घर गांव में उनसे उम्रदराज लोग जा चुके। अब वे ही हैं। ऐसा कहने में उनके स्वर में बहुत दुख का भाव नहीं आया। यूं बताया कि वह एक सत्य का वर्णन हो। जीवन की गति और नश्वरता सम्भवत उन्होने स्वीकार कर ली है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
घर गांव में उनसे उम्रदराज लोग जा चुके। अब वे ही हैं। ऐसा कहने में उनके स्वर में बहुत दुख का भाव नहीं आया। यूं बताया कि वह एक सत्य का वर्णन हो। जीवन की गति और नश्वरता सम्भवत उन्होने स्वीकार कर ली है।