“भईया, जब जंगल पार कर बस से उतरा तो मुझे चक्कर आ गया। सहारे से मैं डिवाइडर पर बैठा और हाथ से इशारा कर एक दुकान वाले को पानी लाने का अनुरोध किया। पानी पी कर अपने पर छींटे मारे और तब आप से बात की। आगे चला नहीं जा रहा था।
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कोकराझार से जोगीघोपा, ब्रह्मपुत्र किनारे!
दिन भर चलने और 53 किमी नापने के बाद पता चला कि सहायता के नाम पर ठेंगा है। उन्हें एक मंदिर में रहने को कहा। मंदिर में पुजारी ने बताया कि जमीन पर सो जाईये। ओढ़ने बिछाने और भोजन का कोई इंतजाम नहीं।
