“नहीं भईया, नागा लोगों का दिया धन पचाना आसान बात नहीं है। मेरे मना करने पर भी पचास रुपया और दिये नागा बाबा। … कपड़ा-लंगोट कुछ नहीं पहने थे। बस एक गमछा लपेट लिये थे लोगों के सामने आने के समय।”
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कुछ और चलें – गाडरवारा से उदयपुरा
मुझे अपनी दशा सम्पाती की तरह लगी। वह और किसी प्रकार से वानरों की सहायता नहीं कर सकता था। वह केवल यह देख सकता था कि लंका कितनी दूर है और सीता कहां पर हैं। मैं भी केवल यह बता सकता था कि प्रेमसागर का गंतव्य कितना दूर है।
गाडरवारा, गाकड़, डमरू घाटी और कुम्हार
मेरी पत्नीजी यह सुन देख कर कहती हैं – बेचारे प्रेमसागर! तुमने उस शरीफ आदमी को कुम्हार की बस्ती खोजने में लगा दिया! शंकर भगवान तुम पर किचकिचा रहे होंगे। तुम उनका शोषण कर रहे हो डिजिटल एक्स्प्लॉइटेशन! 🙂
गाडरवारा, खपरैल, मनीष तिवारी और नदियां
मनीष बताते हैं कि ये नदियां – और कई नदियां हैं जो नर्मदा माई में जा कर मिल जाती हैं – उनके बचपन में सदानीरा हुआ करती थीं। …अब उनमें में गर्मियों में पानी नहीं रहता; रेत रहती है।
कंकर में शंकर और नरसिंहपुर से आगे
पता नहीं भोलेनाथ किसपर प्रसन्न होते हैं; पर मुझे भोलेनाथ की ओर से कांवर यात्रा का अंतिम परीक्षा प्रश्नपत्र बनाने का चांस मिलता तो मैं एक ही प्रश्न उसमें रखता – क्या तुमने यात्रा के दौरान मुझे बाहरी दुनियां में देखा? देखा तो कितना देखा? किसका अनुशासन ज्यादा है और किसकी उन्मुक्तता ज्यादा है –Continue reading “कंकर में शंकर और नरसिंहपुर से आगे”
गोटेगांव से नरसिंहपुर और मुन्ना खान की चाय
“मैं कांवर दूंगा उठाने को अगर तुम मुझे चाचा जी या अंकल जी कहोगी। बाबा या महराज नहीं हूं मैं।” – प्रेमसागर ने कहा। उन्हें विदा करने के लिये बहुत से लोग सड़क पर आये। करीब तीन किमी साथ चले।