डा. जेम्स वाटसन की बात पची नहीं


डा. जेम्स वाटसन, डी.एन.ए. के अणुसूत्र का डबल हेलिक्स मॉडल देने के लिये विख्यात हैं। उन्हें फ्रांसिस क्रिक और मॉरिस विल्किंस के साथ 1962 में फीजियोलॉजी और मेडीसिन का नोबल पुरस्कार भी मिल चुका है। उन्ही डा. जेम्स वाटसन ने हाल ही में यह कहा है कि अश्वेत लोग श्वेत लोगों की अपेक्षा कम बुद्धिमान होते हैं। इससे बड़ा विवाद पैदा हो गया है।

मैं डा. वाटसन को बड़ी श्रद्धा से देखता था। एक नौजवान की तरह किस प्रकार अपने शोध में वे लीनस पाउलिंग से आगे निकलने का यत्न कर रहे थे – उसके बारे में अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान मैने उनके लेखन से पढ़ा था। डा. वाटसन की पुस्तक से प्रभावित हो अपने आप को ‘सामान्य से अलग सोच’ रखते हुये उत्कृष्ट साबित करने के स्वप्न मैने देखे थे – जो कुछ सच हुये और बहुत कुछ नहीं भी!

पर अब लग रहा है कि उन्यासी वर्षीय डा. वाटसन सठियाये हुये जैसा व्यवहार कर रहे हैं। जाति, लिंग और अपने साथी वैज्ञानिकों सम्बन्धी विवादास्पद बातें कहने में उन्होने महारत हासिल कर ली है। पर उनके अफ्रीका विषयक वक्तव्य ने तो हद ही कर दी। उन्होने कहा कि “हमारी सामाजिक नीतियां इस आधार पर हैं कि अश्वेत बुद्धि में श्वेतों के बराबर हैं, पर सभी परीक्षण इस धारणा के खिलाफ जाते हैं।” शायद विवादास्पद बन कर डा. वाटसन को अपनी नयी हाल में प्रकाशित किताब बेचनी है।

आश्चर्य नहीं कि डा. वाटसन को सब ओर से आलोचना मिल रही है।

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लंदन के साइंस म्यूज़ियम की ओर से आयोजित उस व्याख्यान के कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया है जिसे डॉक्टर वाटसन संबोधित करने वाले थे.

वाटसन अपनी हाल ही में प्रकाशित किताब के ‘प्रमोशन’ के लिए इन दिनों ब्रिटेन में हैं और तय कार्यक्रम के मुताबिक शुक्रवार को एक व्याख्यान भी देने वाले थे.

— बी.बी.सी., हिन्दी

मैं अश्वेतों की प्रतिभा का बहुत मुरीद हूं, ऐसा नहीं है। पर श्वेतों की चौधराहट सिर्फ इस आधार पर कि इस समय उनकी ओर का विश्व प्रगति पर है – मुझे ठीक नहीं लग रही। क्या बढ़िया हो कि इसी जन्म में मैं इस दम्भ का टूटना देख पाऊं।

बुद्धि पर अनुवांशिक और वातावरणीय (genetic and environmental) प्रभाव के विषय में हम पढ़ते रहे हैं। पर उसे एक जाति या रंग के आधार पर समझने का कुत्सित प्रयास होगा – यह विचार मन में नहीं आया था। डा. वाटसन तो नव नात्सीवाद जैसी बात कर रहे हैं।

आप अगर ‘नेचर’ के इस अंग्रेजी भाषा के ब्लॉग “द ग्रेट बियॉण्ड” की पोस्ट और उसके लिंक देखें तो आपको डबल हेलिक्स के अन्वेंषक प्रति एक अजीब सा क्षोभ होगा। कम से कम मुझे ऐसा हो रहा है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

13 thoughts on “डा. जेम्स वाटसन की बात पची नहीं

  1. आपको पढ़ कर मीर का एक शेर याद आ रहा हैउसके चिरागे हुस्न से झमके है सब में नूरशम्मे हरम हो या हो दिया सोमनाथ का।

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  2. आलोक> …उस परिपाटी पर यदि औसत – हाँ औसत – बुद्धि में यदि कोई फ़र्क पाया जाता है, तो उसे कटु सत्य की तरह स्वीकारा जाना चाहिए। यदि इसका आधार शोध नहीं होता तो बात अलग होती।… ———————मैं पूर्णत: सहमत हूं। और मैने खोजने का प्रयास भी किया कि कोई तर्कसंगत शोध सामने आ जाये जो डा. वाटसन के कहे को वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करता हो। पर मिला नहीं। क्षोभ की बात तब आयी। किसी के पास किसी शोध का सन्दर्भ हो तो बताने का कष्ट करें।

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