फीड एग्रेगेटर – पेप्सी या कोक?


प्रसिद्ध मजाक चलता है – कोकाकोला के कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया गया। उसके रक्त सैम्पल में पेप्सी की ट्रेसर क्वांटिटी पायी गयी। गजब की प्रतिद्वन्दिता है दोनो में। गला काट। वही शायद देर सबेर हिन्दी ब्लॉगों के बढ़ते फीड एग्रेगेटरों में होगी।

मैने तीन महीने पहले एक पॉवरप्वॉइण्ट प्रेजेण्टेशन फाइल ठेली थी अपनी पोस्ट ‘कछुआ और खरगोश की कथा – नये प्रसंग’ के माध्यम से। उस पीपीस फाइल में यह था कि सन 1980 में रोबर्टो गोइजुयेटा ने कोका कोला की कमान सम्भाली थी तब पेप्सी की ओर से जबरदस्त प्रतिद्वन्दिता थी। cokeरोबर्टो ने कोक को पेप्सी की प्रतिद्वन्दिता की मानसिकता से निकाल कर किसी भी पेय – पानी सहित की प्रतिद्वन्दिता में डाला और नतीजे आश्चर्यजनक थे। आप यह पावरप्वॉइण्ट फाइल कोकाकोला के चित्र पर क्लिक कर डाउनलोड कर सकते हैं।»»

कुछ वैसी ही बात हिन्दी ब्लॉगरी के फीड एग्रीगेटरों में दिख रही है। एक के शीर्ष लोगों की फीड दूसरा नहीं दिखा रहा। चक्कर यह है कि फीड एग्रेगेटर को सर्व-धर्म-समभाव छाप समझने की सोच से लिया जा रहा है। उसे बिजनेस प्रतिस्पर्धा – गूगल बनाम याहू या रिलायंस बनाम टाटा जैसा नहीं लिया जा रहा। पता नहीं अंतत: कैसा चले। सब राम धुन गायें या अपनी अपनी तुरही अलग-अलग बजायें। पर ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिये।

मेरे ख्याल से प्रतिस्पर्धा – और गलाकाट प्रतिस्पर्धा हो कर रहेगी। लोग अपनी स्ट्रेटेजी बन्द कमरे में बनायें। वह ज्यादा इफेक्टिव रहेगी। और प्रतिद्वन्दी कौन है – वह अवश्य तय करें।

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आप विचारें: फील्ड ब्लॉगवाणी बनाम नारद बनाम चिठ्ठाजगत की सेवा लेते वही 1000 ब्लॉगर नहीं है। फील्ड हिन्दी जानने वाले (केवल हिन्दी के विद्वान नहीं) वे सभी लोग हैं जो अपने को अभिव्यक्त करने की तलब रखते हैं। फील्ड में शायद वे भी हैं जो हिन्दी समझ लेते हैं पर देवनागरी पढ़ नहीं सकते। यह संख्या बहुउउउउउउत बड़ी है। रोबर्टो गोइजुयेटा की तरह पैराडाइम (paradigm – नजरिया) बदलने की जरूरत है।


बी.बी.सी. हिन्दी पर मैथिली गुप्त का एग्रेगेटर के खर्च पर कथन:
इतने खर्चे के पीछे कोई व्यवसायिक उद्देश्य? यह पूछे जाने पर सरकारी नौकरी में भाषायी सॉफ्टवेयर निर्माण के काम से रिटायर मैथिली गुप्त कहते हैं, “ज़िंदगी भर बहुत कमाया है, ब्लॉगवाणी तो अब बुढ़ापे में खुद को व्यस्त रखने का एक साधन भर है. पर भविष्य में एग्रीगेटरों के व्यावसायिक महत्व से इनकार भी नहीं किया जा सकता.”


और एग्रेगेटरी के खेल में भी बिलो-द-बेल्ट (below the belt) हिट करने की या हिट खाने की गुंजाइश ले कर चलनी चाहिये। उसे मैं बिजनेस एथिक्स के बहुत खिलाफ नहीं मानता। और जो समझते हैं कि एग्रेगेटरी समाज सेवा है – सीरियस बिजनेस नहीं, उन्हें शायद माइण्ड सेट बदल लेना चाहिये। जब प्रोब्लॉगर का ब्लॉग मात्र ब्लॉग होते हुये $54,000 के ईनाम बांट सकता है तो ब्लॉग एग्रेगेटरी को भविष्य के लिये सीरियस बिजनेस1 मानना ही चाहिये। न मानें तो आप अपने रिस्क पर न मानें! आज की तारीख में एक समाज सेवी एनजीओ चलाना भी सीरियस बिजनेस है। जब यह माइण्ड सेट बदलेगा तो सेवा में वैल्यू-एडीशन चमत्कारिक तरीके से होगा।

चलिये साहब – आज की पोस्ट प्रति-आस्था (Anti-Astha Channel) चैनल छाप ही सही! एक दिन हिट कम भी मिलें तो चलेगा! बस, यही मनाता हूं कि जिन्हे पढ़ना चाहिये, वे पढ़ लें!


1. कोई साइट अगर कुछ हजार से ज्यादा विजिट रोज पा रही है तो मेरे अन्दाज से मात्र विजिट की संख्या के कारण वह बिजनेस में है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

14 thoughts on “फीड एग्रेगेटर – पेप्सी या कोक?

  1. लुकाछिपी कुछ दिन (महीने) और चलेगी लेकिन जैसे ही हिन्दी चिट्ठों कि संख्या 10,000 पर क्र जायगी तब वे ही एग्रीगेटर टिकेंगे जो “ग्राहक” को हर तरह की सुविधा देता है — शास्त्रीहिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है

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  2. ये पोस्ट एन्टी आस्था न् है जी। हम् पढ़ लिया। अपने लिये मतलब भी ग्रहण् कर लिया। माइन्ड-सेट बदल रहा है।

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  3. पढ़ लिया जी!!ब्लॉग जगत के साथ साथ “एग्रीगेटर जगत” में भी पीछे बहुत कुछ चल रेला है, धीरे धीरे बहुत कुछ सामने आएगा ऐसी आशा की जा सकती है!

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  4. “और एग्रेगेटरी के खेल में भी बिलो-द-बेल्ट (below the belt) हिट करने की या हिट खाने की गुंजाइश ले कर चलनी चाहिये। उसे मैं बिजनेस एथिक्स के बहुत खिलाफ नहीं मानता। और जो समझते हैं कि एग्रेगेटरी समाज सेवा है – सीरियस बिजनेस नहीं, उन्हें शायद माइण्ड सेट बदल लेना चाहिये। जब प्रोब्लॉगर का ब्लॉग मात्र ब्लॉग होते हुये $54,000 के ईनाम बांट सकता है तो ब्लॉग एग्रेगेटरी को भविष्य के लिये सीरियस बिजनेस1 मानना ही चाहिये। न मानें तो आप अपने रिस्क पर न मानें! आज की तारीख में एक समाज सेवी एनजीओ चलाना भी सीरियस बिजनेस है। जब यह माइण्ड सेट बदलेगा तो सेवा में वैल्यू-एडीशन चमत्कारिक तरीके से होगा।”कुछ इसी तरह की बात मैंने कोई दो साल पहले कही थी जब नारद के लिए चंदा जुटाया जा रहा था. तब मेरे इस विचार का मजाक उड़ाया गथा :)व्यावसायिक प्रतिबद्धता के बगैर सफलता मुश्किल है. और, व्यावसायिकता का अर्थ सिर्फ आर्थिकता भी नहीं है.

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  5. बाजार में सरवाइवल फार दि फिटेस्ट चलता है जी। बाजार किसी का सगा नहीं, बड़े-बड़े खलीफा ढेर हो लेते हैं। फराज ख्वाब नजर आती है दुनिया हमकोजो लोग जाने जहां थे,हुए फसाना वोयह शेर यूं तो बाजार पर नहीं है, पर यूं यह बाजार पर ही है। और ग्राहकों के ईमान के बारे में तो आपके ही शहर के अकबर इलाहाबादी यूं कह गये हैंईमान की तुम मेरे क्या पूछती हो मुन्नीशिया के साथ शिया, सुन्नी के साथ सुन्नीअरे ये तो सुबह सुबह मुशायरा सा हो लिया। मुशायरा हो या कि शायरा, सबको बाजार में या तो हिटना है, या पिटना है। रोइये जार जार क्या , कीजिये हाय हाय क्यूं।

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  6. किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा अच्छी होती हैं, अच्छे नतीजे लेकर आती है। सोचिए पहले नारद से कैसे दिक्कत होती है, अब चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी की सेवाएं बड़ी परिष्कृत और फास्ट हो गई हैं। प्रतिस्पर्धा में कुछ लोग डूबते भी हैं, जैसे नारद डूबता जा रहा है। मुश्किल है कि कोई उसे बचाने के लिए आगे नहीं आ रहा। बड़ा निर्मम नियम है जमाने का।

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  7. मुझे लगा कि यह अति आवश्यक है सो पढ़ लिया और आत्मसात भी किया. क्या बतायें..आप सोचते हैं और बाकि खिलवाड़ मे ही सही मगर..सोचते हैं…बात एक ही है…हिन्दी का विकास हो..यही कामना है. :) आप भी तो यही चाहते हैं.

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