बचपन से शुरू करता हूं। सन 1958 रहा होगा। तीन साल का ज्ञानदत्त। खेलते कूदते अचानक दबाव बना तो दौड़ लगाई घर के सामने के दूसरे खेत में। नेकर का नाड़ा नहीं खुला तो पेट सिकोड़ कर किसी तरह उसे नीचे किया। निपटान में एक मिनट लगा होगा बमुश्किल। पानी की बोतल का प्रचलन नहींContinue reading “तुर्री – कमोडानुशासन से बिडेटानुभव तक”
