<<< मूस मारने की दवाई वाला >>>
कई तरह के फेरीवाले दीखते हैं #गांवदेहात में। आज अलग सा लगता आदमी दिखा। एक ओवर साइज का कोट पहने था वह। उसकी पुरानी साइकिल जिसमें मडगार्ड, चेन कवर जैसी कोई अनावश्यक एसेसरीज नहीं थी; एक अलग से लगाया गया कैरियर था और पुराना बैटरी ऑपरेटेड लाउडस्पीकर लगा था। लाउडस्पीकर को तारों के जरीये बड़े कैरियर पर रखी बैटरी से कनेक्ट किया गया था। उसके पीछे एक संदूक या सूटकेस जैसा कुछ रखा था। आगे हैंडलबार से झूलता एक थैला बना था जिसमें भी कुछ बेचने का सामान रखा होगा। ये सब एक अजूबे सा दृश्य बना रहे थे।
मुझे लगा कि यह उम्रदराज अजीबोगरीब आदमी भले ही गरीब हो, तकनीकी ज्ञान का माहिर होगा। भारतीय जुगाड़ तकनीक का एक सटीक नमूना।
वह जितना टेक-सेवी था, उसका फेरीवाले के रूप में बोलना उतना ही खुरदरा था। उसमें बहुत अपील न थी। सादा प्लेन सा अनाउंसमेंट कर रहा था कि मूस मारने की दवाई ले लो। मूस मारने की दवाई कौन खरीदेगा जब मार्केट में रैट-किल के नाम से बहुत कुछ बिकता है? मेरे मन में सवाल उभरा तो अपनी साइकिल रोक कर मैं उसके पास गया और पूछा – ‘चूहे मारने की दवाई बेच रहे हो?‘
“हां। मूस की और दाद खाज खुजली की भी। फायदेमंद है। बहुत समय से यह बेचता हूं, घूम घूम कर। सगरौं (सब तरफ)। इस जगह रोज नहीं आता। पंद्रह बीस रोज में एक बार।”
मैने कहा – ‘कभी देखा नहीं। मेरा घर वो है, वहां तो कभी नहीं आये।‘
“अभी आता हूं। इस तरफ जाता हूं और फिर उसके आगे।” उसने पसियान की ओर दिखाया।
मैने उसका नाम पूछा। फोटो खींचने और नाम पूछने पर वह असहज हो गया लगता था। बिना ठीक उत्तर दिये आगे बढ़ गया। उसके बाद घर पर मैं इंतजार करता रहा पर वह आया नहीं।
शक्ल से मुझे वह मुस्लिम लगा। वे लोग ही सामान्यत: उपकरणों के साथ जुगाड़ तकनीक लगाते हैं। उसके मन में फोटो खींचने और ज्यादा पूछने के कारण मेरे बारे में पूर्वाग्रह पनपा होगा और मेरे मन में भी उसके बारे में पनपा। लेकिन शाम को मैने अपने वाहन चालक अशोक से पूछा कि क्या उसके घर के आसपास मूस मारने की दवाई बेचने वाला आता है?
“हां, बहुत पुराना है। साइकिल पर बेचता है। उसकी दवाई भी कारगर है। मूस पटपटा कर मर जाते हैं। यहीं महराजगंज में रहता है। महीना दो महीना में आता है। कोई बनिया है।” – अशोक ने बताया।
मेरे मन में मुसलमान वाली थ्योरी पनपी थी। यह जरूर है कि वह आदमी अपना परिचय नहीं देना चाहता था। उसने अपना ठिकाना औराई बताया जबकि अशोक उसे महराजगंज का बता रहा था। और वह मेरे घर आया भी नहीं। अब पता नहीं वह क्या और कौन है।
मैले कुचैले वस्त्रों, अजीब सी साइकिल और पुराने उपकरणों के साथ अजीब सी दवाइयां बेचता आदमी – उसके पास जिंदगी की कोई न कोई कहानी/कहानियां होंगी। वह खुजली की दवाई बेचता है और मेरे मन में खुजली दे गया कि मैं उसके बारे में कैसे भी हो, पता करूं।
उसका चित्र है मेरे नोकिया के फीचर फोन में और उसके बारे में यह ब्लॉग पोस्ट है। हो सकता है वह फिर कभी मिले। उसकी जिंदगी जानने के लिये इचिंग जो हो रही है! :lol:
#गांवदेहात #फेरीवाला
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