कोदों का भात – करंजिया से गाड़ासरई


आज तपती सड़क पर पैर जला। मैंने उनसे पूछा – सैण्डल लेने की नहीं सोची? बताये – “सोचा; पर भईया मन माना नहीं। आज लोगों ने बताया कि डिण्डौरी के रास्ते कहीं चट्टी (कपड़े का स्ट्रैप लगी खड़ाऊं) मिलती है। वह मिली तो खरीदूंगा।

जंगल ही पड़ा – अमरकण्टक से करंजिया


पर यह लग गया कि महिला के पास कोई कपड़ा था ही नहीं। प्रेमसागर ने उसे अपना छाता दे दिया। और मन द्रवित हुआ तो अपनी एक धोती भी निकाल कर उसे दे दी। महिला लेने में संकोच कर रही थी। तब प्रेम सागर ने कहा – “ले लो। तुम्हें यहां जंगल में कोई देने वाला नहीं आयेगा। मेरी फिक्र न करो, महादेव की कृपा रही हो बाद में मुझे कई छाता देने वाले मिल जायेंगे। माई, मना मत करो।”

अमरकण्टक से अकेले ही चले कांवर लेकर प्रेमसागर


लोग बद्री-केदार-गया की यात्रा पर निकलते हैं तो लोग गाजे-बाजे के साथ उनका जयकारा लगा विदा करते हैं। … पर यहां प्रेमसागर निकले हैं इतनी बड़ी द्वादश ज्योतिर्लिंग की पैदल यात्रा पर निपट अकेले!

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