यात्रा के दूसरे चरण की वापसी


27 मई 2023

दूसरे चरण में पांच शक्तिपीठों के दर्शन पूरे किये प्रेमसागर ने। जितनी जद्दोजहद दर्शन करने के लिये थी; उतनी ही वापसी के लिये भी है। एक भी पल ज्यादा रुकने का अर्थ है पैसा खर्च करना। और पैसे उनके पास हैं नहीं। कांगड़ा घाटी की सुंदरता समेटने के लिये उनके पास संसाधन नहीं हैं।

पांच सात सौ साल पहले का जमाना नहीं है जब साधू-संतों की इज्जत किया करते थे ग्रामीण। ग्रामीण और नागरिक बदल गये हैं और साधू संतों ने भी अपनी इज्जत खराब कर ली है। यायावरी का वह मॉडल अब उतना प्रभावी नहीं है।

यह ब्लॉग लेखन – यह डियाकी (डिजिटल यात्रा कथा लेखन) कुछ सीमा तक उनकी सहायता करता है। जब उन्हें अपना परिचय देता है तो वे अपने ऊपर लिखी पोस्टों का संदर्भ देते हैं। उससे कुछ लोग प्रभावित होते हैं, कुछ नहीं भी होते। यूं गड्डमड्ड तरीके से काम चल रहा है।

प्रेमसागर को कांगड़ा से रानीताल तक किसी सज्जन ने अपने वाहन में जगह दे दी है। अब वे रानीताल पंहुच कर किसी बस की प्रतीक्षा कर रहे हैं। या हो सकता है कि कोई दूसरे वाहन में उन्हें लिफ्ट मिल जाये। आसपास खड़े लोग भी उनकी सहायता करना चाहते हैं।

देखें आगे की यात्रा कैसे होती है। वे होशियारपुर या जालंधर कैसे पंहुचते हैं। वहां से उन्हें बनारस आना है और बनारस से मुझसे मिलने आना है। वे आगे की यात्रा का रूट-मैप बनाने के लिये मेरे इनपुट्स मांगेंगे। मुझसे जो उनके शक्तिपीठों की यात्रा में नहीं, उनकी पदयात्रा में रुचि रखता है – वह जो अच्छा यात्रा विवरण न मिलने पर खीझता है और अच्छा कण्टेण्ट मिलने पर मन मयूर हो जाता है।

प्रेमसागर को कांगड़ा से रानीताल तक किसी सज्जन ने अपने वाहन में जगह दे दी है। अब वे रानीताल पंहुच कर किसी बस की प्रतीक्षा कर रहे हैं। या हो सकता है कि कोई दूसरे वाहन में उन्हें लिफ्ट मिल जाये।

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
प्रकाशित पोस्टों की सूची और लिंक के लिये पेज – शक्तिपीठ पदयात्रा देखें।
*****
प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ, कांगड़ा


26-27 मई 2023

इस बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का कथानक पाण्डवों तक जाता है। त्रिगर्त (रावी और सतलुज के बीच का हिमाचल का क्षेत्र) में प्रवास कर रहे सभी पांचों पाण्डवों को एक रात देवी का स्वप्न आया कि वे नागरकोट (कांगड़ा के पास गांव) में हैं। आदेश सा था कि उनका मंदिर बनना चाहिये। पाण्डवों ने उनका नागरकोट में आनन फानन में मंदिर बनाया और दुर्गावतार में उनकी आराधना की।

उसके पहले का मिथक है कि सती का बांया स्तन गिरा था इस स्थान पर। यहां वे जयदुर्गा के नाम से जानी जाती हैं और यहां भैरव हैं अभीरु (भय से रहित?)।

कहा जाता है कि नागरकोट के शक्तिपीठ मंदिर को अनेकानेक बार आक्रांताओं ने लूटा था। मुहम्मद गजनी ने इसे कम से कम पांच बार लूटा। सन 1905 में यह मंदिर अंतत: एक भूकम्प में नष्ट हुआ। उसके बाद सरकार ने इसे पुख्ता आधार पर बनवाया। माता बज्रेश्वरी देवी एक पिण्ड के रूप में यहां विराजमान हैं।

प्रेमसागर ने 26 मई को ज्वालाजी से कांगड़ा की पदयात्रा की। ध्येय बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ का दर्शन करना था। 26 मई को सवेरे ज्वाला जी से निकल कर उत्तर की ओर बढ़े प्रेमसागर। मौसम गर्म नहीं था। रास्ते में एक साथ दो तीन घण्टे आराम करने की बजाय आधा आधा घण्टे का ब्रेक लिया। रास्ता ऊंचाई का ज्यादा था। चढ़ाई में मेहनत लगी पर मौसम ने साथ दिया तो चलना अखरा नहीं।

“भईया इस डिजाइन को सलेट (?) कहते हैं। इस डिजाइन की खासियत है कि गर्मी में यह मकान ठण्डा और सर्दियों में गर्म रहता है।

सवेरे रास्ते में एक मकान का चित्र दिया। साथ में एक ऑडियो मैसेज भी। “भईया इस डिजाइन को सलेट (?) कहते हैं। इस डिजाइन की खासियत है कि गर्मी में यह मकान ठण्डा और सर्दियों में गर्म रहता है। हिमाचल की जलवायू के मुफीद।”

ज्वालाजी से बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का पैदल रास्ता पैंतीस किमी से अधिक का है। ज्वालाजी से रानीताल तक की उत्तर की ओर यात्रा, उसके बाद कुछ दूरी तक बनेर खड्ड के समांतर पूर्व की ओर चल कर बाथू खड्ड को पार करना हुआ। बाथू खड्ड और बनेर का संगम भी वहीं पर है। आगे चार लेन की सड़क का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। वहां से आगे उत्तर-पूर्व की ओर चलते हुये बाण गंगा नदी पर कांगड़ा पुल है। “बाणगंगा में पानी का बहाव तेज है भईया। बहाव तेज तो बनेर खड्ड में भी है। बाथू खड्ड का जल धीमा है।”

आगे चार लेन की सड़क का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है।

शाम छ बजे के आसपास उनसे बात हुई। एक सज्जन अवतारसिंह रास्ते में तरबूज का ठेला लगाये बैठे थे। तरबूज तो वे पच्चीस रुपया किलो बेच रहे थे पर प्रेमसागार को बुला कर श्रद्धा से उन्हें मीठा तरबूज खिलाया। अवतारसिंह ने बताया कि उनके बाबा पाकिस्तान के पंजाब से यहां विस्थापित हो कर आये और यहीं रह गये।

एक सज्जन अवतारसिंह रास्ते में तरबूज का ठेला लगाये बैठे थे। तरबूज तो वे पच्चीस रुपया किलो बेच रहे थे पर प्रेमसागार को बुला कर श्रद्धा से उन्हें मीठा तरबूज खिलाया।

शाम के समय शक्तिपीठ मंदिर के आसपास सभी लॉज-धर्मशालायें भरी मिलीं। रेट भी ज्यादा थे। बड़ी मुश्किल से प्रेमसागर को एक हजार में रहने को जगह मिली। वह भी इस शर्त पर कि अगले दिन नौ बजे से पहले उन्हें निकलना होगा। आगे किसी और की बुकिंग है।

27 मई को सवेरे सवेरे प्रेमसागर ने बज्रेश्वरी शक्तिपीठ के दर्शन सम्पन्न किये। सवेरे भी भीड़ बहुत थी। राजकोट और मध्यप्रदेश के लोग बहुत थे। उन लोगों की माता जी कुल देवी हैं। जत्थे के जत्थे उनके दर्शन को आये हुये थे। इन्हीं के कारण सभी लॉज, धर्मशाला और होटल भरे हुये थे।

दर्शन के बाद एक जगह बैठ कर प्रेमसागर ने जलपान किया। तब कहा – “रेलवे स्टेशन जाऊंगा भईया। अगर नैरोगेज की कोई गाड़ी पठानकोट या किसी और जगह के लिये जाती होगी तो उससे, नहीं तो किसी बस से लौटूंगा। अब यहां का कार्य सम्पन्न हो गया है। आगे रहने की भी जगह नहीं है। रास्ते में अगर कांगड़ा किला दिखा तो उसे दूर से देखूंगा। और तो बस निकलना ही है यहां से।”

कांगड़ा घाटी के सौंदर्य के बारे में मैंने बहुत पढ़ा है। प्रेमसागर की जगह मैं होता तो वहीं तीन चार दिन गुजारता। पर प्रेमसागर का मिशन कुछ और है। वे तो शक्तिपीठों को छूने निकले हैं। उनके लिये दर्शन के संकल्प मुख्य हैं। श्रद्धा भी और सौंदर्य भी गौण हैं। मैं उनमें दोष नहीं देखता। पर अगर मेरी अपनी यात्रा होती तो एक अलहदा तरीके से होती। उसमें बनेर खड्ड, बाणगंगा, निर्माण कार्य, रास्ते में बन रहे बुगदों-सुरंगों, अवतारसिंह के तरबूजों और ज्वालाजी की धर्मशाला के मैनेजरों, चाय की दुकान वालों आदि के लिये कहीं ज्यादा समय होता। पर प्रेमसागर प्रेमसागार पाण्डेय हैं। मैं ज्ञानदत्त, ज्ञानदत्त पाण्डेय हूं। दोनो नामों में पाण्डेय होने की समानता के अलावा शायद बहुत कुछ समान नहीं है। उनकी पदयात्रा अलग है और मेरी डियाक (डिजिटल यात्रा कथा) अलग!

दिन के सवा इग्यारह बजे हैं। प्रेमसागर की लोकेशन रानीताल के आसपास दीख रही है। लगता है प्रेमसागर को कोई ट्रेन नहीं मिली। वे बस से यात्रा कर रहे हैं वापसी की। शायद होशियारपुर पंहुचें या फिर जालंधर। उनसे बात हुई तो पता चलेगा।

फिलहाल यात्रा के इस दूसरे चरण में उन्होने पांच शक्तिपीठ दर्शन सम्पन्न किये हैं – कुरुक्षेत्र का देवीकूप भद्रकाली, जालंधर का त्रिपुरमालिनी, हिमाचल के चिंतपूर्णी, ज्वालाजी और बज्रेश्वरी देवी। इनमें से ज्वालाजी वह महाशक्तिपीठ भी है जिसका उल्लेख आदिशंकराचार्य ने अपने अष्टादश शक्तिपीठ स्तोत्र में किया है।

बड़ी उपलब्धि है प्रेमसागर की यह!

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
दिन – 83
कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

चिंतपूर्णी से ज्वाला जी


25 मई 2023

माँ छिन्नमस्ता का चित्रण घोर है। उनके और उनकी योगिनियों से इतर उनके सृजनात्मक स्वरूप की कल्पना करना कठिन है। मैं उस बारे में सोचने, ध्यान करने और जानकार लोगों से चर्चा करने को कहता हूं। पर वैसा कुछ नहीं होता। प्रेमसागर अभी अपने मोबाइल की जेबकतरी से उद्विग्न हैं। फिर भी वे अपना अकाउण्ट आदि सिक्योर करने में सफल होते हैं। मैंने पूछा नहीं, पर लगता है उन्हें नींद आयी होगी। नींद और गहरी नींद।

अगले दिन वे आगे की यात्रा को तैयार हैं। वे बज्रेश्वरी शक्तिपीठ की ओर निकल लिये हैं।

ईश्वर (या माँ) भीड़भाड़ वाली जगहों में रहते हैं? वे जेबकतरों, ठगों, आपकी जेब पर बक-ध्यान लगाये यांत्रिक रूप से मंत्रोच्चार करते पण्डा लोगों के बीच रहते हैं? मैं इस विषय में अंतिम तौर पर नहीं सोच पाता। मेरा सोचना था कि प्रेमसागर मुझे शायद कुछ उत्तर दे सकें – पर वे उत्तर देने के लिये नहीं हैं। वे मात्र आगे चलने के लिये हैं।

तीखे यू टर्न। इतने कि कई जगह उनमें आने वाले वाहनों को देखने के लिये उन्नतोदर रिफ्लेक्टर लगे हैं।

उत्तर तो खुद को खोजने हैं, जीडी। वैसे भी किसी ट्रेवलॉग के माध्यम से उत्तर थोड़े ही मिलते हैं।

चिंतपूर्णी से ज्वालाजी के रास्ते में सड़क घुमावदार थी, बहुत ही घुमावदार। तीखे यू टर्न। इतने कि कई जगह उनमें आने वाले वाहनों को देखने के लिये उन्नतोदर रिफ्लेक्टर लगे हैं। वाहनों की गति भी कम ही होती होगी। वृक्ष भी वे ही दीखते हैं जो मैदान में हैं। शायद इस स्थान की प्रकृति शिवालिक की तरह है। तराई के इलाके जैसी। प्रेमसागर के भेजे चित्रों में घुमावदार रास्ते, पहाड़ और घाटियां जरूर हैं, पर आम के वृक्ष भी हैं। प्रेमसागर का कहना है कि ये आम हमारे यहां के आम जैसे नहीं हैं। आकार में छोटे हैं।

प्रेमसागर के भेजे चित्रों में घुमावदार रास्ते, पहाड़ और घाटियां जरूर हैं, पर आम के वृक्ष भी हैं।

व्यास नदी भी है और उसके खाड भी। खाड या खड्ड कुछ इस तरह हैं मानो नदी – व्यास या सतलुज स्त्री की मांग हों और खाड उससे निकली केशराशि या जटायें। जगह जगह बोर्ड लगे हैं कि खाड के पानी को पार करने का जोखिम न उठायें। पानी कभी भी तेज बहाव का हो कर खतरनाक हो सकता है।

एक खाड का दृश्य

एक सज्जन का चित्र भेजा है प्रेमसागर ने। बहुत सोच कर उनका नाम बता पाते हैं। रास्ते में आंधी-तूफान-पानी आया था तो दो तीन घण्टे उन्होने अपने घर में शरण दी थी। चाय और जलपान भी कराया था। “भईया, वे बोले कि एक घण्टा और रुक जायें तो उनकी पत्नी आने वाली हैं। तब वे भोजन करा सकेंगे। पर मुझे तो आगे बढ़ना था। जितनी देर भोजन का इंतजार करता उतने में तो काफी दूर चल लेता। मौसम ठीक होते ही निकल लिया।”

वे सज्जन जिन्होने प्रेमसागर को बारिश और तूफान में अपने घर में शरण दी

रास्ते में एक सज्जन मिले जो अकेले साइकिल से यात्रा में थे। यमुनानगर से ज्वालाजी की यात्रा में। वे प्रेमसागर के साथ दो तीन किलोमीटर पैदल चले। तीन किलोमीटर साथ और पैदल, पर प्रेमसागर उनका नाम तक नोट नहीं किये। फोन नम्बर भी नहीं। ट्रेवलॉग लेखन की जरूरत की ओर उनका ध्यान नहीं जाता। कैसा व्यक्ति है? क्या नाम है? क्या श्रद्धा है? संसार में कैसे व्यवहार करता है? अपने परिवार को कितना ध्यान देता है? यात्रा उसका मनोविनोद है, धर्म है, श्रद्धा है या पलायन है? अनेकानेक प्रश्न हैं। तीन किलोमीटर साथ चलना बहुत समय होता है इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिये। वह प्रेमसागर नहीं करते। करते भी हैं तो याद नहीं रखते। नोट करना तो और भी दूर की बात है। मैं प्रेमसागर से अनुरोध करता हूं कि वे चित्र भले ही खांची भर न भेजें। काम के दो चार ही भेजें पर साथ में अपनी आवाज में उसका विवरण दें। वह भी उनके अनुशासन में नहीं है।

रास्ते में एक सज्जन मिले जो अकेले साइकिल से यात्रा में थे। यमुनानगर से ज्वालाजी की यात्रा में। वे प्रेमसागर के साथ दो तीन किलोमीटर पैदल चले।

उनकी यात्रा गजब की यात्रा है। पैदल इस सुरम्य प्रदेश में पदयात्रा अभूतपूर्व अनुभव है। पर वह ट्रेवलॉग में नहीं उतर रहा। मैं उस कमी को नेट पर उपलब्ध सामग्री से पूरा कर सकता हूं। पर वह तो कोई भी कर सकता है।

आज के युग में ट्रेवलॉग लेखन बहुत आसान है। साल छ महीने में चैटजीपीटी हमसे कहीं बेहतर लिख देगा। पर उसमें व्यक्तिगत अनुभव महत्व का है। वह चैटजीपीटी (या कोई और एआई का यंत्र) नहीं ला पायेगा।

वही लाना है। पर कैसे?

व्यास नदी पार की प्रेमसागर ने। सुंदर नदी।

व्यास नदी पार की प्रेमसागर ने। सुंदर नदी। जैसी घुमावदार और सुंदर यात्रा है, वैसी ही इस नदी की प्रकृति है। इस स्थान के कुछ ही उत्तर में नदी पर बांध है। बड़ी झील। महाराणा प्रताप जलाशय। इस जगह से दस किमी उत्तर-पश्चिम में होगा वह जलाशय। आगे की पदयात्रा में वह नहीं गुजरेगा। मैं होता, एक घुमक्कड़ पदयात्री तो शायद वहां जाता।

दोपहर में प्रेमसागर ज्वालाजी पंहुच गये। धर्मशाला के सज्जन ने उनकी पदयात्रा की प्रकृति जान कर उन्हें आठ सौ की बजाय पांच सौ में ही कमरा दे दिया। मंदिर का दर्शन किया। भव्य है वह। “दो जगह ज्वाला निकलती है भईया। चित्र लेने की मनाही है। इसलिये एक जगह तो नहीं ले पाया पर दूसरी जगह दूर से फोटो लिया। शाम हो मंदिर के परिसर में बैठना बहुत अच्छा लगा तो वहां का भी चित्र ले लिया।”

मैं ज्वाला जी को विकिपेडिया पर सर्च करता हूं। इस शक्तिपीठ के अलावा कई अन्य स्थान हैं, जहां पृथ्वी से सतत ज्वाला निकलती है। अजरबैजान में बाकू (अतेशगाह) में है। उस स्थान पर हिंदू, सिख और पारसी – अग्निपूजक – तीनों के धर्मस्थान हैं। इसके अलावा नेपाल में मुक्तिनाथ मंदिर है और ज्वालादेवी मंदिर, शक्तिनगर, शोणभद्र, उत्तर प्रदेश में है।

शाम हो मंदिर के परिसर में बैठना बहुत अच्छा लगा तो वहां का भी चित्र ले लिया।

जेबकतरे द्वारा चुराया मोबाइल मिला नहीं। चिंतपूर्णी में पुलीस वाले सज्जन उनके साथ मोबाइल की दुकानों पर गये। एक दुकान वाले ने बताया भी कि रेडमी का एक फोन बेचने कोई आया था। जेबकतरा वहीं मंदिर के पास की रहता-पलता है! पर वह हाथ नहीं आया। अब प्रेमसागर के पास जो फोन है वह क्विर्की है। उसकी कमी मैं प्रेमसागर को मोबाइल पर ऑडोयो मैसेज देने से पूरा करने का कहता हूं। पर वे उसमें दक्ष नहीं हैं।

काम चल रहा है। यात्रा चल रही है!

हर हर महादेव। ॐ मात्रे नम:।

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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प्रेमसागर के लिये यात्रा सहयोग करने हेतु उनका यूपीआई एड्रेस – prem12shiv@sbi
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कुल किलोमीटर – 2760
मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

मड़ैयाँ डेयरी का एक चरित्र


पारा चालीस के पार चल ही रहा है। दो तीन दिन से तो चव्वालीस से पार है। परसों छियालीस था। घर में स्टेशनरी साइकिल झाड़-पोंछ कर तैयार की गयी है। कोशिश की जायेगी कि कमरे में ही साइकिल चलाई जाये और घर के अंदर ही पैदल चला जाये।

उर्दू मुझे नहीं आती, पर उसकी टांग तोड़ कर लिखा जाये तो गर्मी बाहर-ए-नाबर्दाश्त है। बाहर निकलते ही झुलसने लगता है शरीर।

अशोक – वाहन चालक – को कहा है कि देर से आने की बजाय आठ बजे तक आ जाये। उसके साथ कार में जाता हूं दूध लेने। कार का खर्चा जोड़ लिया जाये तो दूध नब्बे रुपये किलो पड़ेगा। पर नब्बे रुपया देखें या शरीर का आराम?

जो कोई लोग या चरित्र मिलते हैं, वे डेयरी पर ही मिलते हैं। एक आदमी वहां दूध देने नहीं आया है। पूछने आया है कि भैंस के एक किलो दूध से कितना खोआ बन सकता है। वह यहां से दूध खरीद कर खोआ बनाना चाहता है। उसके सवाल करने पर वहां उपस्थित सभी लोग सोशल मीडिया के विद्वानों की तरह विद्वता ठेलने लगते हैं।

एक बम्बईया रिटर्न्ड अपनी बम्बईया लहजे की देहाती में ज्ञान बांटते हैं – हमारे बम्बई का दूध अच्छा होता है। एक किलो में कुछ नहीं तो एक सौ अस्सी ग्राम खोआ बनता है। टॉप क्लास खोआ।

गांव के भदोहिया भुच्च लोग खोआ की मात्रा एक पाव तक खींच ले जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं – तू लण्ठ हयअ। गाई क दूध क खोआ बनवअ। (तुम मूर्ख हो, गाय के दूध का खोआ बनाओ)। … जितने मुंह उतनी बातें।

वह आदमी मुझे दूध ले कर निकलने पर सड़क पर खड़ा दिखता है। उसने दूध नहीं लिया। वह अभी भी अनिश्चय में है। मैं सड़क पार उसे फैट कंटेंट और एसएनएफ के आंकड़े, खोये में कुछ आद्रता की मात्रा आदि के अनुसार बताने की कोशिश करता हूं। पर टेक्नीकल टर्म उसके पल्ले नहीं पड़ती। मुझे लगता है कि उसने खोआ बनाने का विचार त्याग दिया है।

साधारण सा आदमी। उसकी सफेद कमीज साफ नहीं है। बांई ओर की जेब फटी है और उसे सिलने के लिये जो धागा उसने या उसकी पत्नी ने इस्तेमाल किया है, वह सफेद नहीं किसी और रंग का है। उसके बाल बेतरतीब हैं और उसकी साइकिल भी कम से कम पंद्रह साल पुरानी होगी।

साधारण सा आदमी। उसकी सफेद कमीज साफ नहीं है। बांई ओर की जेब फटी है और उसे सिलने के लिये जो धागा उसने या उसकी पत्नी ने इस्तेमाल किया है, वह सफेद नहीं किसी और रंग का है। उसके बाल बेतरतीब हैं।

सड़क पर खड़ा वह आदमी, अब मुझे लगा कि मेरी इंतजार में ही खड़ा था। वह मुझे अपना नाम बताता है। यह भी बताता है कि पास के गांव का है – तितराही का। वह मुझे जानता है। थोड़ा रुक कर वह जोड़ता है – “मैं जानता हूं; और लोग भी जानते हैं कि आप बड़े अच्छे और सीधे आदमी हैं।”

मुझे अच्छा लगता है एक अपरिचित के मुंह से यह सुनना। पर मैं तय नहीं कर पाता कि कैसे और क्या प्रतिक्रिया करूं। बस, यही कहता हूं – अच्छा चलता हूं। महराजगंज बाजार भी जाना है। कुछ सामान ले कर घर लौटना है।


चिंतपूर्णी – माँ छिन्नमस्ता देवी


23-24 मई 2023

अजीब लगता है मां छिन्नमस्ता की कल्पना करना – देवी ने शुम्भ-निशुम्भ असुरों का संघार सम्पन्न किया है। उनके साथ दो योगिनियां हैं (जया, विजया या डाकिनी और वारिणी) जिन्होने उनके साथ मारकाट की है। अब कार्य सम्पन्न होने पर भी उनकी क्षुधा शांत नहीं हुई है। वे और और भोजन, और रक्त की मांग करती हैं। और माता अपना मस्तक काट कर उनको अपने रक्त से शांत करती हैं। उनके शिर विहीन धड़ के हाथ में उनका छिन्न सिर है। कटे गले से तीन रक्त धारायें निकल रही हैं। दो उन योगिनियों के मुंह में जाती है और एक स्वयम उनके छिन्न मस्तक में।

कोलकाता के एक कालीपूजा मण्डप में छिन्नमस्ता। CC BY-SA 3.0, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=5085646 द्वारा।

ऊना जिले का चिंतपूर्णी शक्तिपीठ माँ छिन्नमस्ता का मंदिर है। झारखण्ड में राजरप्पा में भी जो मंदिर है वह माँ छिन्नमस्ता का है।

माता का यह घोर रूप मेरी समझ नहीं आता। चिंतपूर्णी का अर्थ है – सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली। यह स्थान माना जाता है कि वह है जहां सती के पैर का हिस्सा गिरा था।

छिन्नमस्तिका (या प्रचण्ड चण्डिका) दश महाविद्याओं में से एक है। दश महाविद्यायें हैंं – काली, तारा, शोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।

दश महाविद्यायें हैंं – काली, तारा, शोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। By The Calcutta Art Studio – https://www.britishmuseum.org/collection/object/A_2003-1022-0-37, Public Domain, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=9856479

माँ छिन्नमस्ता मृत्यु और सृजन दोनो की प्रतीक हैं। इस विषय में ज्यादा तार्किक ढंग से तो दश महाविद्या के विद्वान ही बता सकते हैं। मेरे लिये तो मातृशक्ति का संहारक रूप महाकाली और सृजक महासरस्वती के रूप में ही है।

23 मई की दोपहर माँ छिन्नमस्ता के शक्तिपीठ में दोपहर में प्रेमसागर ने दर्शन किये। वहां उन्होने कुछ चित्र भी लिये। मुझे चित्र भेजने के बाद मंदिर के परिसर में ही किसी ने उनका बैग ब्लेड से काट कर वह मोबाइल चुरा लिया।

चिंतपूर्णी माँ मंदिर परिसर में प्रेमसागर

“भईया मन डिस्टर्ब हो गया। एक बार फिर मंदिर में गया। बोला – माँ मोबाइल चाहिये था, तो वैसे ही आदेश करतीं। मैं दे ही देता। पर यह तरीका तो ठीक नहीं लगा। भईया पण्डा लोग मेरा यह कहने पर हंस रहे थे। पर मेरे मन में जो था, मैं वही कह रहा था…” प्रेमसागर के यह बताते समय मुझे लग रहा था कि उनकी आस्था को कहीं न कहीं ठेस लगी है।

23 मई की दोपहर माँ छिन्नमस्ता के शक्तिपीठ में दोपहर में प्रेमसागर ने दर्शन किये। वहां उन्होने कुछ चित्र भी लिये। मुझे चित्र भेजने के बाद मंदिर के परिसर में ही किसी ने उनका बैग ब्लेड से काट कर वह मोबाइल चुरा लिया।

रात में प्रेमसागर ठीक से सो नहीं पाये। उनकी तबियत वैसे भी ठीक नहीं थी। हल्की हरारत है। आज (24 मई को) सवेरे उन्हें ज्वालाजी के लिये निकलना था। पर निकलना नहीं हुआ। “किराया बहुत है लॉज का भईया। पांच सौ और भोजन अलग से। पर और कोई उपाय नहीं है।”

गगरेट से चिंतपूर्णी का रास्ता बढ़िया था। पहाड़ी और घुमावदार। दृश्य मोहक थे और तापक्रम भी ज्यादा नहीं था। प्रेमसागर का गला खराब था और शरीर में ऊर्जा भी कम थी। फिर भी आसानी से उन्होने 22 किमी का चलना सम्पन्न किया। उसके बाद लॉज/धर्मशाला आने जाने में भी चले होंगे। कुल करीब 25 किमी।

सब अच्छा रहा, बस मंदिर परिसर में, जहां आस्था का सैलाब होना चाहिये वहां कोई जेबकतरा अपनी कारस्तानी कर गया। वह भी मोबाइल की। मोबाइल, जिसके माध्यम से ब्लॉग – सम्पर्क सम्भव होता है!

आगे देखें बिना उस मोबाइल के, दूसरे मोबाइल से जिसके चित्र धुंधले आते हैं, कैसे ब्लॉग-सम्प्रेषण हो पाता है।

हर हर महादेव! ॐ मात्रे नम:!

प्रेमसागर की शक्तिपीठ पदयात्रा
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मैहर। प्रयागराज। विंध्याचल। वाराणसी। देवघर। नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ। दक्षिणेश्वर-कोलकाता। विभाषा (तामलुक)। सुल्तानगंज। नवगछिया। अमरदीप जी के घर। पूर्णिया। अलीगंज। भगबती। फुलबारी। जलपाईगुड़ी। कोकराझार। जोगीघोपा। गुवाहाटी। भगबती। दूसरा चरण – सहारनपुर से यमुना नगर। बापा। कुरुक्षेत्र। जालंधर। होशियारपुर। चिंतपूर्णी। ज्वाला जी। बज्रेश्वरी देवी, कांगड़ा। तीसरा चरण – वृन्दावन। डीग। बृजनगर। सरिस्का के किनारे।
शक्तिपीठ पदयात्रा

मड़ैयाँ डेयरी का दूध कलेक्शन सेण्टर और लड़कियां


मुझे गांव में शिफ्ट हुये सात साल हो गये हैं। जब आया था तब खेतों में झुण्ड बना कर काम करती लड़कियां दिखती थीं। पर साइकिल ले कर स्कूल जाती नहीं। अब वे बहुत संख्या में नजर आती हैं। बारह से सोलह साल की लड़कियां।

अब सवेरे छ बजे दूध डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर लड़कियों को आते देखता हूं। चार किमी दूर से भी साइकिल चला कर अकेले, बर्तनों में दूध लियी आती हैं।

लड़कियों के आत्मविश्वास के स्तर में भी गजब का बदलाव है। उन्हें लड़कों-आदमियों की तरह निरर्थक हीहीफीफी करते नहीं पाता; पर अपना काम बड़ी दक्षता से करती हैं। कोई घटना इस प्रकार की नहीं देखी जिसमें किसी ने उनकी जगह अपना बाल्टा लाइन में आगे सरका लिया हो। दूध की नापजोख के बारे में भी उन्हें सतर्क पाता हूं। पैसे का हिसाब किताब दुरुस्त है।

दूध देने के लिये लाइन में लगे बर्तन – बाल्टे।

उनके पहनावे में भी बदलाव है। सलवार कुरता की बजाय टॉप और जींस दिखते हैं। कोई कोई दुपट्टा लिये होती है पर वह भी अनिवार्य की जगह ऑप्शनल ही है। दूध सेण्टर पर देने के बाद ये लड़कियां घर पर काम भी करती होंगी और पढ़ाई भी करती होंगी। अनपढ़ जैसी तो नहीं ही हैं।

गांव के समाज में लड़कियों का दर्जा अभी भी (निकम्मे) लड़कों की तुलना में कुछ कम ही है; पर ये लड़कियां जल्दी ही उस गैप को भरती जा रही हैं। अपेक्षा से अधिक तेजी से।

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जितने लोग आते हैं दूध कलेक्शन सेण्टर पर देने के लिये उसमें आठ-दस प्रतिशत ये लड़कियां होंगी। इनके अलावा कुछ बड़ी महिलायें भी आती हैं।

लड़कियों में ही बदलाव क्यों कहा जाये? मातापिता भी अब लड़की को साइकिल ले कर डेयरी भेजने के लिये राजी हो गये हैं। यह बड़ी बात है। एक पीढ़ी पहले लड़की क्या, महिला भी गांव में अकेले नहीं निकल सकती थी।

बड़ी तेजी से आया है यह बदलाव।

चित्रों में मड़ैयाँ डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर सबसे दांये और बायें दूध के बर्तन ले कर आयी लड़कियां ही हैं।

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