बंगाल के मंदिर आगंतुक पदयात्री को रात बिताने को जगह नहीं देते; यह जानना अच्छा नहीं लगा। बंगला संस्कृति की उदात्तता की खूब बात होती है। पर वह शायद मात्र बांगला भाषियों के लिये ही है। बंगाल को भारत के सभी हिस्सों के लिये खुलना चाहिये।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
बंगाल के मंदिर आगंतुक पदयात्री को रात बिताने को जगह नहीं देते; यह जानना अच्छा नहीं लगा। बंगला संस्कृति की उदात्तता की खूब बात होती है। पर वह शायद मात्र बांगला भाषियों के लिये ही है। बंगाल को भारत के सभी हिस्सों के लिये खुलना चाहिये।