कलिजुग केवल नाम अधारा! उम्र के साथ लग रहा है कि माया मोह, छिद्रांवेषण आदि से कुछ विमुख हुआ जाये। कलिसंतरणोपनिषद् में नारद ने तारकबह्म नामक मंत्र जाप की बात कही है। यह मंत्र लोक प्रसिद्ध है।
“हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।।”
नामक इस तारकबह्म मंत्र का जप तो मैं बचपन से करता आ रहा हूं। एक रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करते हुये जप करने का अभ्यास करता रहा हूं। पर वह बहुत व्यवस्थित नहीं था। कभी हुआ, कभी लम्बा अंतराल हो गया। उस अभ्यास में कोई टार्गेट नहीं थे। इसलिये कोई आदत नहीं बन सकी।
रोज एक घंटा जप किया जाये तो एक सप्ताह में खींच-तान कर 6912 जप करने का अनुष्ठान पूरा किया जा सकता है। इतना समय तो जप के माध्यम से एकाग्रता के प्रयोग को दिया ही जा सकता है।
अब, इतनी जिंदगी बीत जाने के बात पता चला कि रुद्राक्ष की 108 जप की माला के साथ एक साक्षी-माला का विधान है। इस माला में 20 मनके होते हैं जो मोटे धागों की लड़ी से गुंथे होते हैं। यह माला खुली होती है – एक लकीर की तरह। इसको अपनी सुमिरनी थैली के साथ बांध लिया जाता है। बांधने में साक्षी माला के 16 मनके एक ओर और चार दूसरी ओर रहते हैं। एक जप माला (108जप) पूरा करने पर साक्षी माला के 16 मनकों में से एक को ऊपर सरका लिया जाता है। इसी तरह 16 मनके ऊपर होने पर चार मनकों में से एक को ऊपर सरकाया जाता है और 16 मनके नीचे की ओर यथावत कर दिये जाते हैं। इस तरह 108X16X4=6912 बार जप करने के बार एक अनुष्ठान पूरा हो जाता है।

मैने गणना की कि 108 बार तारकबह्म मंत्र जप करने में साढ़े सात मिनट लगते हैं। इस तरह पूरे 6912 बार जप करने में आठ घण्टे लगेंगे। रोज एक घंटा जप किया जाये तो एक सप्ताह में खींच-तान कर 6912 जप करने का अनुष्ठान पूरा किया जा सकता है। इतना समय तो जप के माध्यम से एकाग्रता के प्रयोग को दिया ही जा सकता है।
मैने अमेजन से यह जप वाली थैली और साक्षी माला खरीद ली। साक्षी माला को विधिवत थैली से बांध लिया। एक सौ आठ रुद्राक्ष के मनके वाली सुमिरनी मेरे पास पहले से ही है। बस, जप का अभ्यास प्रारम्भ करने की तैयारी हो गयी है!

भगवान जगन्नाथ जी के चित्र वाली यह थैली बहुत सुंदर है। अपने घर के एकांत में इसका इस्तेमाल कर अभ्यास किया जायेगा। किसी सार्वजनिक अवसर पर तो करने से बचा जायेगा। अन्यथा लोग (वाजिब तौर पर) ढोंगी भक्त का लेबल चिपका ही देंगे। वैसे भी भगवन्नाम जप तो नितांत व्यक्तिगत साधना है। उसे वैसे ही होना चाहिये।
जप को धर्म से जोड़ कर प्रस्तुत करने से अन्य धर्मावलबियों एगनॉस्टिक और नास्तिकों को तथा सेकुलर लोगों को हो सकता है अच्छा न लगे। वे राम और कृष्ण का नाम लेने की बजाय अपने धर्म के मंत्रों या किसी फिल्मी सितारे का नाम भी जप सकते हैं। इस्लाम में भी तस्बीह और इसाईयत में रोजेरी का प्रचलन तो है ही। जगन्नाथ जी के चित्र की बजाय बिना किसी चित्र के भी जप-थैली मिलती है।
कलिजुग केवल नाम अधारा! श्रीमन्नारायण! जय राम जी की!

मान्यवर,
नाम जप को संख्या से क्यों जोड़ते हैं? जितना बन सके करें। प्रेरणा जितनी मिलेगी, उतना ही कर पाएंगे। संकट काटने के लिए १०० बार गिने हुए चावल/गेंहू के दाने सामने रख कर हनुमान चालीसा पाठ करने वाले बहुत मिल जाएंगे, बिना संकट के…..? अब वह पाठ किस भाव से होता है जब मन बार बार दाने की दोनों ढेरियों को देखता रहता है।
जितना प्रभु अनुकम्पा से बन रहा है, उतना ही करें। एक समय ऐसा आ जाएगा जब अन्तर्मन में स्वतः जाप की अनुभूति होने लगेगी। मनके गिनती का चक्कर छोड़ कर अपने इष्ट की छवि का ध्यान कर नाम जपें। एक बात और, जितना बदा है उतना ही कर पाएंगे।
शेष प्रभु इच्छा।
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“एक समय ऐसा आ जाएगा जब अन्तर्मन में स्वतः जाप की अनुभूति होने लगेगी।”
ध्येय तो वही है!
सही कहा आपने।
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