चिंतपूर्णी – माँ छिन्नमस्ता देवी


23-24 मई 2023

अजीब लगता है मां छिन्नमस्ता की कल्पना करना – देवी ने शुम्भ-निशुम्भ असुरों का संघार सम्पन्न किया है। उनके साथ दो योगिनियां हैं (जया, विजया या डाकिनी और वारिणी) जिन्होने उनके साथ मारकाट की है। अब कार्य सम्पन्न होने पर भी उनकी क्षुधा शांत नहीं हुई है। वे और और भोजन, और रक्त की मांग करती हैं। और माता अपना मस्तक काट कर उनको अपने रक्त से शांत करती हैं। उनके शिर विहीन धड़ के हाथ में उनका छिन्न सिर है। कटे गले से तीन रक्त धारायें निकल रही हैं। दो उन योगिनियों के मुंह में जाती है और एक स्वयम उनके छिन्न मस्तक में।

कोलकाता के एक कालीपूजा मण्डप में छिन्नमस्ता। CC BY-SA 3.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=5085646 द्वारा।

ऊना जिले का चिंतपूर्णी शक्तिपीठ माँ छिन्नमस्ता का मंदिर है। झारखण्ड में राजरप्पा में भी जो मंदिर है वह माँ छिन्नमस्ता का है।

माता का यह घोर रूप मेरी समझ नहीं आता। चिंतपूर्णी का अर्थ है – सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली। यह स्थान माना जाता है कि वह है जहां सती के पैर का हिस्सा गिरा था।

छिन्नमस्तिका (या प्रचण्ड चण्डिका) दश महाविद्याओं में से एक है। दश महाविद्यायें हैंं – काली, तारा, शोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।

दश महाविद्यायें हैंं – काली, तारा, शोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। By The Calcutta Art Studio – https://www.britishmuseum.org/collection/object/A_2003-1022-0-37, Public Domain, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=9856479

माँ छिन्नमस्ता मृत्यु और सृजन दोनो की प्रतीक हैं। इस विषय में ज्यादा तार्किक ढंग से तो दश महाविद्या के विद्वान ही बता सकते हैं। मेरे लिये तो मातृशक्ति का संहारक रूप महाकाली और सृजक महासरस्वती के रूप में ही है।

23 मई की दोपहर माँ छिन्नमस्ता के शक्तिपीठ में दोपहर में प्रेमसागर ने दर्शन किये। वहां उन्होने कुछ चित्र भी लिये। मुझे चित्र भेजने के बाद मंदिर के परिसर में ही किसी ने उनका बैग ब्लेड से काट कर वह मोबाइल चुरा लिया।

चिंतपूर्णी माँ मंदिर परिसर में प्रेमसागर

“भईया मन डिस्टर्ब हो गया। एक बार फिर मंदिर में गया। बोला – माँ मोबाइल चाहिये था, तो वैसे ही आदेश करतीं। मैं दे ही देता। पर यह तरीका तो ठीक नहीं लगा। भईया पण्डा लोग मेरा यह कहने पर हंस रहे थे। पर मेरे मन में जो था, मैं वही कह रहा था…” प्रेमसागर के यह बताते समय मुझे लग रहा था कि उनकी आस्था को कहीं न कहीं ठेस लगी है।

23 मई की दोपहर माँ छिन्नमस्ता के शक्तिपीठ में दोपहर में प्रेमसागर ने दर्शन किये। वहां उन्होने कुछ चित्र भी लिये। मुझे चित्र भेजने के बाद मंदिर के परिसर में ही किसी ने उनका बैग ब्लेड से काट कर वह मोबाइल चुरा लिया।

रात में प्रेमसागर ठीक से सो नहीं पाये। उनकी तबियत वैसे भी ठीक नहीं थी। हल्की हरारत है। आज (24 मई को) सवेरे उन्हें ज्वालाजी के लिये निकलना था। पर निकलना नहीं हुआ। “किराया बहुत है लॉज का भईया। पांच सौ और भोजन अलग से। पर और कोई उपाय नहीं है।”

गगरेट से चिंतपूर्णी का रास्ता बढ़िया था। पहाड़ी और घुमावदार। दृश्य मोहक थे और तापक्रम भी ज्यादा नहीं था। प्रेमसागर का गला खराब था और शरीर में ऊर्जा भी कम थी। फिर भी आसानी से उन्होने 22 किमी का चलना सम्पन्न किया। उसके बाद लॉज/धर्मशाला आने जाने में भी चले होंगे। कुल करीब 25 किमी।

सब अच्छा रहा, बस मंदिर परिसर में, जहां आस्था का सैलाब होना चाहिये वहां कोई जेबकतरा अपनी कारस्तानी कर गया। वह भी मोबाइल की। मोबाइल, जिसके माध्यम से ब्लॉग – सम्पर्क सम्भव होता है!

आगे देखें बिना उस मोबाइल के, दूसरे मोबाइल से जिसके चित्र धुंधले आते हैं, कैसे ब्लॉग-सम्प्रेषण हो पाता है।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 86
कुल किलोमीटर – 2820
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

मड़ैयाँ डेयरी का दूध कलेक्शन सेण्टर और लड़कियां


मुझे गांव में शिफ्ट हुये सात साल हो गये हैं। जब आया था तब खेतों में झुण्ड बना कर काम करती लड़कियां दिखती थीं। पर साइकिल ले कर स्कूल जाती नहीं। अब वे बहुत संख्या में नजर आती हैं। बारह से सोलह साल की लड़कियां।

अब सवेरे छ बजे दूध डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर लड़कियों को आते देखता हूं। चार किमी दूर से भी साइकिल चला कर अकेले, बर्तनों में दूध लियी आती हैं।

लड़कियों के आत्मविश्वास के स्तर में भी गजब का बदलाव है। उन्हें लड़कों-आदमियों की तरह निरर्थक हीहीफीफी करते नहीं पाता; पर अपना काम बड़ी दक्षता से करती हैं। कोई घटना इस प्रकार की नहीं देखी जिसमें किसी ने उनकी जगह अपना बाल्टा लाइन में आगे सरका लिया हो। दूध की नापजोख के बारे में भी उन्हें सतर्क पाता हूं। पैसे का हिसाब किताब दुरुस्त है।

दूध देने के लिये लाइन में लगे बर्तन – बाल्टे।

उनके पहनावे में भी बदलाव है। सलवार कुरता की बजाय टॉप और जींस दिखते हैं। कोई कोई दुपट्टा लिये होती है पर वह भी अनिवार्य की जगह ऑप्शनल ही है। दूध सेण्टर पर देने के बाद ये लड़कियां घर पर काम भी करती होंगी और पढ़ाई भी करती होंगी। अनपढ़ जैसी तो नहीं ही हैं।

गांव के समाज में लड़कियों का दर्जा अभी भी (निकम्मे) लड़कों की तुलना में कुछ कम ही है; पर ये लड़कियां जल्दी ही उस गैप को भरती जा रही हैं। अपेक्षा से अधिक तेजी से।

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जितने लोग आते हैं दूध कलेक्शन सेण्टर पर देने के लिये उसमें आठ-दस प्रतिशत ये लड़कियां होंगी। इनके अलावा कुछ बड़ी महिलायें भी आती हैं।

लड़कियों में ही बदलाव क्यों कहा जाये? मातापिता भी अब लड़की को साइकिल ले कर डेयरी भेजने के लिये राजी हो गये हैं। यह बड़ी बात है। एक पीढ़ी पहले लड़की क्या, महिला भी गांव में अकेले नहीं निकल सकती थी।

बड़ी तेजी से आया है यह बदलाव।

चित्रों में मड़ैयाँ डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर सबसे दांये और बायें दूध के बर्तन ले कर आयी लड़कियां ही हैं।

गगरेट – पंजाब से हिमांचल


22 मई 2023

होशियारपुर की पीर बाबा की दरगाह से आगे निकलने पर प्रेमसागर का गला खरखरा रहा था। जुकाम का असर है। शरीर को आराम चाहिये। पर प्रेमसागर उसे ठेल रहे हैं – आगे और आगे! उनके पास विकल्प भी नहीं है। अगर पैसे कम हों तो ठहरने की बजाय चलते रहना ज्यादा सस्ता उपाय है। मुझसे बेहतर प्रेमसागार इसे समझते हैं। सो उठते हैं और चल देते हैं।

मैं अपने लिये वैसी जिंदगी – अनवरत चलायमान – नहीं सोच सकता। पर प्रेमसागर के लिये वही जीवन हो गया है।

भोर में दरगाह में एक सज्जन के साथ सेल्फी भेजी है प्रेमसागर ने। निश्चय ही ये सज्जन उनकी कुछ सहायता किये होंगे। निकलने के पहने पौने पांच बजे का चित्र है। वे शायद गार्ड जी हों, जिन्होने प्रेमसागर को मच्छरदानी दी थी।

प्रेमसागर के साथ यही दिक्कत है। वे अपने ढेरों चित्र उंडेल देते हैं। कई बार आधे एक्स्पोजर वाले भी। मुझे उनकी डेटलाइन देख कर अंदाज लगाना होता है। और लोगों के नाम याद रखना, स्थानों के नाम याद रखना उन्हेंं अब तक नहीं आया। फिर भी हजारों – दस हजारों किमी की पदयात्रा वे कर सके हैं! चमत्कार ही है।

आज सवेरे दरगाह से निकलते ही सूर्योदय को क्लिक किया। पता नहीं, सूर्योदय से मोहित हो कर या बस यूं ही। जालंधर के बाद पंजाब से उनका मोहभंग सा हो गया है। “नौजवान हमें रोक कर नशा मांगते हैं भईया।”

राह चलते साधुओं-बाबाओं ने भी धर्म की छवि बिगाड़ दी है। किसी जमाने में हिप्पी यहां आये थे और लोग उन्हें हिकारत से देखते थे। अब यहां के जवान लोग ही हिप्पी संस्कृति अपना लिये हैं। काम धाम करने को पूर्वांचल-बिहार के लोग हैं ही।

आज सवेरे दरगाह से निकलते ही सूर्योदय को क्लिक किया। पता नहीं, सूर्योदय से मोहित हो कर या बस यूं ही।

डियाक लेखन में भी मेरे मन में उच्चाटन सा है। सामान्यत: यात्रा के दौरान मैं गूगल मैप पर, विकिपेडिया पर और लेखों, पुस्तकों में रास्ते के बारे में जानकारी तलाशने में समय लगाया करता था। अब वह नहीं हुआ। शायद मेरी तबियत भी पूरी तरह ठीक नहीं है। एकाग्रता नहीं है पढ़ने और लिखने में।

प्रेमसागर के भेजे चित्रों को निहारता हूं। एक बहुत ही बड़ा ट्रक है जो सम्भवत: भूसा ले कर जा रहा है। शायद रब्बी की फसल की पराली नहीं जलाई जाती। गेंहूं की थ्रेशिंग से भूसा निकलता है। उसका लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट वृहद पैमाने पर होता है। पूर्वांचल में तो ठेले पर झाल लाद कर भूसा ढोया जाता है। ज्यादा हुआ तो ट्रेक्टर से। पंजाब में कृषि समृद्ध है। भूसा कुम्भकर्ण जैसा पर्वताकार ट्रक में लदा है।

आगे कुछ दूर चलने के बाद जमीन की प्रकृति बदलने लगी है। मैदान खत्म, रास्ता घुमावदार, और ऊंचाई नीचाई प्रारम्भ हो गयी है। दोपहर डेढ़ बजे तक पंजाब की सीमा आ गयी है। बाई बाई पंजाब।

पंजाब की सीमा और हिमांचल का स्वागत बोर्ड दिखता है। उसके साथ ही घुमावदार रास्ते बढ़ने लगते हैं। चीड़ के वृक्ष हैं, जिन्हें मैं पहचानता हूं। शिवालिक में, तराई में भी चीड़ दिख जाता है। मैंने गोरखपुर में देखा है। मेरे बंगले में था। यहां भदोही में लगाने की कोशिश की पर चला नहीं। निर्मल वर्मा की “चीड़ों पर चांदनी” याद आती है। मुझे फिर एक मौका मिले तो उस घर में रहना चाहूंगा जिसमें चीड़ हो। अजीब नोश्टॉल्जिया है। कल एक हिंदी शब्द पढ़ा नोश्टॉल्जिया के लिये – गृहातुरता।

कल एक हिंदी शब्द पढ़ा नोश्टॉल्जिया के लिये – गृहातुरता।
प्रेमसागर ने चीड़ का चित्र भेजा

अजब गृहातुरताओं का जीव हूं मैं। चीड़ के प्रति गृहातुर! भला हो, प्रेमसागर ने चीड़ का चित्र भेजा। ढेरों टूरिस्ट स्पॉटों’ वृहदाकार हनुमान जी, देवी जी और शिव जी की प्रतिमाओं के आधुनिक (?) कलात्मक और चटक रंगों वाली प्रतिमाओं के चित्र की बजाय चीड़ का कहीं बेहतर लगा।

मेरी पत्नीजी ने कहा – प्रेमसागर को बोलो लौटानी में ढेरों चीड़ के सूखे झरे फूल ले आयें। अब एक बोरा भर लाने की बजाय एक दो फूल तो उन्हें लाने चाहियें। प्रतीकात्मक! कि पहाड़ से आ रहे हैं!

शाम पांच बजे यात्रा सम्पन्न की। गगरेट में। आज अठाईस किमी चलना हुआ। कल चिंतपूर्णी का माता छिन्नमस्ता देवी स्थल 21-22 किमी दूर है। तबियत नासाज होने पर इतनी दूरी तय करना शायद मैनेजेबल है।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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शक्तिपीठ पदयात्रा

होशियारपुर – दरगाह के बाहर खुले में रात


21-22 मई 2023

सवेरे कुछ देर से निकलना हुआ जालंधर से। अब प्रेमसागर माँ चिंतपूर्णी के दर्शन को निकल गये हैं। चिंतपूर्णी अर्थात देवी छिन्नमस्ता। तांत्रिकों और गृहस्थों – दोनो में बहुत मान्यता है माता चिंतपूर्णी की। हो भी क्यूं न? लोक कथाओं के अनुसार माता अपने सेवकों, सैनिकों की क्षुधा पूर्ति के लिये अपना ही सिर काट कर रक्त पान कराती हैं। मेरे लिये यह कल्पनातीत बात है। पर मातृशक्ति साधकों के लिये यह अपार श्रद्धा का विषय।

प्रेमसागर किस लिये यात्रा किये जा रहे हैं – मुझे नहीं मालुम। शायद उनकी प्रकृति ही यात्रा करना है। मैं उनके बारे में, उनके ट्रेवलॉग – या डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) – को इसलिये सुन-लिख रहा हूं कि उससे मुझे नये स्थानों की जानकारी हो रही है। वे स्थान जो मैं खुद कभी नहीं देख पाया या देख पाऊंगा।

जालंधर से चिंतपूर्णी करीब पचासी किमी दूर है। होशियारपुर बीच में पड़ता है। लगभग चालीस किमी चलना हुआ। उसके बाद रात गुजारने की जगह तलाशने में पांच किमी और भटभटाये होंगे प्रेमसागर। उन्हें कोई लॉज, कोई मंदिर, कोई धर्मशाला नहीं मिली। “शाम छ बजे से देर रात तक बहुत मंदिर, बहुत गुरुद्वारा में गये पर सब से जवाब दे दिया गया कि “कमेटी की परमीशन नहीं है।”

अंतत: रात इग्यारह बजे मारुति कम्पनी का ट्रू-वैल्यू स्टोर सा था। उसी के पास पीर बाबा की दरगाह थी। मारुति वालों ने कहा कि दरगाह में रुक जायें। तो बिना और कोई विकल्प के वे दरगाह के बाहर जमीन पर अपनी चादर बिछा लिये।

और सोना भी क्या हुआ। खुले जगह थी और वहां मच्छरों का साम्राज्य था। प्रेमसागर के पास मच्छर अगरबत्ती थी, दो अगरबत्ती जलाई पर खुले में वह प्रभावी नहीं थी। वह तो देर रात गार्ड आया। “उसने मच्छरदानी लगा दिया तो दो घण्टा सो लिये हम।”

मुश्किल से ही कुछ नींद आ पाई होगी। 22 मई की भोर में पौने चार बजे उठना पड़ा। दरगाह पर पीर बाबा के दर्शन करने वाले वाले आने लगे थे। उनका हल्ला-गुला सोने नहीं दिया।

मुझे नहीं मालुम था कि हिंदू देवी देवता पूजक ही नहीं, दरगाह-भक्त भी तीन बजे ही अरदास करने आने लगते हैं!

अपने पास ओडोमॉस जैसी बेसिक चीज भी ले कर नहीं चलते? मैंने जोर दे कर कहा तो उनका जवाब था “आगे रखेंगे भईया। पहले रखते ही थे। … आप फिकर न करें, कभी-काल ऐसा हो ही जाता है।”

कभी काल की बात नहीं है। प्रेमसागर रुक्ष यात्रा के लिये अपनी तैयारी में ढील दे दिये हैं। रास्ते में लोगों ने इतना सुविधा दी है कि वह सब की तैयारी पास रखना बोझ लगता होगा उन्हें।

साढ़े पांच बजे प्रेमसागर फिर निकल लिये हैं – होशियारपुर से चिंतपूर्णी की ओर। सवेरे छ बजे चाय मिल गयी है किसी दुकान पर। आगे बढ़ लिये हैं!

पीर बाबा की दरगाह के बाहर लगाया प्रेमसागर का बिस्तर।

इक्कीस तारीख की यात्रा में एक नदी थी, सूखी हुई। लोग थे पर व्यवहार में उतने ऊष्ण नहीं थे जितना पहले वाले – “भईया पहले के लोग देखते थे तो जै श्री राम या जै माता दी बोलते थे। यहां वाले देखते भी हैं तो अपने काम में लगे रहते हैं। बस रास्ता में दो लोग मिले थे। एक ऑटो वाला बोला कि कुछ दूर वह लिफ्ट दे सकता है। हम बोले की नहीं भईया, हम पदयात्रा में हैं। बाद में एक सरदार जी भी अपनी बोलेरो रोक कर मुझे बैठने को बोले। … एक और आदमी रोक कर बोला कि बाबा मेरा हाथ देख कर भविष्य बताईये। हां, एक मुसलमान ने कहा कि वह सूगर से बहुत परेशान है। मैंने उन्हेंं बेल, अमरूद, जामुन और नीम का पत्ता सुबह सुबह खाने को कहा। यह भी कहा कि आज शाम शूगर चेक करा कर कल सवेरे से तीन दिन प्रयोग कर फिर शूगर चेक करायें। फायदा होने पर डेली खाना चालू कीजिये। इससे बहुत से लोगों को फायदा हुआ है।”

गुड़ बनाया जा रहा था।

जगह जगह गन्ना का रस निकल रहा था और उससे गुड़ बनाया जा रहा था। “मैने एक जगह बीस रुपये का गुड़ लिया। ढेर सारा दे दिया। एक किलो भर होगा। वैसे पचास रुपया किलो बेचते हैं। … भईया गुड़ यात्रा के लिये बहुत बढ़िया होता है। खा कर पानी पीने से भूख मिट जाती है और शरीर को ताकत मिल जाती है।”

“कल गर्मी भी बहुत थी भईया। पसीना रुक ही नहीं रहा था।” – प्रेमसागर के यह कहने पर मुझे लगा कि मैं अपने वातानुकूलित कमरे से उन्हें नसीहत दे रहा हूं। मेरे घर के बाहर तापक्रम 46 डिग्री तक गया था। प्रेमसागर को भी 43 डिग्री तक मिला होगा। वातानुकूलन के 25 डिग्री में बैठ ज्ञान बांटना आसान है। 43 डिग्री में पदयात्रा करना, वह भी 44किमी की; दिन भर में – लाख दर्जे कठिन है।

पर चल क्यों रहे हैं प्रेमसागर?

“आगे कहीं चाय के लिये रुकूंगा तो अदरक लूंगा भईया। मुंह में रखने को। काहे कि गला कुछ फंस रहा है।” कह कर आज, बाईस मई की सुबह अपनी बात समाप्त की।

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श्री त्रिपुरमालिनी सिद्ध शक्तिपीठ, जालंधर में प्रेमसागर


20 मई 2023

एक सप्ताह से प्रेमसागर के डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) लेखन में व्यवधान रहा है। मैं वायरल ज्वर से ग्रस्त रहा। लम्बी पोस्ट लिखने की एकाग्रता नहीं थी। अब भी उतनी नहीं है। इस बीच प्रेमसागर की यात्रा नियमित चलती रही। उसमें कई रोचक आख्यान जुड़े।

प्रेमसागर ने कुरुक्षेत्र के भद्रकाली शक्तिपीठ के दर्शन किये और फिर कुरुक्षेत्र-अम्बाला-लुधियाना-फिल्लौर-जालंधर की यात्रा की। कई लोगों से मिलना हुआ। सतलुज के झिलमिलाते जल को सूर्यास्त के समय निहारा भी उन्होने। पर वह सब लिखना तो धीरे धीरे बैकलॉग क्लियर करने के रूप में होगा।

कल शाम वे जालंधर पंहुचे। रात देर हो जाने से वे श्री त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ की धर्मशाला में ही रुक गये। शक्तिपीठ के दर्शन आज सवेरे किये। वह विवरण भी विस्तार से लिखूंगा एक दो दिन में।

त्रिपुरमालिनी माँ के दर्शन के बाद प्रेमसागर उद्दत थे आगे की यात्रा को निकलने के लिये। आज सवेरे फोन किया तो बोल रहे थे – “अभी घण्टे आध घंटे में यात्रा के लिये निकल लूंगा, भईया।”

आगे की यात्रा का मतलब जलंधर से चिंतपूर्णी जाने के लिये हिमांचल प्रदेश में प्रवेश करना है। उसके आगे है ज्वालाजी और बज्रेश्वरी शक्तिपीठ – कांगड़ा जिले में।

श्री सिद्ध शक्तिपीठ माँ त्रिपुरमालिनी धाम

यात्रा के लिये इतनी भागमभाग क्यों है? क्यों एक शक्तिपीठ दर्शन करते ही अगले की ओर कूच करना हो रहा है? उस स्थान पर रुक कर शक्तिपीठ की ऊर्जा को अपने में समाहित करने के लिये मनन करने का एक दिन का भी समय क्यों नहीं निकल रहा है?

वह भी तब जब प्रेमसागर यह कह रहे हैं कि उनकी कमर में दर्द है। वे पेनकिलर्स का प्रयोग किये हैं। कल सुधीर पाण्डेय को उन्होने एक डाक्टर से हुई बातचीत के बारे में भी कहा – ऐसा सुधीर जी मे मुझे बताया।

कुल मिला कर अपनी काया को ताने जा रहे हैं प्रेमसागर। शायद मन को भी ताने जा रहे हैं। मुझे लगता है कि इस भागमभाग में यात्रा के धेय पर चिंतन, अनुभव को आत्मसात करना, उपलब्धि को महसूस करना और उससे अपने व्यक्तित्व को सींचना – वह नहीं हो रहा है। लम्बी यात्रायें करने वाले लोग – भले वे समूह में चलते हों या अकेले; गुरुनानक हों या आदिशंकर या विवेकानंद या साधारण पदयात्री – वे यात्रा की उपलब्धि को आत्मसात करने के लिये छोटे-बड़े पॉज जरूर लेते रहे होंगे।

हिंदू धर्म में हर कक्षा के पदयात्री हैं। यह सम्भव है गुरुनानक, आदिशंकर या विवेकानंद जी किसी और कक्षा के पदयात्री हों; पर हर यात्रा का अपना ही महत्व है। प्रेमसागर की यात्रा का भी है। उस महत्व को मात्र “भागमभाग यात्रा” बना कर कम नहीं कर देना चाहिये। यात्रा और यात्रा पर मनन-चिंतत दोनो अनिवार्य हैं।

प्रेमसागर को मैंने इस आशय से कहा। मेरे कहने पर (?) एक दिन और वहां रुक गये हैं।

शक्तिपीठ मंदिर की धर्मशाला में उन्हें एक रात रुकने की अनुमति थी। अब वे एक अन्य स्थान पर किराया दे कर रुके हैं। शायद उन्हें रुकने से शारीरिक आराम मिल जाये – जिसकी उन्हें जरूरत भी है। क्या निकलता है उनके मनन से वह कल ही पता चलेगा। वे दिन में आराम करते हैं और विचार करते हैं या फोन पर बतियाते रहते हैं – यह तो कल का दिन बतायेगा।

श्री त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ के पुजारियों ने प्रेमसागर का चुनरी उढ़ा कर सम्मान किया।

त्रिपुरमालिनी – अर्थात तीनो लोकों को सुशोभित करने (हार पहनाने) वाली – माँ कल्याण करें। स्थानीय भाषा में उन्हें तुरतपूर्नी – कामना को तुरंत पूरा करने वाली – कहा जाता है। माँ प्रेमसागर को भी उनका अभीष्ट शीध्र प्रदान करें। … हां प्रेमसागर इसपर सोचने के लिये थमें तो सही!

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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यमुनानगर से बापा


13 अप्रेल 2023

यमुनानगर के गेस्ट हाउस (?) से सवेरे रवाना होने पर दो किमी तो उसी रास्ते पर चलना पड़ा जिसपर प्रेमसागर रात में आये थे। उसके बाद मिला हाईवे जिसपर चलते हुये कुरुक्षेत्र की ओर जाना था। यमुनानगर से कुरुक्षेत्र का भद्रकाली शक्तिपीठ 55 किमी दूर है। सवेरे प्रेमसागर का विचार एक ही दिन में वहां पंहुचने का था। वह शायद ज्यादा ही हो जाता। मैंने उन्हें सलाह दी कि रास्ते में जहां भी सम्भव हो, लोग जगह देने को तैयार मिलें, वहां रुक जायें। दौड़ लगाने की बजाय यात्रा के आनंद को प्राथमिकता दें। प्रेमसागर का कहना था – “भईया, आनंद तो ठीक है पर पॉकेट का भी ध्यान रखना है।”

पॉकेट का ध्यान रखना – यह एक एलीमेण्ट जो उनकी यात्रा में जुड़ गया है, वह यात्रा की प्रकृति को बदले दे रहा है। शाम होते होते रुकने के लिये कोई कमरा, कोई लॉज तलाशना या किसी मंदिर में भी फर्श नहीं; कमरा-बिस्तर की अपेक्षा बहुत समय और मेहनत ले लेती है।

इलाके के बारे में प्रेमसागर का कहना था कि लोग सम्पन्न हैं। लोगों के पास जमीन ज्यादा हैं और जमीन के दाम भी ज्यादा हैं। सम्पन्नता का आधार जमीन है। कोई फेक्टरी लगाने के लिये पूंजी थोड़ी सी जमीन बेच कर मिल जाती है। कई रईस लोगों के यहां फार्म हाउस हैं।

“कल एक बारात देखी भईया। उसके कुछ नहीं तो चार डीजे थे। हर एक के गाने का शोर इतना था कि क्या बज रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था। इन समारोहों में पैसे का प्रदर्शन ही सम्पन्नता है। शादी में बीस-पचीस लाख प्रदर्शन में ही खर्च होते हैं। नौजवान लोग भी पजारो-फार्चूनर पसंद करते हैं। दस लाख से काम की गाड़ी तो कोई रखना चाहता ही नहीं।”

सवेरे जो चायवाला था, वह बिहार का था। उससे बात हुआ तो वह रघुनाथपुर, जिला सिवान का निकला। अच्छा आदमी था भईया।

“सवेरे जो चायवाला था, वह बिहार का था। यहां के लोगों को यह छोटा काम करने की शायद आदत या जरूरत नहीं। उससे बात हुआ तो वह रघुनाथपुर, जिला सिवान का निकला। अच्छा आदमी था भईया। उसका फोटो भी आपको भेजे हैं।”

“यहां के लोग सम्पन्न हैं, पर अच्छे व्यवहार वाले हैं। छोटा-बड़ा कोई भी मिलता है, ‘राम-राम’ बोलता है।… वैसे भईया नशा करने वाले भी कई हैं। एक नौजवान बाइक वाला अपनी बाइक रोक कर मुझसे बोला – बाबा परसाद दे दो। मैंने कहा कि भईया मेरे पास लाचीदाना-मिठाई आदि है नहीं। पर वह बोला कि वह परसाद नहीं गांजा दे दो। उसके अनुसार राह चलने वाले बाबा लोग गांजा जरूर रखते हैं!”

“भईया मैंने अपना झोला-बैग उसके सामने कर दिया – खुद ही देख लो। इसमें वैसा कुछ नहीं हैं। हम संकल्पित हैं। कोई नशा करने वाले नहीं।”

“वह नौजवान खुद ही बोला – वह तो आपकी सकल से ही लग रहा था कि गांजा वाले नहीं हो, पर पूछ लिया कि क्या पता, मिल जाये।”

दिन के नौ बजे एक फर्नीचर वाले के यहां से वीडिओ कॉल की प्रेमसागर ने। सड़क किनारे फर्नीचर और घर की सजावट की सामग्री की थोक दुकान। काफी बड़े इलाके में फैली हुई। दुकान मालिक को भी दिखाया वीडियो कॉल में।

दोपहर ढाई तीन बजे प्रेमसागर को चाय और जलपान की तलाश थी। एक जगह पूछने पर लोगों ने बताया कि कोई चाय की दुकान तो नहीं है, पर पास के मंदिर में उन्हें चाय पिला सकते हैं। वहां उन्हें चाय मिली ही, भोजन भी मिला – रोटी-दही-चावल-अचार सब। लोगों को पता चला कि प्रेमसागर द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा कर चुके हैं तो उन्होने एक दिन वहां रुकने को आग्रह किया।

प्रेम और सत्कार! प्रेमसागर ने वहीं रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया।

“करीब चार बीघा जमीन में बना है मंदिर भईया। मैदानेश्वर महादेव। कई देवी देवता हैं मंदिर में पर महादेव तो खुले में हैं। मैं आपको फोटो भेजता हूं। उससे साफ हो जायेगा।”

मंदिर में मिले लोग ग्रामीण ही दिखते हैं। दोपहर की गर्मी में बाहर बैठ कर खिंचाये चित्र में लोगों के हाथ में बांस के पन्खे हैं। एक सज्जन दाढ़ी वाले गेरुआ पहने हैं। शायद मंदिर के प्रमुख हों वे। प्रेमसागर को भरपूर आदर देते दिखाई देते हैं वे।

चित्र में स्थान का नाम है – बापा।

मैदानेश्वर मंदिर में प्रेमसागर

आज की यात्रा छोटी और अच्छी रही। यात्रा ऐसी ही होनी चाहिये। जहां मन हो, रुक जाया जाये।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 86
कुल किलोमीटर – 2820
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। विराट नगर के आगे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

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