मेरी गली में कल रात लोगों ने दिये जला रखे थे। ध्यान गया कि एकादशी है – देव दीपावली। देवता जग गये हैं। अब शादी-शुभ कर्म प्रारम्भ होंगे। आज वाराणसी में होता तो घाटों पर भव्य जगमहाहट देखता। यहां तो घाट पर गंगाजी अकेले चुप चाप बह रही थीं। मैं और मेरी पत्नीजी भर थेContinue reading “देव दीपावली @”
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सोंइस होने की गवाही
निषादघाट पर वे चार बैठे थे। मैने पहचाना कि उनमें से आखिरी छोर पर अवधेश हैं। अवधेश से पूछा – डाल्फिन देखी है? सोंइस। उत्तर मिला – नाहीं, आज नाहीं देखानि (नहीं आज नहीं दिखी)। लेकिन दिखती है? हां कालि रही (हां, कल थी)। यह मेरे लिये सनसनी की बात थी। कन्फर्म करने के लियेContinue reading “सोंइस होने की गवाही”
अवधेश और चिरंजीलाल
मैं उनकी देशज भाषा समझ रहा था, पर उनका हास्य मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था। पास के केवट थे वे। सवेरे के निपटान के बाद गंगा किनारे बैठे सुरती दबा रहे थे होठ के नीचे। निषादघाट पर एक किनारे बंधी नाव के पास बैठे थे। यह नाव माल्या प्वाइण्ट से देशी शराब ट्रांसपोर्ट काContinue reading “अवधेश और चिरंजीलाल”
