी दूर चल लेता। मौसम ठीक होते ही निकल लिया।”

रास्ते में एक सज्जन मिले जो अकेले साइकिल से यात्रा में थे। यमुनानगर से ज्वालाजी की यात्रा में। वे प्रेमसागर के साथ दो तीन किलोमीटर पैदल चले। तीन किलोमीटर साथ और पैदल, पर प्रेमसागर उनका नाम तक नोट नहीं किये। फोन नम्बर भी नहीं। ट्रेवलॉग लेखन की जरूरत की ओर उनका ध्यान नहीं जाता। कैसा व्यक्ति है? क्या नाम है? क्या श्रद्धा है? संसार में कैसे व्यवहार करता है? अपने परिवार को कितना ध्यान देता है? यात्रा उसका मनोविनोद है, धर्म है, श्रद्धा है या पलायन है? अनेकानेक प्रश्न हैं। तीन किलोमीटर साथ चलना बहुत समय होता है इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिये। वह प्रेमसागर नहीं करते। करते भी हैं तो याद नहीं रखते। नोट करना तो और भी दूर की बात है। मैं प्रेमसागर से अनुरोध करता हूं कि वे चित्र भले ही खांची भर न भेजें। काम के दो चार ही भेजें पर साथ में अपनी आवाज में उसका विवरण दें। वह भी उनके अनुशासन में नहीं है।

उनकी यात्रा गजब की यात्रा है। पैदल इस सुरम्य प्रदेश में पदयात्रा अभूतपूर्व अनुभव है। पर वह ट्रेवलॉग में नहीं उतर रहा। मैं उस कमी को नेट पर उपलब्ध सामग्री से पूरा कर सकता हूं। पर वह तो कोई भी कर सकता है।
आज के युग में ट्रेवलॉग लेखन बहुत आसान है। साल छ महीने में चैटजीपीटी हमसे कहीं बेहतर लिख देगा। पर उसमें व्यक्तिगत अनुभव महत्व का है। वह चैटजीपीटी (या कोई और एआई का यंत्र) नहीं ला पायेगा।
वही लाना है। पर कैसे?

व्यास नदी पार की प्रेमसागर ने। सुंदर नदी। जैसी घुमावदार और सुंदर यात्रा है, वैसी ही इस नदी की प्रकृति है। इस स्थान के कुछ ही उत्तर में नदी पर बांध है। बड़ी झील। महाराणा प्रताप जलाशय। इस जगह से दस किमी उत्तर-पश्चिम में होगा वह जलाशय। आगे की पदयात्रा में वह नहीं गुजरेगा। मैं होता, एक घुमक्कड़ पदयात्री तो शायद वहां जाता।
दोपहर में प्रेमसागर ज्वालाजी पंहुच गये। धर्मशाला के सज्जन ने उनकी पदयात्रा की प्रकृति जान कर उन्हें आठ सौ की बजाय पांच सौ में ही कमरा दे दिया। मंदिर का दर्शन किया। भव्य है वह। “दो जगह ज्वाला निकलती है भईया। चित्र लेने की मनाही है। इसलिये एक जगह तो नहीं ले पाया पर दूसरी जगह दूर से फोटो लिया। शाम हो मंदिर के परिसर में बैठना बहुत अच्छा लगा तो वहां का भी चित्र ले लिया।”










मैं ज्वाला जी को विकिपेडिया पर सर्च करता हूं। इस शक्तिपीठ के अलावा कई अन्य स्थान हैं, जहां पृथ्वी से सतत ज्वाला निकलती है। अजरबैजान में बाकू (अतेशगाह) में है। उस स्थान पर हिंदू, सिख और पारसी – अग्निपूजक – तीनों के धर्मस्थान हैं। इसके अलावा नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर है और ज्वालादेवी मंदिर, शक्तिनगर, शोणभद्र, उत्तर प्रदेश में है।

जेबकतरे द्वारा चुराया मोबाइल मिला नहीं। चिंतपूर्णी में पुलीस वाले सज्जन उनके साथ मोबाइल की दुकानों पर गये। एक दुकान वाले ने बताया भी कि रेडमी का एक फोन बेचने कोई आया था। जेबकतरा वहीं मंदिर के पास की रहता-पलता है! पर वह हाथ नहीं आया। अब प्रेमसागर के पास जो फोन है वह क्विर्की है। उसकी कमी मैं प्रेमसागर को मोबाइल पर ऑडोयो मैसेज देने से पूरा करने का कहता हूं। पर वे उसमें दक्ष नहीं हैं।
काम चल रहा है। यात्रा चल रही है!
हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।
प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें। ***** प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi |
दिन – 83 कुल किलोमीटर – 2760 मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे। |