घर परिसर में साइकिल चलाते समय गूगल फिट पर साइकिल अभ्यास का डाटा सृजित करना और साथ ही कोई पुस्तक या पॉडकास्ट सुनते रहना थोड़ा नियोजन मांगता है। गले में एक ब्ल्यूटूथ वाला नेकबैंड और पॉकेट में मोबाइल चाहिये। घर में सूटेड बूटेड रहना बेकार है। अपनी मेज पर बैठे जब मन ऊबे तो साइकिल ले कर घरपरिसर में गोल चक्कर लगाना उम्दा व्यायाम है।
इसका जुगाड़ मेरे लिये घर में पायजामा-बनियान/टीशर्ट में रहना सही ड्रेस कोड है। उसमें मोबाइल रखने के लिये एक पॉकेट वाली गंजी-बनियान होनी चाहिये। आजकल बंडी स्टाइल की बांह वाली या बिना बांह की (सेंडोज़) बनियान आने लगी है जिसमें आगे मोबाइल रखने के लिये पॉकेट बना होता है। मैने कल एक जोड़ा वही गंजी खरीदी।
आज भादौं मास (भाद्रपद) का अंतिम दिन है। कल से पितृपक्ष प्रारम्भ होने वाला है। पितृपक्ष में नया कपड़ा नहीं पहना जाता। सो पूरी प्लानिन्ग से दोनो नई बनियान धो कर सुखा डालीं। हिदायत दी कि आज एक एक कर दोनो पहन कर अवांस लूं। अंवास अनुष्ठान उन्हें पुराना बना देगा। फिर मजे से वे कुआर के महीने में पहनी जा सकेंगी। मैने पत्नीजी का आदेश पालन बिना हीलाहवाली के किया।
बंडी नुमा गंजी पहन कर, कान में ब्ल्यूटूथ खोंसे चालीस मिनट साइकिल भी चला ली है। जिससे बनियान पर्याप्त पुरानी मानी जाये।

गांवदेहात में पहले लोग दर्जी की सिली बंडी पहनते थे। अब भी थोड़े उम्रदराज लोग वैसे दिख जाते हैं। होजियरी की बनियान वालों ने अब उसको उपयोगी समझ कर आगे पॉकेट वाली बनियान बनानी प्रारम्भ कर दी है।
पहले वाले पुरनिया लोग आगे के पॉकेट में चुनौटी, सुरती और मुड़े तुड़े मींज मींज कर रखे पचास सौ रुपये के नोट रखते हैं। मेरे जैसे नई काट के पुरनिया लोग उसमें स्मार्टफोन और नोकिया वाला 2 मेगापिक्सल वाला फीचर फोन रखते है। नोट मेरे पास होते नहीं। उसकी बजाय मोबाइल में ही बैंक का खुदरा खाता साथ चलता है।
“बंडी का पॉकेट अब चुनौटी से नहीं, चार्जिंग से भरा जाता है।”
“नोट गायब, मोबाइल हाज़िर — नया जमाने का पुरनिया हूँ मैं!” 😁
[ दिनांक 7 सितम्बर 25 को लिखी पोस्ट ]
