“इनकी रचना को नए ब्लॉग पर डाल दो . दो धेले में नहीं बिकेगी . आज ज्ञानदत्त नाम बिक रहा है” मुझे दो धेले में पोस्ट नहीं बेचनी। नाम भी नहीं बेचना अपना। और कौन कहता है कि पोस्ट/नाम बेचने बैठें हैं?
Category Archives: हिन्दी
अण्टशण्टात्मक बनाम सुबुक सुबुकवादी पोस्टें
हमें नजर आता है आलू-टमाटर-मूंगफली। जब पर्याप्त अण्टशण्टात्मक हो जाता है तो एक आध विक्तोर फ्रेंकल या पीटर ड्रकर ठेल देते रहे हैं। जिससे तीन में भी गिनती रहे और तेरह में भी। लिहाजा पाठक अपने टोज़ पर (on their toes) रहते हैं – कन्फ्यूजनात्मक मोड में कि यह अफसर लण्ठ है या इण्टेलेक्चुअल?! फुरसतियाContinue reading “अण्टशण्टात्मक बनाम सुबुक सुबुकवादी पोस्टें”
बी एस पाबला – जिन्दगी के मेले
कल एक टिप्पणी मिली अमैच्योर रेडियो के प्रयोगधर्मी सज्जन श्री बी एस पाबला की। मैं उनकी टिप्पणी को बहुत वैल्यू देता हूं, चूंकि, वे (टिप्पणी के अनुसार) एक जुनूनी व्यक्ति लगते हैं। अपनी टिप्पणी में लिखते हैं – “अकेले ही पॉपुलर मेकेनिक जैसी पत्रिकायों में सिर गड़ाये रखना, वो इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेंट्स के लिये दर दरContinue reading “बी एस पाबला – जिन्दगी के मेले”
