नील गाय के अलावा कभी कभी खरगोश सड़क पार करते दिख जाते हैं। वह इतना कम और इतनी जल्दी होता है कि चित्र नहीं ले पाया। सियार भी सांझ के धुंधलके में दिख जाते हैं यदा कदा। कुआर-कार्तिक में उनकी हुंआं हुंआं रात भर सुनाई देती है।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
नील गाय के अलावा कभी कभी खरगोश सड़क पार करते दिख जाते हैं। वह इतना कम और इतनी जल्दी होता है कि चित्र नहीं ले पाया। सियार भी सांझ के धुंधलके में दिख जाते हैं यदा कदा। कुआर-कार्तिक में उनकी हुंआं हुंआं रात भर सुनाई देती है।