प्रेमसागर जी को क्या करना चाहिये?

अपने संकल्पों की देशाटन यात्राओं से निपट कर लगभग छ महीनों से प्रेमसागर अपने गांव में हैं। बिहार में जीरादेई-सिवान के आसपास, उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा है उनका गांव। मेरे मन में कौतूहल था यह जानने का कि उनके मन में पुन: यात्रा की सनक उठती है या नहीं। उनसे पूछने की देर थी, और उन्होने अपनी सोच उधेड़ कर रखनी शुरू कर दी – “कुछ समय बाद निकलना है भईया। प्रयाग से गुड्डू मिश्रा जी भी कह रहे थे। साल में एक बार पंजाब से पाकिस्तान की हिंगलाज देवी के शक्ति पीठ तक बड़ा जत्था जाता है। उसी में शामिल हो कर बलूचिस्तान तक जाना है।”

प्रेमसागर की जो आदत बन गयी है उसके अनुसार वे दिन भर चल तो सकते हैं, पर ठहरने के लिये उन्हे बिस्तर और भोजन की जरूरत तो होती ही है। देश के अलग अलग हिस्सों में इसपर खर्च भी अलग अलग है। पर मोटे अनुमान से रोज 800-1000 रुपये का खर्च तो बैठता ही है। उसका इंतजाम शुरुआत में चलने के कारण ही हुआ। आखिर कितने लोग हैं जो नित्य चालीस-पचास किलोमीटर चल सकते हैं। वह भी दिनों-महीनों तक। अनजान जगहों में। वह लोगों को अभूतपूर्व लगा। उसके साथ प्रेमसागर ने अनुभवों को मुझे प्रेषित किया और मैने उसपर लिखा। जुगलबंदी ने काम चलाया। पर अब वह कठिन प्रतीत होने लगा है। जुगलबंदी हाँफने लगी। पढ़ने वालों को भी वह रुटीन लगने लगा।

वे एक समूह में चलने वाले पदयात्री होते तो शायद इतनी मुश्किल नहीं होती। तीन चार लोग हों तो कहीं भी मंदिर के ओसारे में रुक सकते। वे मिल कर भोजन बना सकते। और उनके पास शेयर करने के लिये कहीं ज्यादा रोचक ट्रेवलॉग हो सकते थे। वैसा होता नहीं दीखता। प्रेमसागर एकाकी पदयात्री रहे हैं। और अपनी प्रवृत्ति बदलना, समूह की तलाश करना कठिन काम है।

तब प्रेमसागर को क्या करना चाहिये? मेरे ख्याल से प्रेमसागर को लंबी यात्राओं की परिकल्पना करने की बजाय अपनी गांव की दिनचर्या कुछ इस प्रकार की बनानी चाहिये जिसमें धर्म, आस्था और यायावरी सब सध जाती हो।

प्रेमसागर के गांव से घाघरा नदी 14 किमी की कौव्वा उड़ान दूरी पर है।

मैने गूगल मैप पर उनके गांव की लोकेशन देखी। उनका गांव घाघरा/सरयू नदी से चौदह किलोमीटर कौव्वा उड़ान की दूरी पर है। प्रेमसागर को प्रति सप्ताह (हर सोमवार) या प्रति मास (हर अमावस्या) नदी तक जा कर जल ले कर आना चाहिये और गांव के शिवालय में शंकर भगवान को अर्घ्य देना चाहिये। इसमें यात्रा का ध्येय भी सिद्ध होगा, धर्म भी सधेगा और उनकी कांवर यात्रा का चरित्र भी सतत बरकरार रहेगा।

प्रेमसागर के घर के आसपास कई छोटी बड़ी नदियां हैं। हर नदी की अपनी कथायें हैं। “फलानी नदी तो उस रास्ते में पड़ती है जब रामचंद्र जी विवाह के बाद बारात के साथ मिथिला से अयोध्या लौट रहे थे। बारात प्यासी थी और राम जी ने एक ही बाण मार कर पानी का सोता सृजित कर दिया था। वह बाणगंगा मेरे गांव से तीन किलोमीटर दूर है।” – प्रेमसागर ने बताया। इसी प्रकार अन्य नदियों की अपनी अपनी कथायें हैं। समय के साथ ये नदियां अब सूख गयी हैं या बरसाती नदियों में तब्दील हो गयी हैं। उन नदियों की यात्रा और उनका ऐतिहासिक-पर्यावरणीय विवरण प्रेमसागर दे सकते हैं। इसके लिये ऐसा नहीं कि उन्हें बहुत शोध करना होगा। यह जो चला/देखा/सुना/अनुभव किया के आधार पर ही किया जा सकता है।

प्रेमसागर के घर के आसपास कई छोटी बड़ी नदियां हैं। हर नदी की अपनी कथायें हैं।

हमारे आसपास का बहुत सा मिथक, इतिहास और लोक जीवन ऐसा है जिसको लिखा जा सकता है। प्रेमसागर उसका निमित्त बन सकते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्राओं और शक्तिपीठ यात्राओं ने प्रेमसागर के व्यक्तित्व का यह देखने और रिपोर्ट करने का पक्ष मांज दिया है। उस गुण का प्रयोग होना चाहिये।

मेरे कहने पर प्रेमसागर एक दिन निकले अपने आसपास को देखते-सहेजते हुये। सवेरे की गोल्डन-ऑवर की रोशनी में चित्र भेजे। कई तरह के दृश्य। साइकिल सम्भाले उनके पिताजी हैं। प्रेमसागर का कहना है कि उनके पिताजी अब भी पांच-सात किलोमीटर साइकिल चलाते हैं। रोज। उनके परिवेश में जिउतिया की चौरियां दिखती हैं। खेतों में फसल है और कऊड़ा तापते लोग हैं। चाय की दुकान वाला है। सब कुछ सामान्य सा है पर कौन कहता है कि सामान्य अभूतपूर्व नहीं होता। प्रेमसागर को वह अभूतपूर्व पक्ष उभारना चाहिये। भौगोलिक यात्रा की जगह जीवन की यात्रा का पक्ष सामने आना चाहिये।

देखते हैं, प्रेमसागर क्या करते हैं। वे गांव के शिवाला पर घाघरा नदी से जल ला कर शंकर जी को चढ़ाने का रुटीन बनाते हैं या नहीं। या फिर पुन: किसी लम्बी यात्रा पर निकलना चाहते हैं?
(बहुत से लोग प्रेमसागर जी के बारे में पूछते रहे हैं। सो मैंने यह पोस्ट लिखी। उनके बारे में बहुधा मैं सोचता रहा हूं। लिखने का अवसर नहीं बना था…)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “प्रेमसागर जी को क्या करना चाहिये?

  1. आपका ये कहना कि पाठकों (सभी शामिल हुए इसमें तो) को रूटीन लगने लगा था, कम से कम मेरे मामले में तो तो सही आंकलन नहीं रहा. मैं तो आपके ब्लॉग को रोज दिन में दो बार रिफ्रेश करके देखता हूँ कम से कम.

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    1. आपको धन्यवाद। मैं आंकड़ों के आधार पर कह रहा हूं। कुछ आप जैसे लोग – शुभेच्छु लोग जरूर हैं। उनके कारण ही मुझे सम्बल मिलता है।

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