<<< कुम्भ मेला स्पेशल का रेक >>>
मेरे घर के समीप के कटका रेलवे स्टेशन पर एक मेला स्पेशल का रेक स्टेबल हो गया है। मैं ध्यान से देखता हूं – इसमें अधिकांश उत्तर पूर्वीसीमांत रेलवे के कोच हैं। उनपर इंजन भी सिलीगुड़ी (इलेक्ट्रिक) शेड का लगा है। डब्ल्यू ए जी 9 इंजन का नाम भी लिखा है – त्रिस्त्रोता।
त्रिस्त्रोता में, जलपाईगुड़ी के पास भ्रामरी शक्तिपीठ है। सिलीगुड़ी,त्रिस्त्रोता के नाम मुझे प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्राओं की याद दिलाते हैं। त्रिस्त्रोता की यात्रा का विवरण यहां पर है – https://gyandutt.com/2023/04/24/shree-tristrota-shaktipeeth/
लगता है कुम्भ के लिये यह रेक एन.एफ. रेलवे के योगदान से आया है। कुम्भ मेला स्पेशल रेक देख कर मुझे सन 2013 का कुम्भ याद हो आया। उस समय मैं उत्तर मध्य रेलवे का माल यातायात प्रबंधक था। प्रयाग और उसके समीप के स्टेशनों पर एक एक कर मेला स्पेशल के रेक आये जा रहे थे। उन सब का हिसाब किताब, उनके इंजनों और कोचों का परीक्षण और उनकी स्टेबलिंग का कार्य – यह सब परिचालन कर्मियों और अधिकारियों की मुख्य गतिविधि हो गई थी। मालगाड़ियों का परिवहन जो सामान्यत: सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था, कुम्भ के अवसर पर बैक सीट ले चुका था।
अपनी रेल सेवा के दौरान, सिवाय अंतिम दो वर्षों के जब मैं पूर्वोत्तर रेलवे के परिचालन का चीफ था; मैं मूलत: फ्रेट-ट्रैफिक वादी ही रहा। माल यातायात को मैं रेलवे की आय का स्रोत समझता था (अभी भी मानता हूं) और यात्री परिवहन मुझे बोझ लगता था। सुविधाओं के मुकाबले यात्री लोग खर्चा बहुत कम देते थे और शिकायतें बेशुमार करते थे। सवारी गाड़ियां तो समय सारिणी से चलती थीं पर माल गाड़ी बनाने और चलाने में ही असली मशक्कत थी। रेलवे भी माल यातायात को महत्व देती थी और मैं भी उस ग्लोरी में पूरी रेल सेवा के दौरान जिया।
अब मेरी सोच रुपया में चार आना भर बदल गई है। अब आते जाते कटका स्टेशन पर इस स्टेबल किये गये मेला स्पेशल के रेक को देख कर कुम्भ के बारे में मेरी स्मृतियां हरियरा रही हैं। मेरी सेवा में पहला कुम्भ 1992 का सिंहस्थ था उज्जैन में। तब मैं रतलाम रेल मंडल में वाणिज्य विभाग संभालता था। उसके बाद 2013 के प्रयाग महाकुम्भ के दौरान मैं उत्तर मध्य रेलवे में माल यातायात का मुखिया था। पर वे स्मृतियां अपने आप में लेखन का विषय नहीं बन सकेंगी। वर्तमान के महाकुम्भ के दौरान जो कुछ हो रहा है, उसे ले कर स्मृतियां कुरेदी जा सकती हैं।
कटका स्टेशन पर यह स्टेबल रेक वही कुरेद रहा है।
सन 1992 के सिंहस्थ के दौरान तीन-चार लाख के आसपास मेला यात्री रेलवे ने डील किये रहे होंगे। प्रयाग के 2013 के कुम्भ में उससे अनेक गुना ज्यादा तीर्थ यात्रियों की कल्पना थी। और अब तो पिछले महाकुम्भ से दो तीन गुना ज्यादा मेलहरू होंगे। अब तो सरकार हिंदुत्व वाली है तो तामझाम भी ज्यादा ही होगा!
एक सप्ताह हो गया इस रेक को यहां खड़ा रहे। इंजन भी लगा हुआ है। लगता है पूरे मेला के दौरान इस रेक के साथ यह इंजन जुड़ा रहेगा। रेलवे अब बहुत धनी हो गई है इंजनों की उपलब्धता के मामले में। जब मैने रेलवे ज्वाइन की थी तो कोच और वैगनों की किल्लत तो थी ही, इंजन की उपलब्धता सबसे क्रिटिकल हुआ करती थी। मुझे याद है कि उस समय उस रेल मंडल का परिचालन इंचार्ज होना बड़ा पनिशमेंट होता था, जिसमें कोई डीजल शेड न हो। डीजल इंजन ही चलते थे उस समय। विद्युतीकरण भी बहुत कम ट्रैक का हुआ था। उज्जैन के सिंहस्थ मेला के दौरान भी सभी ट्रेनें डीजल इंजनों से चली थीं। कुछ मीटर गेज की गाड़ियां तो स्टीम इंजन पर भी थीं. विशेषत: उज्जैन-इंदौर खंड पर। अब तो डीजल इंजन का काम बहुत कम हो गया है। स्टीम इंजन तो बचे ही नहीं। बिजली के इंजनों की बजाय शायद इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट वाले रेक ज्यादा चलेंगे इस महाकुम्भ में।
मैने अपने पुराने सम्पर्क सूत्र प्रसुप्त कर रखे हैं पर अब उन्हें सयास जागृत कर पता करने की कोशिश करूंगा कि क्या गतिविधियां हो रही हैं मेला के संदर्भ में; और उस आधार पर लिखने का भी प्रयास करूंगा।
आज कोहरे में देखता हूं – कटका रेलवे स्टेशन से वह रेक अभी हिला नहीं है। हफ्ता भर बाद ही मेला ट्रेफिक गरमायेगा। तब तक का समय है मेरे पास जानकारियां जुटाने के लिये।
#महाकुम्भ25


Nice post 🌅🌅
LikeLiked by 1 person
जय हो, रस्तोगी जी!
LikeLike