घर घर जल का छल

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मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर बनी है पानी की टंकी। उसपर लिखा है कि उसकी क्षमता 175 किलोलीटर की है। मैं उस टंकी परिसर तक पैदल चला गया। परिसर पर ताला तो नहीं लगा था पर वहां कोई दिखा नहीं। वहां विशालकाय सोलर पैनल लगे हैं। लगता है उनसे ही भूगर्भ का जल ऊपर टंकी में पम्प होता है। (Pic-3)

परियोजना का एक बोर्ड परिसर में लगा है। उसके अनुसार यह परियोजना 27 मार्च 2024 को सम्पन्न हो गई है। इसके अनुसार आसपास के पांच गांवों के 413 घरों के 2730 लोग लाभान्वित हुये हैं। इसकी वितरण पाइपलाइन 13 किलोमीटर से ज्यादा है और इसपर सरकार ने 295 लाख रुपये खर्च किये हैं। (Pic-1)

इस बोर्ड को पढ़ने के बाद टीस हुई मन में। यह टंकी जब बन चुकी थी, तब मैने अपने घर में सवा लाख रुपये खर्च कर पानी के लिये निजी बोरिंग कराई थी। अगर इस परियोजना ने पानी, जैसा यह पट्ट कहता है, मिल रहा होता तो बोरिंग कराने की क्या जरूरत होती? मेरे घर के अलावा एक दर्जन और गांव वालों ने मेरे उपक्रम के बाद बोरिंग कराई है। इस परियोजना पट्ट के अनुसार उन सभी घरों को योजना में कवर किया गया है।

असल में सिवाय पानी की टंकी और परियोजना पर हुये खर्च के, कोई और सूचना इस बोर्ड में सही नहीं है। टंकी में पानी आया है पर घरों में नहीं। अधिकांशत: पाइप अभी बिछे नहीं हैं। उनसे घरों को कनेक्शन तो दूर की बात है। पिछले लोक सभा चुनाव तक घर घर जल का खूब हल्ला था। पता नहीं उसके जगह जगह रखे पाइप देख कर कितने वोट मिले, पर पाइप रखे के रखे रह गये। और चुनाव सम्पन्न होने के बाद इस योजना की बात करने वाला कोई नहीं था।

इस टंकी के पास करीब 100 मीटर दूर शंकर भगवान का मंदिर है। उससे लगी एक पानी की टोंटी के लिये पाइप जल मिशन वालों ने टंकी बनने के पहले ही लगा दी थी। शायद इस आशय से कि परियोजना के जल की पहली सप्लाई शंकर जी के मंदिर पर होगी। पर मैने देखा वह बिना टोंटी के और बिना पानी के वैसी सी उपेक्षित सी जगह है। इतनी पास भी पानी नहीं पंंहुचा पाया जल विभाग। (Pic-2)

अब प्रयागराज में कुम्भ होने जा रहा है। एक बार फिर जल विभाग सक्रिय हुआ है। बड़े बड़े पोस्टर दीवारों पर चिपका दिये गये हैं। कुछ मशीनें और कर्मी भी दिख रहे हैं। शायद अगले कुछ महीनों में कुछ हो जाये। पर फिलहाल तो पानी सप्लाई के मामले में सब कुछ वैसा ही है जैसा इस परियोजना के पहले हुआ करता था।

इस पोस्ट का कोई राजनैतिक आशय नहीं है। इसके पहले की सरकारें भी सरकारी परियोजनाओं के बारे में इतनी ही अक्षम रही हैं; या शायद ज्यादा ही। वे शायद कहीं बड़े ठग थे। पर उनका ठग होना इनकी अकुशलता को सही नहीं ठहरा सकता। (ठग शब्द का प्रयोग मेरी खुराफात नहीं। बिहार और उत्तरप्रदेश की सरकारों के बारे में अपनी पुस्तक The Age of Kali में विलियम डेलरिम्पल ने लालू प्रसाद और मुलायम सिंह जी की सरकारों के लिये यह कई बार किया है।)

घर घर जल तो फिलहाल छलावा ही रहा है। बोर्ड पर लिखी जानकारी भी गलत बयानी है। समय बदला, सरकारें बदलीं, पर नौकरशाही अकुशल और भ्रष्ट बनी ही हुई है और राजनेता भी अब बहुत आशान्वित नहीं करते। कुशल सरकार और विकास अब न सत्ता पक्ष के और न प्रतिपक्ष के मुद्दे हैं। छल और छलावा नियति ही लगती है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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