दो दिन प्रेमसागर ने आतिथ्य लेने में बिताये और मैंने “मैला आंचल” के पन्ने पलटे। उन्होने आगे की लम्बी यात्रा के पहले बमुश्किल मिला विश्राम किया और मैंने किया पूर्णिया के अंचल की जिंदगी जानने का प्रयास।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
दो दिन प्रेमसागर ने आतिथ्य लेने में बिताये और मैंने “मैला आंचल” के पन्ने पलटे। उन्होने आगे की लम्बी यात्रा के पहले बमुश्किल मिला विश्राम किया और मैंने किया पूर्णिया के अंचल की जिंदगी जानने का प्रयास।