बाबा विश्वनाथ तो प्रेमसागर के सदा साथ हैं। यह पूरी यात्रा कोई साधारण यात्रा नहीं, उनकी संकल्प सिद्धि का साधन नहीं; अपने में तीर्थ बन गयी है।
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जंगल ही पड़ा – अमरकण्टक से करंजिया
पर यह लग गया कि महिला के पास कोई कपड़ा था ही नहीं। प्रेमसागर ने उसे अपना छाता दे दिया। और मन द्रवित हुआ तो अपनी एक धोती भी निकाल कर उसे दे दी। महिला लेने में संकोच कर रही थी। तब प्रेम सागर ने कहा – “ले लो। तुम्हें यहां जंगल में कोई देने वाला नहीं आयेगा। मेरी फिक्र न करो, महादेव की कृपा रही हो बाद में मुझे कई छाता देने वाले मिल जायेंगे। माई, मना मत करो।”
अमरकण्टक से अकेले ही चले कांवर लेकर प्रेमसागर
लोग बद्री-केदार-गया की यात्रा पर निकलते हैं तो लोग गाजे-बाजे के साथ उनका जयकारा लगा विदा करते हैं। … पर यहां प्रेमसागर निकले हैं इतनी बड़ी द्वादश ज्योतिर्लिंग की पैदल यात्रा पर निपट अकेले!
कल बारिश का दिन रहा अमरकण्टक में
कल प्रेमसागर जी के दो कांवर मित्र – भुचैनी पांड़े और अमरेंद्र पांड़े 10-11 बजे तक अमरकण्टक पंहुचेंगे। वे अपनी कांवर साथ ले कर आ रहे हैं। प्रेमसागर की कांवर कारपेण्टर जी से बनवा रहे हैं रेस्ट हाउस के वर्मा जी। परसों ये लोग नर्मदा उद्गम स्थल से जल उठा कर रवाना होंगे ॐकारेश्वर के लिये। प्रेम-भुचैनी-अमरेंद्र की तिगड़ी नये नये अनुभव करायेगी ब्लॉग पर।
विघ्नों बाधाओं को लांघते अमरकण्टक पंहुच ही गये प्रेमसागर
रास्ते में जगह जगह बड़े पेड़ टूट कर रास्ता पूरी तरह बंद कर पड़े थे। प्रेमसागर जी ने उन्हें चढ़ कर और लांघ कर पार करने का यत्न किया। आगे बढ़े पर एक जगह काले मुंह वाले बहुत से बंदर सामने आ गये। वे खतरनाक लग रहे थे।
प्रेमसागर अमरकण्टक को निकल लिये
द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के एक महत्वपूर्ण अंश में बलभद्र जी सहायक बने। उनका सहयोग रामेश्वरम सेतु वाली गिलहरी जैसा नहीं, नल-नील जैसा माना जाना चाहिये। उनके रहने से ही प्रेमसागर वह दुर्गम रास्ता पार कर पाये।