डगरुआ से कंकी, महानंदा पार करते हुये


“बोले कि उनका धरम (इस्लाम) नफरत का नहीं है। सेवा सिखाता है। देश में लोग गलत रास्ते जा रहे हैं, पर हम अपनी परम्परा बचा कर रखे हुये हैं। लोग यह समझ लें कि सबको साथ रहना है तो हमारे लिये जो घृणा होती जा रही है, वह न हो।”

पूर्णिया से डगरुआ


सत्यम के घर का मिट्टी का दो बर्तन वाला चूल्हा बड़ा आकर्षक लग रहा है। रात में फोटो बहुत साफ नहीं है, पर एक चित्र बहुत बोलता है बिहार की गांव की जिंदगी के बारे में।

बाबा, हमें भी इबादत करने दो न!


शाम के समय प्रेमसागर का मैसेज था। एक टेम्पू वाला साइड से उन्हें धक्का मारते चला गया था। धक्का लगा तो गिर गये। चोटें आईं। खुद उठने का प्रयास करते तब तक बगल की दुकान से एक नौजवान दौड़ कर आये। उन्होने उठाया।

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