गंगा से कोसी – 1

9 अप्रेल 2023

अमरदीप (गुड्डू) पांड़े के यहां दो दिन आराम किया प्रेमसागर ने। एक दिन तो अमरदीप जी के आतिथ्य में और दूसरे दिन आतिथ्य के कारण स्वाद में ज्यादा खाने के कारण गड़बड़ हुये पेट को आराम देने में। “अब ठीक है भईया, कल सवेरे निकलूंगा। सुल्तानगंज जा कर वहां से पदयात्रा शुरू करूंगा। भागलपुर नहीं जाना है। सीधे फेरी से गंगा पार कर नौगछिया की ओर चलूंगा। वहां से तो सीध में है पूर्निया।”

दो दिन प्रेमसागर ने आतिथ्य लेने में बिताये और मैंने “मैला आंचल” के पन्ने पलटे। उन्होने आगे की लम्बी यात्रा के पहले बमुश्किल मिला विश्राम किया और मैंने किया पूर्णिया के अंचल की जिंदगी जानने का प्रयास। प्रेमसागर की यह यात्रा सामने न होती तो मैं शायद ही सुल्तानगंज, भागलपुर, नवगछिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज का अंचल तलाशता।

नीरज पांड़े, प्रेमसागर, सुनील सिंह भाजपा नेता, गुड्डू पांड़े और सूरज प्रकाश सिंह। सुनील जी के यहां भोजन पर।

प्रेमसागर का आतिथ्य जम कर हुआ। गांव के ही भाजपा नेता सुनील सिन्ह जी के यहां उनके भोज का भी आयोजन था। प्रेमसागर ने उसका चित्र भी भेजा है और उसमें लोगों के नाम भी लिखे हैं। गांव में भोजन पर बुलाने पर पता नहीं क्यों मेरे मन में पीढ़ा पर बैठ कर सामने टाठी (थाली) में दाल-चावल-रोटी-तरकारी की छवि थी। टाठी में ही दाल और उसे अलग करने के लिये टाठी में ही टेवकन (थाली के नीचे पत्थर का टुकड़ा, रोटी और भात की ओर)! पर यूपी-बिहार के गांव में भी अब वह नहीं होता। सुनील जी के यहां भी एक मेज के आसपास कुर्सी पर बैठ भोजन करते दिखे लोग। दो तीन दशकों में जीवन पद्यति में बदलाव आया ही है।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

मैंने प्रेमसागर को आगे की यात्रा में देखने-पूछने की अपनी कुंजी थमाई। वे लोगों से पूछें कि कोसी को किस भाव से लेते हैं ग्रामीण। गंगा की तरह पूजते हैं या बाढ़ के लिये कोसते हैं? गरीबी कैसी है? आम भारत की बजाय आंकड़े इस अंचल में निरक्षरता ज्यादा बताते हैं। स्कूल कैसे हैं? अस्पताल और स्वास्थ्यकेंद्र काम करते हैं या नाम मात्र को हैं? खेती ठीक से होती है या नील की खेती से बंजार हुई धरती के अवशेष अभी भी हैं। कोसी द्वारा लाई माटी की उर्वरता कैसी है। लोग खड़ी बोली समझते हैं या मगही, मैथिली, अंगिका का ही प्रयोग करते हैं। परिवहन के साधन कैसे हैं। … इनमें से कुछ मेरे अपने जिज्ञासु मन के प्रश्न हैं और कुछ फणीश्वरनाथ रेणु की आंचलिक पुस्तक की उपज हैं।

मैं नक्शे में मैला-अंचल के मेरीगंज की तलाश करता हूं। पर शायद वह काल्पनिक जगह है। कोई गांव या कस्बा पूर्णिया के अंचल में दिखता नहीं।

इस चार पांच दिन की बिहार यात्रा से मुझे जानने की बहुत उत्सुकता है। पर जिस तरह से प्रेमसागर यात्रा करने जा रहे हैं – सवेरे और शाम दो-तीन घण्टा बस में सफर कर यात्रा के स्थल पर जाना और वहां से अमरदीप जी के यहां लौटना, लगता नहीं कि बहुत जिज्ञासा शमन हो पायेगा।

अगली पोस्ट में बताऊंगा सुल्तानगंज से नवगछिया की यात्रा का हाल।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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