मेरे ब्लॉग में चित्र अभिन्न अंग सा बन गये हैं। जहां चित्र नहीं होता, वहां लेखन स्फुटित (ट्रिगर) नहीं होता। रेलवे की बहुत सी स्मृतियां हैं। मेरी नौकरी स्टीम इंजन के जमाने से है। तब वे उत्तरोत्तर समाप्त हो रहे थे। मालगाड़ियां डीजल इंजन से चलती थीं, पर सभी सवारी गाड़ियां और कुछ मेल-एक्स्प्रेस गाड़ियां तब भी स्टीम इंजन पर चल रही थींं। मसलन अवंतिका एक्सप्रेस तब भी स्टीम इंजन से चल रही थी। यार्डों में शंटिंग के लिये स्टीम इन्जन ही थे और मीटर गेज पर तो बहुत सी माल गाड़ियां भी स्टीम इंजन से चल रही थीं।

स्टीम इंजन थे, तो स्टीम लोको शेड थे। उनका ढेर सारा स्टाफ था। उनकी कॉलोनी थी। यार्ड में खुदरा वैगनों की शंटिंग के लिये भरापूरा यार्ड था। और यार्ड बहुधा ठसाठस वैगनों से भरा होता था। स्टीम शंटिंग इंजन बहुधा फेल हो जाते थे तो शंटिंग नहीं हो पाती थी।
इन सब की स्मृतियां हैं, पर चित्र एक भी नहीं हैं। किसी के चित्र कबाड़ कर लगाना अनुचित है। इसलिये कभी रेल सम्बंधी विषय पर लिखना नहीं हो पाया।
अब देखता हूं, कि एआई पिक्चर जेनरेटर को अगर अपने मन की बात बताई जाये तो वह करीब 50-60-70 प्रतिशत सही सही चित्र बना देता है। यह बड़ा शानदार जंतर है। इसका खूब प्रयोग किया जा सकता है।

मसलन जब मैंने प्रोबेशनरी अफसर की ट्रेनिंग की थी तो सन 1984-85 का समय था। आगरा में काफी ट्रेनिंग थी। यादों में स्टीम इंजन की गाड़ी, जमुना का पुल और नेपथ्य में ताजमहल की आकृति है। मैंने बिंग पिक्चर जेनरेटर को उस अनुसार चित्र बनाने को कहा और उसने लगभग सही बना दिया!

मेरी जब रतलाम रेल मण्डल में पहली पोस्टिंग हुई तो तीन सिंगल लाइन पैचों पर कलर लाइट सिगनलिंग लगाने का काम होने जा रहा था। उसके लिये एक परिचालन अधिकारी को स्टेशन यार्ड की नॉन-इण्टरलॉक काम के लिये उपस्थित रहना होता था। नॉन इण्टरलॉकिंग का अर्थ है कि सिगनलिंग सिस्टम की बजाय स्टेशन स्टाफ एक दूसरे से बात कर, रेल लाइन सेट करता था और उसके आधार पर ट्रेनों का आवागमन कराता था। इसमें कोई भी गलती बहुत भारी पड़ती थी। दुर्घटना हो सकती थी। लिहाजा एक अफसर को सब देखने के लिये रखा जाता था। सबसे जूनियर अधिकारी के कारण वह फील्ड का काम मुझे करना था।

उन तीन जगहों – भैरोगढ़, अनास और पंचपिपलिया – में हफ्तों एक चार पहिये के सैलून में रहा। उस काम की बहुत बारीक स्मृतियां हैं। अप्रेल-मई-जून का मौसम और तपता हुआ साबुनदानी जैसा छोटा सैलून। उस समय के लिये भी चित्र बनाने को मैंने फोटो जनरेटर को कहा तो उसने ठीकठाक चित्र बना दिये।
पिक्चर जेनरेटर मन की कल्पना को (लगभग) चित्र में दिखा देता है। यह बड़ी मजेदार बात है। अब गर्मी के मौसम में, जब घर से निकलना नहीं हो पा रहा; नॉश्टॉल्जिया के अनुसार एआई चित्र बना सकता है और चित्र के अनुसार ब्लॉग लेखन हो सकता है।
ब्लॉगिंग में एक नया आयाम जुड़ सकता है! :lol:
