बात शुरू हुई डुप्लीकेट दवाओं से। पश्चिम भारत से पूर्वांचल में आने पर डुप्लीकेट दवाओं का नाम ज्यादा सुना-पढ़ा है मैने। डुप्लीकेट दवाओं से बातचीत अन्य सामानों के डुप्लीकेट बनने पर चली। उसपर संजय कुमार जी ने रोचक विवरण दिया।
संजय कुमार जी का परिचय मैं पहले दे चुका हूं – संजय कुमार, रागदरबारी और रेल के डिब्बे वाली पोस्ट में। उन्होने अपना ब्लॉग तो प्रारम्भ नहीं किया, अपनी व्यस्तता के चलते। पर अनुभवों का जबरदस्त पिटारा है उनके पास और साथ ही रसमय भाषा में सुनाने की क्षमता भी। उसका लाभ मैं इस पोस्ट में ले रहा हूं।
उन्होने बताया कि लगभग 20 वर्ष पूर्व वे छपरा में बतौर प्रोबेशनर अधिकारी ट्रेनिंग कर रहे थे। खुराफात के लिये समय की कमी नहीं थी। छपरा में स्टॉफ ने बताया कि कोई भी ऐसी नयी चीज नहीं है जो सिवान में न बनती हो। उस समय ट्विन ब्लेड नये चले थे। संजय ने पूछा – क्या ट्विन ब्लेड बनते हैं डुप्लीकेट? खोजबीन के बाद उत्तर मिला – “हां। फलानी फेमस कम्पनी का ट्विन ब्लेड डुप्लीकेट सिवान में बनता है।”
“आप फलानी फेमस ब्राण्ड की बजाय हमारे किसी ऐसे-वैसे ब्राण्ड का ट्विन ब्लेड खरीदेंगे?” – उन नौजवानों ने उत्तर दिया। “सामान सब अच्छा बनाना आता है हमें। पर बिकेगा नहीं। लिहाजा इस तरह चल रहे हैं।”
बिहार जैसा पिछड़ा प्रांत और सिवान जैसा पिछड़ा जिला। कालांतर में सिवान बाहुबलियों और अपराध के लिये प्रसिद्ध हुआ। वहां बीस साल पहले भी नौजवान हुनर रखते थे कुछ भी डुप्लीकेट सामान बनाने का!
इस हुनर का क्या सार्थक उपयोग है? यह कथा केवल सिवान की नहीं है। देश में कई हिस्सों में ऐसा हुनर है। पर सब अवैध और डुप्लीकेट में बरबाद हो रहा है। नैतिकता का ह्रास है सो अलग।
संजय कुमार जी का धन्यवाद इसलिये कि उन्होने एक फर्स्ट हैण्ड अनुभव (भले ही बीस साल पुराना हो) मुझे बताया जिसे ब्लॉग पर लिखा जा सके।
मैने कहीं पढ़ा कि हिन्दी ब्लॉगरी में कुछ लोग अभी शैशवावस्था में हैं। ब्लॉग का प्रयोग बतौर डायरी कर रहे हैं। मेरे विचार से अगर ब्लॉग में “मैं” का एलिमेण्ट न हो तो ब्लॉग पढ़ने का क्या मजा? आदमी सीधे शुष्क शोध-प्रबन्ध न पढ़े! इसलिये जान बूझ कर संस्मरणात्मक पोस्ट ठेल रहा हूं – यह भी देखने के लिये कि लोग पढ़ते हैं या नहीं!
और मुझे हिन्दी ब्लॉग जगत में शिशु माना जाये – इससे मस्त और क्या हो सकता है!

ज्योतिषियों के पास तो लोग केवल भविष्य की जानने जाते हैं, पर कभी कभी यूं पीछे जाकर देखना भी कितना अच्छा लगता है :-)
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वाकई देश में कई प्रतिभाएँ हैं जो कि अभावों के कारण बेकार जा रही हैं!!वैसे यदि डुप्लिकेट आईपॉड (ipod) और ओ२ एक्स-डी-ए फ्लेम (O2 XDA Flame) भी मिलता हो सस्ते दाम में तो बताईयेगा!! ;)
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भई क्या ये हुनरमंद न्यूज़ चैनल का भी डुप्लीकेट बना सकते हैं? कहां
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एक शोध की जरूरत है….संजय जी से ये बात जरूर पूछियेगा कि ये नौजवान आगे चलकर कहीं उस इलाके का एमपी टू नहीं बन गया…पॉपुलर ‘मेरठी’ ने लिखा है;अजब नहीं कभी तुक्का जो तीर बन जाएदूध फट जाए कभी तो पनीर बन जाएमवालियों को न कभी देखना हिकारत सेन जाने कौन सा गुंडा वजीर बन जाए
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आपकी पोस्ट पढ़ डाली,संजय जी का संस्मरण लाजबाब हैं.आप की बात सत्य है, की अगर ब्लॉग में “मैं” का एलिमेण्ट न हो तो ब्लॉग पढ़ने का क्या मजा? आदमी सीधे शुष्क शोध-प्रबन्ध न पढ़े! रही बात आपके शिशु होने की , मेरे विचार से सही नहीं हैं,अच्छा संस्मरण है।
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ज्ञानदत्तजी, आपकी सारी पोस्ट पढ़ डाली बस टिपण्णी इसी पर छोड़ रहे हैं. हम मथुरा सकुशल आ गए हैं, और यहीं पर एक साइबर कैफे से टिपिया रहे हैं. आज ही रात को कानपुर और उसके बाद बनारस और इलाहाबाद के लिए निकल रहे हैं. बाकी व्योरा फुरसत में. घर पर इंटरनेट लगाने के लिए आवेदन दे दिया है है १-२ दिन में लग जाना चाहिए, उसके बाद आराम हो जायेगा .
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सही!!संस्मरणात्मक पढ़ना ही ज्यादा सही लगता है सो आप ऐसे ही जारी रखें।रही बात आपके शिशु होने की तो क्या मुझे इज़ाज़त है कि मै ब्लॉग जगत मे पैदा हो जाऊं।
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आप की बात सत्य है की देश मैं प्रतिभा की कमी नहीं लेकिन होता ये है की हम अपनी गुणवत्ता को लगातार एक सा नहीं रख पाते, पहले आटे मैं नमक जितनी मिलावट करते हैं बाद मैं नमक मैं आटे जितनी. बोधिसत्व जी के कॉमेंट मैं भी बहुत दम है , मैंने भी अपनी रचनायें सिर्फ़ नीरज के नाम से सुना के ख़ूब वाह वाही बटोरी है लोग गोपाल दास नीरज की समझ के सर हिलाते हैं क्यों की शायद हमारी शक्ल देख के उनको लगता है के ये क्या लिखेगा. नीरज
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