*** टहनियों की छंटाई ***
सुग्गी के लड़के हैं – गोविंद और राजा। गोविंद बीस-इक्कीस का होगा और राजा उससे दो-तीन साल छोटा। दोनो ने मिल कर मेरे घर के सागौन और पलाश के उन टहनियों को छांटा जो सूरज की रोशनी रोकती थीं।
मौसम बदलने की अपनी जरूरते हैं। गर्मी में हमें छाया चाहिये। सर्दी में धूप। गर्मी में पेड़ भी बढ़ते हैं। ज्यादा से ज्यादा धूप में उनकी पत्तियां उनकी बढ़त के लिये भोजन बनाती हैं। सर्दियों के पहले वे भी अपनी पत्तियां त्यागते हैं। उस समय उनकी भोजन बनाने की गतिविधि भी धीमी पड़ जाती है। पत्तियों के साथ उनकी टहनियां भी जंगल में झरती हैं। प्रकृति संतुलन बनाती है। शायद उसी संतुलन का एक मानवीय भाग हमारे द्वारा पेड़ों की छंटाई है। पहले मैं सोचता था कि पेड़ दर्द से चीखते होंगे कुल्हाड़ी की मार पर। पर यह सोच मुझे एक तर्क देती है छंटाई को सही ठहराने के लिये। यह तो अनुभव जन्य सत्य है कि छंटाई से पेड़ ज्यादा बढ़ते हैं। उनकी केनॉपी (छतरी) ज्यादा सुगढ़ बनती है।
चपल हैं गोविंद और राजा। सुग्गी ही उन्हें बुला लाई पेंड़ छांटने के लिये। वे लप्प लप्प चढ़ गये पेड़ों पर। उनको चढ़ता देख विकासवाद के सिद्धांत पर मेरा यकीन और पुख्ता हो गया। मानव निश्चय ही वानर से ही आया है। हमारी जरूरतों के मुताबिक टहनियां छांटी उन्होने। एक भी कुल्हाड़ी का वार निरर्थक नहीं था उनका। अपनी ऊर्जा का सधा हुआ उपयोग किया उन्होने।
पेड़ों की फुनगी के पास की टहनियां छांटना कठिन काम था। उतनी ऊंचाई से गिरनेवाला निश्चय ही घायल हो जायेगा। जमीन पर खड़ी सुग्गी को टहनियों की लकड़ी का लालच भी था और अपने बेटों की सलामती की फिक्र भी। उत्तेजना में वह तेज आवाज में बोलने लगी थी। पर बेटे उसकी बात लगभग अनसुना कर अपने हिसाब से साध कर टहनियां छांटते गये। जोखिम का काम था, पर सम्पन्न हुआ। बीस पच्चीस मिनट में काम खत्म कर लिया। टहनियां भी चारदीवारी के उसपार गिराईं उन्होने जिससे उठा कर ले जाने में उन्हें सहूलियत हो।
टहनियां और पत्तियां ही उनका मेहनताना है। आसन्न सर्दियों में टहनियां और पत्तियां हर कोई ग्रामीण संग्रह करना चाहता है। गोविंद और राजा की तरह जो छंटाई कर सकते हैं वे अपनी कुल्हाड़ी के पराक्रम से काम ले रहे हैं। जो बच्चे या अशक्त हैं, वे भी दिन में दो तीन घंटे झरी हुई पत्तियां और छोटी टहनियां बीन रहे हैं। जैसे जैसे सर्दी बढ़ेगी, यह गतिविधि भी बढ़ेगी।
छंटाई के बाद मैं खुश हूं। अपने बैकयार्ड में आती धूप को बार बार जा कर निहारता हूं। सुग्गी और उसका परिवार भी खुश है। शयाद पेड़ भी खुश हों। जिस तरह से सुंदर नाऊ मेरी हेयर कटिंग कर जाता है तो अपने को हल्का पाता हूं, पेड़ों को भी शायद वैसी ही अनुभूति होती हो। पेड़ों के नीचे के छोटे पौधे और लतायें भी प्रसन्न होंगे। कुछ और धूप मिली उन्हें!
#घरपरिसर #गांवदेहात

