बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ, कांगड़ा

26-27 मई 2023

इस बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का कथानक पाण्डवों तक जाता है। त्रिगर्त (रावी और सतलुज के बीच का हिमाचल का क्षेत्र) में प्रवास कर रहे सभी पांचों पाण्डवों को एक रात देवी का स्वप्न आया कि वे नागरकोट (कांगड़ा के पास गांव) में हैं। आदेश सा था कि उनका मंदिर बनना चाहिये। पाण्डवों ने उनका नागरकोट में आनन फानन में मंदिर बनाया और दुर्गावतार में उनकी आराधना की।

उसके पहले का मिथक है कि सती का बांया स्तन गिरा था इस स्थान पर। यहां वे जयदुर्गा के नाम से जानी जाती हैं और यहां भैरव हैं अभीरु (भय से रहित?)।

कहा जाता है कि नागरकोट के शक्तिपीठ मंदिर को अनेकानेक बार आक्रांताओं ने लूटा था। मुहम्मद गजनी ने इसे कम से कम पांच बार लूटा। सन 1905 में यह मंदिर अंतत: एक भूकम्प में नष्ट हुआ। उसके बाद सरकार ने इसे पुख्ता आधार पर बनवाया। माता बज्रेश्वरी देवी एक पिण्ड के रूप में यहां विराजमान हैं।

प्रेमसागर ने 26 मई को ज्वालाजी से कांगड़ा की पदयात्रा की। ध्येय बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ का दर्शन करना था। 26 मई को सवेरे ज्वाला जी से निकल कर उत्तर की ओर बढ़े प्रेमसागर। मौसम गर्म नहीं था। रास्ते में एक साथ दो तीन घण्टे आराम करने की बजाय आधा आधा घण्टे का ब्रेक लिया। रास्ता ऊंचाई का ज्यादा था। चढ़ाई में मेहनत लगी पर मौसम ने साथ दिया तो चलना अखरा नहीं।

“भईया इस डिजाइन को सलेट (?) कहते हैं। इस डिजाइन की खासियत है कि गर्मी में यह मकान ठण्डा और सर्दियों में गर्म रहता है।

सवेरे रास्ते में एक मकान का चित्र दिया। साथ में एक ऑडियो मैसेज भी। “भईया इस डिजाइन को सलेट (?) कहते हैं। इस डिजाइन की खासियत है कि गर्मी में यह मकान ठण्डा और सर्दियों में गर्म रहता है। हिमाचल की जलवायू के मुफीद।”

ज्वालाजी से बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का पैदल रास्ता पैंतीस किमी से अधिक का है। ज्वालाजी से रानीताल तक की उत्तर की ओर यात्रा, उसके बाद कुछ दूरी तक बनेर खड्ड के समांतर पूर्व की ओर चल कर बाथू खड्ड को पार करना हुआ। बाथू खड्ड और बनेर का संगम भी वहीं पर है। आगे चार लेन की सड़क का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। वहां से आगे उत्तर-पूर्व की ओर चलते हुये बाण गंगा नदी पर कांगड़ा पुल है। “बाणगंगा में पानी का बहाव तेज है भईया। बहाव तेज तो बनेर खड्ड में भी है। बाथू खड्ड का जल धीमा है।”

आगे चार लेन की सड़क का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है।

शाम छ बजे के आसपास उनसे बात हुई। एक सज्जन अवतारसिंह रास्ते में तरबूज का ठेला लगाये बैठे थे। तरबूज तो वे पच्चीस रुपया किलो बेच रहे थे पर प्रेमसागार को बुला कर श्रद्धा से उन्हें मीठा तरबूज खिलाया। अवतारसिंह ने बताया कि उनके बाबा पाकिस्तान के पंजाब से यहां विस्थापित हो कर आये और यहीं रह गये।

एक सज्जन अवतारसिंह रास्ते में तरबूज का ठेला लगाये बैठे थे। तरबूज तो वे पच्चीस रुपया किलो बेच रहे थे पर प्रेमसागार को बुला कर श्रद्धा से उन्हें मीठा तरबूज खिलाया।

शाम के समय शक्तिपीठ मंदिर के आसपास सभी लॉज-धर्मशालायें भरी मिलीं। रेट भी ज्यादा थे। बड़ी मुश्किल से प्रेमसागर को एक हजार में रहने को जगह मिली। वह भी इस शर्त पर कि अगले दिन नौ बजे से पहले उन्हें निकलना होगा। आगे किसी और की बुकिंग है।

27 मई को सवेरे सवेरे प्रेमसागर ने बज्रेश्वरी शक्तिपीठ के दर्शन सम्पन्न किये। सवेरे भी भीड़ बहुत थी। राजकोट और मध्यप्रदेश के लोग बहुत थे। उन लोगों की माता जी कुल देवी हैं। जत्थे के जत्थे उनके दर्शन को आये हुये थे। इन्हीं के कारण सभी लॉज, धर्मशाला और होटल भरे हुये थे।

दर्शन के बाद एक जगह बैठ कर प्रेमसागर ने जलपान किया। तब कहा – “रेलवे स्टेशन जाऊंगा भईया। अगर नैरोगेज की कोई गाड़ी पठानकोट या किसी और जगह के लिये जाती होगी तो उससे, नहीं तो किसी बस से लौटूंगा। अब यहां का कार्य सम्पन्न हो गया है। आगे रहने की भी जगह नहीं है। रास्ते में अगर कांगड़ा किला दिखा तो उसे दूर से देखूंगा। और तो बस निकलना ही है यहां से।”

कांगड़ा घाटी के सौंदर्य के बारे में मैंने बहुत पढ़ा है। प्रेमसागर की जगह मैं होता तो वहीं तीन चार दिन गुजारता। पर प्रेमसागर का मिशन कुछ और है। वे तो शक्तिपीठों को छूने निकले हैं। उनके लिये दर्शन के संकल्प मुख्य हैं। श्रद्धा भी और सौंदर्य भी गौण हैं। मैं उनमें दोष नहीं देखता। पर अगर मेरी अपनी यात्रा होती तो एक अलहदा तरीके से होती। उसमें बनेर खड्ड, बाणगंगा, निर्माण कार्य, रास्ते में बन रहे बुगदों-सुरंगों, अवतारसिंह के तरबूजों और ज्वालाजी की धर्मशाला के मैनेजरों, चाय की दुकान वालों आदि के लिये कहीं ज्यादा समय होता। पर प्रेमसागर प्रेमसागार पाण्डेय हैं। मैं ज्ञानदत्त, ज्ञानदत्त पाण्डेय हूं। दोनो नामों में पाण्डेय होने की समानता के अलावा शायद बहुत कुछ समान नहीं है। उनकी पदयात्रा अलग है और मेरी डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) अलग!

दिन के सवा इग्यारह बजे हैं। प्रेमसागर की लोकेशन रानीताल के आसपास दीख रही है। लगता है प्रेमसागर को कोई ट्रेन नहीं मिली। वे बस से यात्रा कर रहे हैं वापसी की। शायद होशियारपुर पंहुचें या फिर जालंधर। उनसे बात हुई तो पता चलेगा।

फिलहाल यात्रा के इस दूसरे चरण में उन्होने पांच शक्तिपीठ दर्शन सम्पन्न किये हैं – कुरुक्षेत्र का देवीकूप भद्रकाली, जालंधर का त्रिपुरमालिनी, हिमाचल के चिंतपूर्णी, ज्वालाजी और बज्रेश्वरी देवी। इनमें से ज्वालाजी वह महाशक्तिपीठ भी है जिसका उल्लेख आदिशंकराचार्य ने अपने अष्टादश शक्तिपीठ स्तोत्र में किया है।

बड़ी उपलब्धि है प्रेमसागर की यह!

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 103
कुल किलोमीटर – 3121
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे। श्री अम्बिका शक्तिपीठ। भामोद। यात्रा विराम। मामटोरीखुर्द। चोमू। फुलेरा। साम्भर किनारे। पुष्कर। प्रयाग। लोहगरा। छिवलहा। राम कोल।
शक्तिपीठ पदयात्रा

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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