काली कोयल, जिसे स्त्रीलिंग का सम्बोधन भारतीय साहित्य में मिलता है, वह असल में नर कोयल है। मादा कोयल तो यह भूरी, चितकबरी पक्षी है। बेचारी! इसका उल्लेख किसी ने न किया। साहित्यकारों का ऑब्जर्वेशन और सौंदर्यबोध अजीब ही है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
काली कोयल, जिसे स्त्रीलिंग का सम्बोधन भारतीय साहित्य में मिलता है, वह असल में नर कोयल है। मादा कोयल तो यह भूरी, चितकबरी पक्षी है। बेचारी! इसका उल्लेख किसी ने न किया। साहित्यकारों का ऑब्जर्वेशन और सौंदर्यबोध अजीब ही है।