सिनिकल हो रहा हूं क्या?


उम्र के साथ सिनिसिज्म (cynicism – दोषदर्शन) बढ़ता है? सामान्यत: हां। इस पर बहुत पढ़ा है। अब तो जिन्दगी फास्ट पेस वाली होने लगी है। लोग अब पैंतालीस की उम्र में सठियाने लगेंगे। नया मोबाइल, नया गैजेट, नया कम्प्यूटर इस्तेमाल करने में उलझन होगी तो कम उम्र में भी असंतोष और उससे उत्पन्न सिनिसिज्म गहराने लगेगा।

रविवार को काकेश और अनूप शुक्ल की टिप्पणियों ने एक बार आत्म मंथन पर विवश कर दिया है। उनके अनुसार (मजाक में ही सही) मैं हर स्थिति में भयभीत या असंतुष्ट क्यों रहता हूं? मूली लेने जाते थूंक के वातावरण से अरुचि होती है। डॉक्टर के पास जाने पर डॉक्टर न बन पाना सालता है। मरीजों को देख कर लगता है कि ज्यादा देर वहां रहे तो मरीज बन जायेंगे। 

‘अजब थूंकक प्रदेश’ में वास्तव में परिवेश से खुन्नस चम-चम चमकती है। यह खुन्नस बुढ़ौती की दहलीज का परिचायक तो नहीं है? अच्छ किया इन महाब्लॉगरों ने चेता दिया। रही-सही कसर ममता जी ने टिप्पणी में पूरी कर दी। अब लम्बी सांस ले कर तय करते हैं कि सिनिकल नहीं होंगे। अ शट केस फॉर ऑब्ट्यूस एंगल (obtuse angle) थॉट! 

अब सिनिकल होने से बचने के सात सुझाव सरकाता हूं इस पोस्ट पर1:Gyan(168)

  1. अपनी आत्म छवि सुधारें। हीनता की भावना को चिमटी से पकड़-पकड़ बाहर नोचें। अपनी बाह्य छवि को भी चमकायें। अपने गुणों पर चिंतन करें।
  2. इच्छा शक्ति का सतत विकास करें। जीवन में जो नकारात्मक मिला है, उसे सकारात्मक में बदलने की अदम्य इच्छा जगायें। अपने आप को फोकस (एकाग्र) करें। स्वामी शिवानन्द के अनुसार सर्दियों का मौसम इस काम के लिये बहुत अच्छा है।
  3. अपने ध्येय और उनको पाने की अपनी कार्य योजना तय करें। ध्येय में ठोसपन होना चाहिये। अस्पष्ट ध्येय ध्येयहीनता का दूसरा नाम है।
  4. अपना नजरिया (पैराडाइम – paradigm) सही बनायें। अपने और दूसरों के बारे में अच्छा सोचें। घटिया सोच से बचें। विनाशकारी/विस्फोटक/आतंकवादी सोच से बचें।
  5. औरों के साथ अपने व्यवहार को सुधारें। शुरुआत अपनी पत्नी/अपने पति से करें। यह मान कर चलें कि दूसरों को उनके ध्येय पाने में मदद करेंगे तो आप स्वयं आगे बढ़ेंगे।
  6. दुनियां में फ्री-लंच जैसी चीज नहीं होती। कर्म-यज्ञ में अपना योगदान देकर ही फल पाने की हकदारी जतायें।
  7. ईश्वर में सदा आस्थावान रहें। यह मान कर चलें कि वे सदैव आपके साथ हैं।

ये सात सुझाव अटकल बाजी नहीं है। आधा रविवार लगाया है यह सोचने में। हर सुझाव पर एक आध पुस्तक ढ़ूढ़ी जा सकती है। हर सुझाव पर पोस्ट/पोस्टें बन सकती हैं। पर उस तरह का लेखन करने के लिये मुझे ‘आत्मोन्नति’ छाप ब्लॉग बनाना पड़ेगा। लेकिन जिस प्रकार का लेखन हिन्दी ब्लॉगजगत में चल रहा है – इस तरह के ब्लॉग के लिये रेगुलर स्पेस नहीं लगता।

(पंकज अवधिया जी ऊपरके चित्र के पौधे का नाम बतायेंगे? हमारा माली इसे मुर्गकेश कहता है – मुर्गे की कलगी नुमा फूल के कारण।)


1. अचानक आस्था चैनल चलाने पर क्षमा करें। असल में अनूप, काकेश और ममता जी की टिप्पणियों ने इतना इंटर्नलाइज किया है कि आस्था चैनल ही निकल रहा है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

17 thoughts on “सिनिकल हो रहा हूं क्या?

  1. सबसे पहले तो बधाई कि आपने संडे जैसे दिन भी सोचा ( सरकारी कर्मचारी होने के बाद भी)!! सोचा भी तो आस्था टाइप( अब ये उमर का तकाज़ा नही तो क्या हुआ)!!लेकिन जो सोचा वो मस्त सोचा!!दर-असल इसे आपका प्रेजेंटेशन कहें या लेखन शैली कहें, आप गंभीर भी लिखते हैं तो कम से कम गरिष्ठ नही लगता!!वैसे एक सुझाव- जैसे पुराणिक जी संडे को हाफ़ शटर डाउन दुकान चलाते है वैसे ही आप संडे को आस्था वाली दुकान चलाओ कोई वान्दा नई!!

    Like

  2. जे हो ! जे हो! स्वामी ज्ञानानान्दजी महाराज की जे हो. हे प्रभो भक्त को अपनी शरण मे लेले.और सर ये सब जो कहा है पूरी इमानदारी से कहा है. आप जैसे गुरु की तलाश में ही अब तक मन का पंछी भटक रहा था. लेकिन क्या करूं बीच-बीच मे स्वामी अलोकानान्दजी टाईप के लोग आकार पथ भ्रष्ट कर देते है.लेकि अब चित्त भ्रमित नही होगा.

    Like

  3. ज्ञानदत्तजी,ऐसी ही अनूभूति २५ की उम्र में मुझे भी होती हैं । कुछ दिन पहले ही जब कपडे खरीदने गया तो उसने दर्दे-ए-डिस्को टाईप कपडे दिखाने शुरू किये और जब मुझे एक भी पसन्द नहीं आये तो एक आध पुराने सीधे साधे पैंट शर्ट दिखा दिये जो मुझे पसन्द आ गये, इस पर वो बोला भईया को फ़ैशन के बारे में पता नहीं है, आजकल ये कोई नहीं पहनता । इतनी खीज हुयी कि बिना कुछ लिये वापिस आ गये अब फ़िर १-२ दिन में जाने की हिम्मत करूँगा ।

    Like

  4. ज्ञान जी अब तो मेरी दुकान भी खतरे में नजर आती है, अच्छा है आप बम्बई में नहीं, नही तो हमें घर ही बैठना पड़ता……।:) आप ने एक दम बड़िया सुझाव दिए हैं, पर मैं ये नहीं मानती कि उम्र के साथ सिनिसिजम बड़ता है, कह सकते है कि bell shaped curve लेता है. सब हमारी सोच पर निर्भर करता है

    Like

  5. पाण्डेयजी, मानसिक हलचल बनी रहनी चाहिये बस। आधे भरे गिलास को देखने का सबका नजरिया अलग अलग होता है किसी को वो आधा खाली लगता है तो किसी को आधा भरा। दोनो ही अपनी अपनी जगह सही है क्योंकि वो आधा सच तो कह ही रहे हैं। समस्या उस तीसरे व्यक्ति के साथ है जो बजाय ये बताने के कहना शुरू हो जाता है कि पहले इस कांच के गिलास को बदल कर स्टील का रखो तब बताऊँगा कि आधा खाली है या आधा भरा। बस इस तीसरा व्यक्ति बनने से बचियेगा।

    Like

  6. सत्य वचन महाराज, पर ये सूत्र पूरे नहीं हैं, कुछ ये भी एड करें-1-मौके-बेमौके मीका राखी सावंत, एलिजाबेथ टेलर फोटू देखने में हर्ज नहीं है। और इस पर कोई कमेंट कर दे, दे तो दिल छोटा नहीं करते। अपना कैरेक्टर इत्ता मजबूत रखना चाहिए कि कि राखी एलिजाबेथ की बातों से खऱाब न हो।2-किसी को सीरियसली नहीं लेना चाहिए। 3-खुद तक को नहीं।4-बहुत अधिक श्रम नहीं करना चाहिए. आलस्य का अपना महत्व है। श्रम के परिणाम बहुत देर में आते हैं, आलस्य खटाक से परिणाम देता है।5-सूक्ति नंबर चार पर सिर्फ संडे के दिन अमल करना चाहिए। 6-पत्नी से लगातार झगड़ा करना चाहिए, इससे घर से विरक्ति होती है। घर से विरक्त होती है, तो यह भाव पैदा होता है कि क्या करना है कमाकर। क्या करना कमाकर ,यह भाव पैदा हो जाये, तो बंदा भ्रष्टाचार की ओर उन्मुख नहीं ना होता। इस तरह से हम कह सकते हैं कि पत्नी से झगड़ने वाले बंदे ईमानदार हो जाते हैं। 7-ऊपर लिखे सारे सुझावों को टेबल पर दर्ज कर लेना चाहिए। और उनकी फोटूकापी करवा कर एक सौ एक लोगों को बंटवाना चाहिए। पुनश्च-एलिजाबेथ टेलर का कृतित्व और व्यक्तित्व अध्ययन योग्य है, गहन राजनीतिक अध्ययन उनके अध्ययन के बगैर अधूरा है। जैसा राखी सावंतजी का सामाजिक महत्व है, वैसे ही टेलरजी का राजनीतिक महत्व है। मैं तो दोनों को पत्रकारिता के कोर्स में केस स्टडी के तौर पर पढ़ाता हूं। आपने भी किसी चिरकुट यूनिवर्सिटी से पढा़ई की है। हमरे कोर्स में आइये ना कभी।

    Like

  7. हम लोगों के कन्धे पर रखकर ये आस्था की बन्दूक चलायी जा रही है। आप तो फ़ंसा देंगे ज्ञानजी!बताइये पत्नी से भी रिश्ते सुधारेंगे मतलब आप कहना चाह रहे हैं कि हम बिगड़े हुये रिश्ते वाले हैं। :) आप अपनी इस शानदात आस्था प्रतिभा का इस्तेमाल करें। किसी चैनेल पर सबेरे छांटें हाईटेक प्रवचन। लेकिन नहीं, फिर ई ब्लागोपदेश छूट जायेगा। :)

    Like

  8. उम्र के चलते सठिया गए तो आपको कोई नहीं बचा सकता। बाकी के लिए आपने जो सात सूत्र बताएं हैं, उनमें से सातवें के अलावा बाकी सभी सभी के लिए चलेंगे। सातवें की जगह मैं तो मानता हूं कि अपने पर अटूट विश्वास ही सबसे बड़ी आस्था है।

    Like

  9. आधे रविवार में इतने ज्ञानी हो गये, पूरा लगा देते तो सब ज्ञानी पानी भर रहे होते. :)बहुत तो पहले से करता था, कुछ और सीख लिया.पता नहीं आजकल लगने लगा है कि आप अक्सर ज्ञान की बात करते उसे एक पंगे की तरफ भी मोल्ड करने की कोशिश करते हैं लिंक डायरेक्ट करके..पिछली कुछ पोस्टों से…यह लांग टर्म के लिये बहुत अच्छा नहीं..यह मेरा ज्ञान अर्जन है कई सारे पूरे संडॆ लगाने के बाद. हा हा!!ध्यान दिजियेगा मगर करियेगा वही, जो मन को भाये. मेरा ज्ञान अक्सर बकवास ही होता है. अनुभव की कमी की वजह से.

    Like

  10. आस्था चैनल अच्छा है.ये भी चलेगा जी.हम तो डेली पाठक हैं आयेंगे ही.ब्लॉगरी का यही सूत्र है(जो हम समझे हैं).जब ब्लॉगरी चल जाय फिर आप कुछ भी बेचो सब चलता है. लेकिन शुरु में सनसनी मांगता.चैन से सोना है तो जाग जाओ टाइप.लेकिन आज का ज्ञान अच्छा है. बीच बीच में ऎसा ज्ञान ठेला जाय.

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started