दो चेतावनी देती पोस्टें


मैं पिछले दिनों पढ़ी दो पोस्टों का जिक्र करना चाहूंगा, जो मुझे रिमोर्स(remorse)-गियर में डाल गयीं. इनकी टिप्पणियों में मेरी उपस्थिति नहीं है. उससे मैं बहस का हिस्सा बनता. पर जो रिमोर्स की अनुभूति हो रही है – वह तो बहस हर्गिज नहीं चाहती.

पहली पोस्ट महाशक्ति की है – क्या गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाना उचित है?

इस पोस्ट में बापू के जन्मदिन पर उनपर एक ओर्कुट पर छोटे से सर्वे का जिक्र है. उस सर्वे में बापू को राष्ट्र पिता मानने के विपक्ष में बहुमत है. बापू को जन्मदिन पर “श्रद्धांजलि” दी गयी है. जो सामान्यत: मरने पर दी जाती है. पर ज्यादा विचलन तो टिप्पणियों में है जहां बापू के दूसरे चेहरे की बात है. बापू के जीवन-कृतित्व पर सार्थक चर्चा हो, वह समझ में आता है पर छोटे से सर्वे से क्या बनता है. “ह्वेयर देयर इज विल, देयर इज अ वे. ह्वेयर देयर इज नो विल, देयर इज सर्वे!” (Where there is will, there is way. Where there is no will, there is survey)

दूसरी पोस्ट संजय तिवारी की है – भाषा को उगालदान मत बनाइये.

इसमें आई.आई.टी. के छात्रों को नसीहत है कि वे हिन्दी लिखना चाहें तो अपनी डायरी में लिखें. हिन्दी ब्लॉगिंग को समृद्ध करना है तो बढ़िया औजार विकसित करें. यह कैसी सोच है? यह नसीहत मुझ पर भीं अंशत: लागू होती है – मेरे पास भी हिन्दी में लिखने की सनद नहीं है. और यह सनद कौन देते हैं? संजय और उनकी पोस्ट में उल्लेख किये गये मित्र लोग? इस पोस्ट पर मैने फनफनाती टिप्पणी की थी – बल्कि टिप्पणी जिस भाव में करनी प्रारम्भ की थी, उसकी बजाय टिप्पणी के शब्द बड़े माइल्ड थे. फिर भी मैने लिखने के दस मिनट बाद टिप्पणी उड़ा दी. क्या फायदा बहस का?

बस, यह अच्छा लगा कि टिप्पणियों में हिन्दी ब्लॉगर बन्धु सही फ्रीक्वेंसी जताते रहे.


चेतावनी योग्य एक और पोस्ट – महर्षि याज्ञवल्क्य के अनुसार शिवकुमार मिश्र की आजकी पोस्ट “राम की बानर सेना पर परसाई जी का लेख” पढ़ने पर तीन दिन उपवास करना चाहिये! :-)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

18 thoughts on “दो चेतावनी देती पोस्टें

  1. पहली पोस्ट मै ने पढ़ी नहीं इस लिए कुछ नहीं कहना । दूसरी पोस्ट के लिए सिर्फ़ इतना ही कहना है कि ज्ञान जी हम भी उतना आहत महसूस कर रहें है जितना आप्।॥अपना प्रतिरोध उनके ब्लोग में रजिस्ट्र कर आये है। विस्तार से कल लिखेगे

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  2. पंडित जी ,काफी लोगो ने इसपे ढ़ेर सारा कमेंट कर चुके है …लेकिन मैं आप पे एक कमेंट करूंगा ,,पंडित जी आपने तो बाजी मार ली ऐसी धाँसू पोस्ट लिख कर ,सब को चारो खाने चित कर दिया …

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  3. भाई भाखा तो बहता नीर है..जब तक यह बहेगी सड़ेगी नहीं….रही बात आज हिंदी का मतलब बेचारी जुबान तो हो ही गई है कुछ के लिए….

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  4. ज्ञानदत्त जी,दोनों ही पोस्ट पढी थी और कुछ सोचकर टिप्पणी नहीं लिखी | दूसरी पोस्ट के बारे में मन की बात लिख रहा हूँ | हिंदी की सेवा करना मुझे समझ नहीं आता, कम से कम मैं तो हिंदी की सेवा के भाव से न तो ब्लॉग पढता हूँ और न लिखता हूँ | मैं तो अपने सुख के लिए ये कार्य करता हूँ | क्या इससे मेरी कमीज हिंदी की सेवा करने वालों की कमीज से कम सफ़ेद हो जाती है ? पहले वाले मुद्दे पर बस इतना कहूँगा कि इतिहास, धर्म और राजनीति के मुद्दे पर मैंने इन्टरनेट पर सार्थक चर्चा होते बहुत कम ही देखी है और जो भी चर्चा करते हैं वो अपने वाद-विवाद सुख के लिए ही करते हैं | इन्टरनेट पर किए गए सर्वे और आन-लाईन पेटिशन में कोई अन्तर नहीं है, दोनों से कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकलने वाला | इसीलिए इन बातों से अब कोई असर नहीं पड़ता |

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  5. मैंने भी वो दोनों पोस्ट पढी थी.. पहले वाले पर मैंने बहस करना उचित नहीं समझा.. मैं भी उसी युवा वर्ग से आता हूं, जिस वर्ग के युवा महात्मा को महात्मा मानना नहीं चाहते हैं.. पर मेरा सोचना कुछ अलग है.. कोई भी इंसान सम्पूर्ण नहीं हो सकता है, और महात्मा भी उससे अछूते नहीं थे.. पर मेरे ख्याल से जो ऐसा सोचते हैं की उनमें महात्मा से ज्यादा खूबी है, बस उन्हें ही उनकी निन्दा करने का हक है बाकियों को नहीं.. आज के दिन में आपको ढूंढे से भी महात्मा के बराबर की खूबियों वाले लोग नहीं मिलेंगे.. कुछ लोग कहेंगे की ऐसे लोग हैं पर लोग उन्हें जानते नहीं हैं.. पर अपनी बातों को लोगों तक पहूंचाना भी एक बहुत बड़ी खूबी है जो महात्मा में थी.. और वे लोग उस खूबी में महात्मा से पीछे हो जाते हैं.. और रही बात दूसरे पोस्ट की तो, मैं उसपर टिप्पणी करना चाह रहा था क्योंकि मैं भी एक साफ़्टवेयर प्रोफ़ेसनल हूं.. और मेरा संजय तिवारी जी से एक प्रश्न है की क्या हिंदी में लिखने का ठेका पत्रकार वर्ग और खुद को तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के कहने वाले व्यक्तियों ने ही ले रखी है क्या? और अगर ऐसा ही है तो वो लोग ये रोना क्यों रोते हैं की हिंदी ब्लौग पढने वालों और लिखने वालों की संख्या लगभग एक ही है.. लिखने वाले भी सीमित और पढने वाले भी सीमित.. अगर ऐसा ही है, तो वे लोग उसी में खुश रहें.. और कम से कम चेतन भगत और राबिन शर्मा जैसों की किताबों को हाथ भी ना लगायें जो पहले पेशे से लेखक नहीं थे.. पर आज के दिन में मेरे वर्ग के लोगों के सुपर स्टार लेखक हैं.. यह मायने नहीं रखता है की वो हिंदी मे लिखते हैं या अंग्रेजी मे.. और उनकी किताबों की जितनी प्रतियां अभी तक बिक चुकी है, वो किसी भी लेखक के लिये एक प्रेरणा है..

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  6. यह पढकर अच्छा लग रहा है कि हिन्दी चिठ्ठाजगत को हिन्दी साह्त्यिकारो की संक़ीर्ण बस्ती से सभी अलग रखना चाहते है। निश्चित ही इस तरह का चिंतन नये ब्लागरो के लिये मील का पत्थर साबित होगा।

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  7. आपके द्वारा उल्लेखित पहली पोस्ट पर तो हमें कुछ कहने का मन ही नही हुआ , दूसरी पोस्ट पर ज़रुर हमने संजय भाई से अपना विरोध दर्ज़ करवा दिया!!और रहा सवाल तीसरी चेतावनी का तो उसे हमने जानकर भी अनसुना कर दिया है……मैं और उपवास??? न भाई न, हम तो खाने के ही जीते हैं॥हिंदी जो भी जैसा भी लिख रहा है लिखे तो सही, गलतियों पर शुरुआत मे ही टोकने लगेंगे तो फ़िर वह आगे लिखना ही बंद कर देगा, वैसे भी सुना है कि कविताएं मन की अभिव्यक्ति होती है अर्थात वे अंग्रेजीदां युवा अपने मन की अभिव्यक्ति हिंदी मे ही पाते हैं तो इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है भला!!

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  8. इष्ट देव सांकृत्यायन > ….और हाँ! बहस में पड़ने से डरने की जरूरत नहीं है. भले बहस के केंद्र में मौजूद व्यक्ति पर इसका कोई असर न हों, लेकिन दूसरे लोगों की दृष्टि तो साफ हो सकती है.———————————-आपने जो कहा, वही मैं कहना चाहता था. आप ने कह दिया और हमसे कहीं बेहतर कह दिया. इसे अपनी उपलब्धि ही मानूंगा मैं.

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