अजब थूंकक प्रदेश है यह!


शाम के समय पत्नी जी के साथ बाजार तक घूमने निकला। लिया केवल मूली – 6 रुपये किलो। आधा किलो। वापस लौटते समय किसी विचार में चल रहा था कि सामने किसी ने पच्च से थूंका। मैं थूंक से बाल-बाल बचा। देखने पर चार-पांच व्यक्ति नजर आये जो यह थूंकने की क्रिया कर सकते थे। उसके बाद सारा ध्यान थूंक केन्द्रित हो गया।

हर कोने-अंतरे और सड़क पर थूंक की चित्रकारी देखने लगी। शाम के समय पतली सी ओम पुरी के गालों के डिजाइन वाली सड़क पर आ-जा रहे यूनिवर्सिटी के होनहार छात्रों, घर लौटते मजूरों, सब्जी के ठेले पर अंतिम लॉट की सब्जी ठेलने को आतुर ठेले-वालों, चाय की दुकान पर सडक का अतिक्रमण कर बैंच लगा बैठे चाय और एक रुपये वाले समोसे का सेवन करते बैठे-ठालों की गड्ड-मड्ड दुनियाँ थी। उसमें से हर पांचवां व्यक्ति दायें-बायें या सीधे सामने पिच्च से थूकता नजर आया।
Gyan(165)
थूंकक प्रदेश के माइक्रो पावर हाउस:
पान और जर्दा के पाउच बेचने वाली नुक्कड़ की खोलियाँ

मैं विकास और थूंकने में सम्बन्ध जोड़ने लगा। “थूंक-वृत्ति इज इनवर्सली प्रोपोर्शनल टू डेवलपमेण्ट”। यह मुझे समझ में आया।

एक आदमी बुद्ध की तरह ध्यान-मग्न बैठा था अपने खोली नुमा घर के दरवाजे पर। मुझे वह प्रथम दृष्ट्या दार्शनिक लगा। पर ध्यान से देखा तो वह मुंह में पान गुलगुला रहा था और उसके हाथ में ज़ाफरानी जर्दा की पुड़िया थी, जिसे वह प्यार से पंखे की तरह हिला रहा था। इससे पहले कि वह सड़क पर इंस्टालमेण्ट्स में थूंके, मैं सपत्नीक आगे बढ़ गया।

जब प्रांत पर खुन्दक आती है मन में तो मैं अपनी पत्नी को यूपोरियन कहता हूं और अपने को बाहर वाला समझता हूं। मेरा भुनभुनाना प्रारम्भ हो गया – ‘यही तुम्हारा यूपी है। असभ्य जाहिल और गंवार लोग! यहां केवल मुँह में थूंक बनाने की इण्डस्ट्री भर चल रही है।’

पत्नी जी ने काउण्टर भुनभुनाया – ‘हां, तुम तो सीधे विलायत से टपके थे न!’
मेरा थूंकक प्रदेश

मुझे लगा कि ज्यादा भुनभुनाने से न केवल पारिवारिक शांति पर खतरा हो सकता है वरन शाम का भोजन खतरे में पड़ सकता है! लिहाजा कदम जल्दी-जल्दी बढ़ा कर घर पहुंच कर कम्प्यूटर में मुंह गड़ा लिया।
पर मन से थूंकने की प्रवृत्ति पर सोच कम नहीं हुई। मैं विकास और थूंकने में सम्बन्ध जोड़ने लगा। “थूंक-वृत्ति इज इनवर्सली प्रोपोर्शनल टू डेवलपमेण्ट”। यह मुझे समझ में आया।1
सूबेदारगंज इलाहाबाद का उपनगर है। उत्तर-मध्य रेलवे का दफ्तर वहाँ शिफ्ट होने की प्रक्रिया में है। नयी चमचमाती हुई बिल्डिंग बनी है। कुछ विभाग एक महीने से ज्यादा समय से वहां शिफ्ट हो चुके हैं। पर हर सोमवार को होने वाली प्रिंसीपल ऑफीसर्स मीटिंग में यह विलाप कोई न कोई वरिष्ठ अधिकारी कर देता है कि कर्मचारी वहां कोने, दीवारें, फर्श और वाश बेसिन पान की पीक से रंगना और सुपारी के उच्छिष्ट से चोक करना बड़ी तेजी से बतौर अभियान प्रारम्भ कर चुके हैं।
अजब थूंकक प्रदेश है यह।


1. वैसे एक ब्लॉग पर कल पढ़ा था कि सड़क बनने से विकास नहीं होता। जरूरी यह है कि उस प्रांत में कोई एनडीटीवी पत्रकार पिटना नहीं चाहिये, बस! (मैं किसी दबंग बाहुबली के पक्ष में नहीं बोल रहा। और मुझे उस प्रांत की राजनीति से भी कोई मतलब नहीं। लेकिन पत्रकारिता में यह मायोपिया भी ठीक नहीं। इसी तर्ज पर; किसी प्रांत में रेलवे स्टेशन पर हुड़दंग हो, स्टेशन मास्टर से झूमा-झटकी हो, तोड़-फोड़ हो और मैं उसे उस राज्य के विकास जैसी बड़ी चीज से जोड़ दूं – तो कोई प्रांत बचेगा नहीं; पूरा देश बर्बरता के दायरे में होगा। रेलकर्मी के खून में हिमोग्लोबीन और देशभक्ति इन तथाकथित सजगता के पहरुओं से कमतर नहीं है।)


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

23 thoughts on “अजब थूंकक प्रदेश है यह!

  1. प्रति व्यक्ति थूक के हिसाब से बिहार राष्ट्र का सर्वोपरि राज्य है, यूपी उसके बाद है।थूक और सार्वजनिक तौर पर मूत्रविसर्जजनित टेंपरेरी चित्रकारी या आकृति विभ्रम टाइप मामले भी इधर ज्यादा हैं। इन पर नाराज न होइये। खुले आम सड़क पर थूकना, मूत्र विसर्जन एक लग्जरी है, जो हर देश अफोर्ड नहीं कर सकता। दिल्ली में यूपी कैडर एक सीनियर अफसर को जानता हूं, जो मौका-बेमौका देखकर सड़क पर खुलेआम शुरु हो जाते हैं। मैंने एक बार टोका तो बताया कि जो मजा खुले में करने का है, वह एसी टायलेट में जाने का भी नहीं है। मजे की बात है, मजे से देखिये। थूक के प्रति आपका अपमान भाव ठीक नहीं है, थूक के चाटना, फिर चाट कर थूकना, फिर चाटना बड़े आदमियों के लक्षण है। हम सिर्फ देवेगौडाजी की बात नहीं कर रहे हैं।

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  2. एक ब्लॉग पर कल पढ़ा था कि सड़क बनने से विकास नहीं होता। जरूरी यह है कि उस प्रांत में कोई एनडीटीवी पत्रकार पिटना नहीं चाहिये, बस!हम आपकी इस बात का समर्थन करते हुये इस मुद्दे पर हल्ला काटने वालो पर थूकना चाहते है आपकी परमीशन से.आखिर ब्लाग आपका है जी, और हम भी है ना य़ूपी के ही जी ..

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  3. खाली यूपोरियन पर कुछ खफा होते हैं। सारे उत्तर भारत में यही नजारा है। वैसे पान खाने के बाद मुंह में पीक भरकर जो स्थितिप्रज्ञता की मनोदशा बनती है, जो सुर्खुरूपन आता है, वाह! पान न खानेवाले उसकी महिमा नहीं समझ सकते। ऐसी हालत में सबै भूमि गोपाल की लगने लगती है। कहीं भी थूको, आपकी मर्जी…

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  4. जैसा आपने कहा वैसा ही हम अपनी पत्‍नी से भी कहते हैं इलाहाबाद आने पर । और वही जवाब मिलता है जो आपको मिला । ये सच है कि थूंकक प्रदेश है ये लेकिन कला संस्‍कृति और राजनीति और अपराध में सबसे उर्वर भी तो है । थूकक होना तो बाईप्रोडक्‍ट है ।

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  5. काकेश> …आपक पुछ्ल्ला ज्यादा पसंद आया. मेरी पत्नी का कथन है कि लोग पढ़ेंगे पुछल्ला पर कतरा कर कमेण्ट करेंगे थूंकक प्रदेश पर ही!

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  6. उड़न तश्तरी> …वैसे एक बात बतायें आप विलायत के हैं क्या?? :) आपको क्या लगता है?

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  7.  मूली सस्ती है आपके यहाँ। हमारे यहाँ १० रुपए किलो है। शायद यह भी विकास का सूचकांक हो, कि मूली जैसी वैकल्पिक सब्ज़ी(आलू, टमाटर और प्याज़ को मैं अनिवार्य सब्ज़ी मानता हूँ, मूली और खीरे को नहीं) का भाव क्या है?

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  8. सुन्दर बयानी है थूंकक प्रदेश की-हमारा मध्य प्रदेश भी ऐसा ही रंगीला है. गहरा चिंतन. वैसे एक बात बतायें आप विलायत के हैं क्या?? :)

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