न्यूरोलॉजिस्ट के पास एक विजिट


पत्नी के आधासीसी सिरदर्द के चलते मैं 2-3 महीने में उनके साथ एक बार न्यूरोलॉजिस्ट (तंत्रिका-तंत्र विशेषज्ञ) के पास जाता हूं। काफी डिमाण्ड में हैं इस प्रजाति के लोग। सवेरे मेरे एक सहायक उनसे शाम की विजिट का नम्बर ले लेते हैं; जिससे प्रतीक्षा न करनी पड़े। हर बार मेरी पत्नी की 5 मिनट की मुलाकात के वे ठीकठाक पैसे ले लेते हैं। ब्लड-प्रेशर मात्र देखते हैं। दवा में हेर-फेर भी कुछ खास नहीं करते। एक आध विटामिन कम ज्यादा कर देते हैं और योगासन करने की सलाह दे देते हैं।

विजिट के लिये नम्बर 1 होने पर भी हम प्रतीक्षा करते हैं। प्रतीक्षारत लोगों की किस्म और संख्या देख कर मुझे लगता है कि इस जिन्दगी में डॉक्टर न बन कर गलती कर दी।

Gyan(155)डाक्टर साहब आने को हैं।  उनके दरवाजे पर खड़ा चपरासी नुमा व्यक्ति मुझे स्वयम तंत्रिका-तंत्र के रोग का मरीज लगता है। पतला दुबला और हाथ पैर के अन कण्ट्रोल्ड मूवमेण्ट वाला। अपने आप में आत्मविश्वास की कमी वाला व्यक्ति। डाक्टर आये नहीं हैं – कार से आयेंगे तो वही रिसीव करेगा। फिर भी वह डाक्टर साहब का चेम्बर खोल कर झांकता है और पुन: लैच लगा कर बन्द करता है। आशंकित ऐसे है, जैसे कि डाक्टर साहब कहीं से अवतरित होकर कमरे में न आ गये हों।Gyan(154)

पास में दो नौजवान बैठे हैं। उनमें से एक बार-बार चपरासी नुमा व्यक्ति से अंतरंगता गांठने का प्रयास करता है कि डाक्टर के आने पर उसे सबसे पहले मिलने दिया जाये। चपरासी चुगद है – भाव नहीं खा पा रहा है। दूसरा नौजवान शायद मरीज है। बार-बार अपने हाथ मलता है। सिर इस-उस ओर घुमाता है और कभी कभी अपनी बड़ी-बड़ी आंखें मींजता है। लाल धारीदार टी-शर्ट पहने इस नौजवान से मुझे सहानुभूति होती है। बहुत जिन्दगी है उसके आगे। भगवान करें वह सक्षमता-सफलता से व्यतीत करे।

एक और व्यक्ति है जो 20 मिनट से अकेला बैठा अपने मोबाइल पर कुछ बटन टीप रहा है। बहुत व्यस्त। सिर भी ऊपर नहीं उठाया। 

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सर्दी नहीं है, पर एक मरीज बैठे हैं पूरा लपेट लपाट कर। सिर पर पूरी तरह गमछा बांधे हैं। उनके साथ दो-तीन लोग आये हैं। उन्हें बिठा कर बाहर लॉन में प्रतीक्षा कर रहे हैं। बैग साथ है – शायद इलाहाबाद के बाहर से हैं। और भी मरीज हैं जो लॉन में या पास के कमरे में इंतजार कर रहे हैं। 

मरीजों की प्रतीक्षारत दुनियाँ कम ही देखता हूं। ज्यादातर दफ्तर और रेल की पटरियों के इर्द-गिर्द आपाधापी में देखना-सोचना-चलना रहता है।

आधे घण्टे वहां व्यतीत कर समझ जाता हूं कि यहां ज्यादा समय व्यतीत करने पर या तो मरीज बन जाऊंगा या एक अर्थर हेली छाप उपन्यास लिखने की क्षमता अर्जित कर लूंगा। पहले की सम्भावना ज्यादा है।Wilted Rose       


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

25 thoughts on “न्यूरोलॉजिस्ट के पास एक विजिट

  1. ज्ञान भैय्या जिस सहजता से आपने इंतज़ार कर रहे मरीजों और वातावरण का खाका खेंचा है उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है, आप् अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा लिखते हैं ख़ास तौर पर उन विषयों पर जो मेरी समझ मैं आ जाते हैं.नीरज

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  2. बहुत सच कह रहे हैं आप , डाक्टर के केबिन के बाहर इंतजार करना बहुत कष्ट्दायक होता है। कम से कम आप को बैठन की जगह तो मिली, यंहा बम्बई में तो कई बार ख्ड़े ख्ड़े ही इंतजार करना पढ़ता है। खैर भगवान से प्रार्थना है कि भाभी जी की पीड़ा जल्दी दूर हो जाए।

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  3. माईग्रेन से तो मैं भी पीड़ित रहती हूँ । कोई इलाज तो बताये ।

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  4. ये है न सही ब्लॉगिंग.वैसे रामदेव जी को भी एक शाट देने कोई बुराई नहीं. मुझे स्लीप एप्निया में बड़ा फायदा हुआ सिर्फ ५ मिनट रोज देने से. एक हफ्ते के अंदर खर्राटे बंद हो गये.च्वाईस तो आपने ही बनानी है हम ठहरे भारतीय-आमतौर पर बेवजह सलाह देने वाले. फिर भी बाकियों के बीच ऑड मैन आऊट नहीं लग रहे, हा हा!!!

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