डगरुआ से कंकी, महानंदा पार करते हुये

19 अप्रेल 2023

पूर्णिया से किशनगंज होते सिलीगुड़ी की ओर बढ़ना है प्रेमसागर को। इलाका कोसी, गंगा और महानंदा के डूब का है। पूर्णिया-सिलीगुड़ी नेशनल हाईवे ही सबसे ऊंची जगह होती है। फणीश्वर नाथ रेणु अपने घर परती भूमि की बात करते हैं जहां कभी बाढ़ नहीं आती। वह इलाका तो पूर्णिया से फोरबिसगंज की ओर है। इस तरफ तो साल के चार महीने दलदल ही रहती है।

दीपक यदुवंशी (बायें से तीसरे, अपनी माँ के बगल में खड़े) और उनके परिवार के साथ प्रेमसागर

डगरुआ से निकल कर कई छोटी बड़ी नदियां मिलीं प्रेमसागर को। किसी में पानी था, किसी में नहीं। पर सावन के बाद सब जगह पानी पानी होता है। डगरुआ के दस किमी आगे दीपक जी के यहां चाय नाश्ता मिला प्रेमसागर को। “मनोज भईया खबर किये थे दीपक जी को। दीपक यदुवंशी।” प्रेमसागर ने बताया।

उनके परिवार का चित्र भी भेजा प्रेमसागर ने। दीपक की अम्माजी खड़ी हैं चित्र में और उनके दादा जी बैठे हैं प्रेमसागर के बगल में। प्रेमसागर ने कई बार दोहराया – दादा जी सेंच्यूरी मार चुके हैं। उनका गांव है बकहरिया। नेशनल हाईवे के बगल में ही है। पूरा गांव बाढ़ में डूब जाता है। कमर भर पानी आ जाता है। जिनके मकान ऊंचे बने हैं वे अपने घर का नीचे का हिस्सा खाली कर छत पर चले जाते हैं। बाकी, जिनके पास कच्चे मकान हैं, वे सड़क पर डेरा जमाते हैं। सड़क सबसे ऊंची जगह है पूरे इलाके में।

दीपक जी के घर का चित्र भी भेजा प्रेमसागर ने। घर शायद बन रहा है और उसकी कुर्सी (घर का जमीन से लेवल) काफी ऊंचा है। पानी थोड़ा बहुत आये तो भी डूबने वाला नहीं।

साल के चार महीने डूब, विस्थापन और सब कुछ ठप्प होना झेलने पर भी लोगों में कितनी जीवंतता है! उस जगह से साढ़े छ सौ किमी दूर रहता मैं कल्पना ही कर सकता हूं। यहां भी भदईं गंगा विकराल हो जाती हैं। पर पानी सात दस दिन में घट जाता है। वहां तो गंगा, कोसी, महानंदा और नेपाल से निकलती अनेक छोटी बड़ी नदियां पानी ठेल देती हैं इस इलाके में। पानी जीवन भी देता है और जानलेवा भी होता है।

दीपक जी के घर का चित्र भी भेजा प्रेमसागर ने। घर शायद बन रहा है और उसकी कुर्सी (घर का जमीन से लेवल) काफी ऊंचा है। पानी थोड़ा बहुत आये तो भी डूबने वाला नहीं।

ये लोग, दीपक, सत्यम, अमरदीप, झूनी सिंह आदि प्रेमसागर के इतने सहायक कैसे हैं? मैं समझ नहीं पाता। आपदा मेंं जीना शायद आदमी को आदमी बनाता है।

और यह सहायता भाव केवल बाभन, ठाकुर, यादव, इस जाति या उस जाति या फिर हिंदू होने का परिणाम नहीं है।

प्रेमसागर बताते हैं – “भईया, एक आश्चर्यजनक बात पता चली। यहां मुसलमान काफी हैं। पर सब के घर आसपास हैं। कोई हिंदू-मुस्लिम टोला अलग अलग नहीं है। राम नवमी को जब जुलूस निकलता है तो मुसलमान लोग जगह जगह टेबल लगा कर शर्बत, पानी, फल आदि देते हैं जुलूस वालों को। दीपक भाई बताते हैं कि इस बार पांच सात जगह स्टाल लगाये थे वे लोग। उनके यहां कोई शादी-प्रयोजन होता है तो हिंदू कारीगर (हलवाई) बुला कर उसी से भोजन बनवा कर दो दिन पहले हिंदू लोगों को भोज देते हैं, फिर अपना समारोह करते हैं। पूरे सत्रह किलोमीटर तक यह बेल्ट है और लोग ऐसे ही व्यवहार करते हैं।”

देश नफरत और अविश्वास में जल रहा है और यहां भाईचारे के द्वीप बन गये हैं बाढ़ के इस सीमांत बिहार में। प्रेमसागर अगर यात्रा न कर रहे होते और कोई और बताता तो मैं उसे शंका की दृष्टि से देखता!

मुस्लिम सज्जन जिन्होने पानी पिलाया।

“गर्मी बहुत थी भईया। मैं पसीने से लथपथ चल रहा था। दूर से ही एक दुकानदार ने देखा और आधा किलोमीटर पैदल चल कर एक पानी की बोतल का कर मुझे दिये। सीलबंद पानी की बोतल। कहा, आप पहले पानी पीजिये। वो सज्जन मुसलमान थे। उनका कोई सड़क किनारे भोजनालय था। कुछ देर मुझे अपने यहां बैठ आराम करने को कहा। उन्होने कहा कि रामनवमी के समय वे जुलूस को पानी पिलाते हैं। बोले कि उनका धरम नफरत का नहीं है। सेवा सिखाता है। देश में लोग गलत रास्ते जा रहे हैं, पर हम अपनी परम्परा बचा कर रखे हुये हैं। बाकी जगह भी लोग यह समझ लें कि सबको साथ रहना है तो हमारे लिये जो घृणा होती जा रही है, वह न हो।”

“वे तो नाम बताने या फोटो खिंचाने को तैयार नहीं थे। मैंने तो अपने से खींच लिया। उनका कहना था कि उनका धरम अपनी फोटो खिंचवाने में यकीन नहीं रखता।”

मनोज यादव जी ने खबर कर दी थी कि प्रेमसागर हाईवे से जा रहे हैं। बिजई यादव जी ने उन्हें फोन कर कहा कि गर्मी बहुत है, दिन में उनके यहां विश्राम करें। शाम के समय आगे निकलें। बिजई जी के यहां जाल जलपान भी मिला और विश्राम भी। “भईया, वहां सो गया मैं। शाम पांच बजे निकला। फिर चलते हुये रात पौने नौ बजे कंकी पंहुचा।”

झुलसाने वाली गर्मी के दिन कुल बयालीस किलोमीटर की दूरी पार की प्रेमसागर ने। वह भी उस दशा में जब पैर में दुर्घटना से चोट लगी हुई है! गजब जीवट का पदयात्री है यह व्यक्ति!

रास्ते में महानंदा नदी पार की।

रास्ते में महानंदा नदी पार की। “बहुत बड़ी नदी है भईया। पानी दो भाग में हो गया है। बीच में रेत का टापू बन गया है। उसमें लोग खेती भी कर रहे हैं।”

नक्शे के हिसाब से महानंदा पार करने के बाद प्रेमसागर बिहार से बंगाल में प्रवेश किये। वैसे आगे बिहार-बंगाल में आना जाना लगा रहेगा। नेशनल हाईवे वैसा ही है। महानंदा नदी भी कई बार मिलेंगी उन्हें। अगला शक्तिपीठ भी महानंदा किनारे है।

उस लड़की ने नाम बताया – सीमा। उसका भी एक यू-ट्यूब चैनल है। बीस-बाईस हजार फालोवर हैं। चार सौ के लगभग वीडियो।

बीच में एक जगह एक लड़की ने हाथ दे कर उन्हें रोका। उसने बताया कि वह उनकी यात्रा के बारे में ब्लॉग पढ़ती है। उनकी यात्रा फॉलो कर रही है। उसे अंदाज था कि प्रेमसागर उसके पास से गुजरेंगे। स्मार्ट लड़की है वह। मैं फिर चमत्कृत होता हूं कि सीमांत बिहार में भी दसवीं में पढ़ रही लड़की इतनी जानकारी रख सकती है। बिहार की जीजीविषा और इण्टरनेट विस्तार का परिणाम है यह। उस लड़की ने नाम बताया – सीमा। उसका भी एक यू-ट्यूब चैनल है। बीस-बाईस हजार फालोवर हैं। चार सौ के लगभग वीडियो। उनमें वह फिल्मी तर्ज के गानों पर वह नृत्य करती है। बैकग्राउण्ड में सीमांत बिहार का ग्रामीण इलाका दीखता है। … गजब बदलाव हो रहा है दूर दराज के इलाकों में भी!

उसके चैनल का लिंक है – https://www.youtube.com/@JYOTIDANCETUBE

रात में दीपक सरकार जी के यहां इंतजाम कराया है मनोज यादव जी ने। कंकी में उनकी चाय और जलपान की दुकान है। प्रेमसागर ने बताया कि बहुत सज्जन आदमी हैं सरकार जी।

आगे की यात्रा अगले दिन। प्रेमसागर थक नहीं रहे। लिखते हुये मैं जरूर थक जा रहा हूं! 😆

ॐ मात्रे नम:! हर हर महादेव!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

4 thoughts on “डगरुआ से कंकी, महानंदा पार करते हुये

  1. जी. मैंने कहा न कि मैं खुद असहज होता हूँ. बनारस में मुझे मकान खरीदना था, पर लिया नहीं. बगल में मुस्लिम बस्ती थी और दशकों पहले वहां दंगों का इतिहास था…

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  2. Sir, ye avishwas nahi hai, sachchai hai… jaha sirf main hi theek hoon.. dusre ke liye jagah hi nahi.. aur ye poori duniya me hai…

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    1. अविश्वास गहरा गया है. मेरे बचपन में हिंदू मुसलमान गांव में साथ साथ रहते थे. अब अलग बस गए हैं. मुख्य बात यह है कि मैं खुद असहज महसूस करूंगा उनके पड़ोस में.
      पर यात्रा विवरण वही लिखा जा रहा है, जैसा देखा है प्रेम सागर जी ने.
      प्रेम सागर ने मुस्लिम भीड़ का उग्र रूप भी देखा और झेला है. वह भी वैसा ही लिखा गया था.

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