बम्बई जाओ भाई, गुजरात जाओ


मेरी सरकारी कार कॉण्ट्रेक्ट पर है। ठेकेदार ने ड्राइवर रखे हैं और अपनी गाड़ियाँ चलवाता है। ड्राइवर अच्छा है। पर उसे कुल मिलते हैं 2500 रुपये महीना। रामबिलास रिक्शेवाला भी लगभग इतना ही कमाता है। मेरे घर में दिवाली के पहले पुताई करने वाले आये थे। उन्हें हमने 120 रुपया रोज मजूरी दी। उनको रोज काम नहीं मिलता। लिहाजा उनको भी महीने में 2000-2500 रुपये ही मिलते होंगे।

tailors कल मैं अपनी पत्नी के साथ टेलर की दूकान पर गया। मास्टर ने दो कारीगर लगा रखे थे। उनसे मैने पूछा कितना काम करते हो? कितना कमाते हो? उन्होने बताया कि करीब 10-12 घण्टे काम करते हैं। मास्टर ने बताया कि दिहाड़ी के 100 रुपये मिलते हैं एक कारीगर को। कारीगर ने उसका खण्डन नहीं किया। मान सकते हैं कि इतना कमाते हैं। यह भी पड़ता है 2500 रुपया महीना।

मेरी पत्नीजी का अनुमान है कि अगर घर का हर वयस्क इतना कमाये तो परिवार का खर्च चल सकता है। यह अगर एक बड़ा अगर है। फिर यह भी जरूरी है कि कोई कुटेव न हो। नशा-पत्ती से बचना भी कठिन है।

कुल मिला कर इस वर्ग की आमदनी इतनी नहीं है कि ठीक से काम चल सके।

‘ब’ बम्बई से मुझे फोन करता है – भैया, बम्बई आई ग हई (भैया बम्बई आ गया हूं)। उसे मैने सीड मनी के रूप में 20,000 रुपये दिये थे। कहा था कि सॉफ्ट लोन दे रहा हूं। साल भर बाद से वह 500 रुपये महीना ब्याज मुक्त मुझे लौटाये। उस पैसे को लेकर वह बम्बई पंहुचा है। बाकी जुगाड़ कर एक पुरानी गाड़ी खरीदी है और बतौर टेक्सी चलाने लगा है। मैं पैसे वापस मिलने की आशा नहीं रखता। पर अगर ‘ब’ कमा कर 4000-5000 रुपया महीना बचाने लगा तो उसका पुण्य मेरे बहुत काम आयेगा।

‘स’ मेरे पास आया था। बोला मूंदरा पोर्ट (अडानी का बन्दरगाह, गुजरात) जा रहा है। उसका भाई पहले ही वहां गया था – 8-10 महीना पहले। वह 7000 रुपया महीना कमा रहा है। इसे 3500 रुपया शुरू में मिलेगा पर जल्दी ही यह भी 7000 रुपया कमाने लग जायेगा। Car Driver

मैं तुलना करता हूं। अपने ड्राइवर को कहता हूं कि बम्बई/अहमदाबाद क्यों नहीं चला जाता। भरतलाल के अनुसार खर्चा-खुराकी काट कर एक टेक्सी ड्राइवर वहां 5000 रुपया महीना बचा सकता है। मैं ड्राइवर से पूछता हूं कि वह इलाहाबाद में क्यों बैठा है? वह चुप्पी लगा जाता है। शायद स्थितियाँ इतना कम्पेल नहीं कर रहीं। अन्यथा मैं तो इतने लोगों को देख चुका हूं – यहां इलाहाबाद में और वहां बम्बई गुजरात में – कि सलाह जरूर देता हूं –

भाई, बम्बई जाओ, गुजरात जाओ।

आपके अनुसार यह सलाह उचित है या नहीं? 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

19 thoughts on “बम्बई जाओ भाई, गुजरात जाओ

  1. यह तो अपना-अपना नजरिया है अपनी-अपनी सोच है। सिर्फ पैसे के नजरिये से देखना ठीक नही जान पडता। मेरा ही उदाहरण ले हर्बल की तो दुनिया दीवानी है। दुनिया भर के शोध संस्थानो और कम्पनियो से आमंत्रण है। पर समस्त उपेक्षा और भारी भ्रष्टाचार के बाद भी भारत मे ही रहने का जी करता है। लगता है कुछ भी है यहाँ अपने लोग है और हम अपनी क्षमता से इनकी सहायता नही करेंगे तो कौन करेगा। विदेशो मे बैठकर भारत के बारे मे स्वप्न देखना आसान है पर यहाँ रूककर काम करना मुश्किल। फिर वापस लौटे। मेरे क्षेत्र मे पैसे विदेशो की तुलना मे बहुत कम है फिर भी मै बम्बई जाओ और गुजरात जाओ के नारे अनसुना करना पसन्द करता हूँ।

    Like

  2. देखिये सर परिस्थिति जटिल है. समस्या गंभीर है. बहुत चिंतन करना पड़ेगा. हो सकता है एक आध प्रयोग भी करना पड़े. एक बार बम्बई और गुजरात जा आऊं फ़िर ही कुछ बता पाऊंगा.

    Like

  3. आलोक> ‘आपने यह प्रश्न पूछा कि आपकी सलाह सही है या गलत। यह प्रश्न पूछना ही अपने आप में कुछ बताता है।’ ——————- मैं आपसे कहे से पूरी तरह सहमत हूं। सही गलत का सवाल पूछना संशय की अवस्था में होना नहीं; पाठक को टटोलने के लिये है। और आप देख भी रहे हैं – कोई आम राय सी नहीं बन रही!

    Like

  4. देखना चाहिए कि गुजरात वाले कहाँ जाते हैं?अमरीका, घाना, उगांडा, इंग्लैंड, कीन्या।देश के उपजाऊ इलाकों में पारंपरिक रूप से जमीन से एक धर्मांधतात्मक जुड़ाव है जो आज कल आर्थिक – और चारित्रिक (भूखे भजन न होय गोपाला!) रूप से अतर्कसंगत है।गुजरात में गाँव के गाँव ऐसे हैं जहाँ लोग आते जाते रहते हैं, गाँव से जुड़े रहते हैं, वहाँ की सुविधाओं को सुधारने में भी मदद करते हैं, बिना सरकार की राह देखे, बिना हाथ पर हाथ धरे। सभी धन्ना सेठ नहीं हैं – झाड़ू पोछा, ड्राइवरी आदि कर के भी पैसे कमाते हैं। उन्हें गद्दार का दर्जा नहीं दिया जाता। क्योंकि समुदाय को भी मालूम है कि इससे सबका भला हो रहा है।आपने यह प्रश्न पूछा कि आपकी सलाह सही है या गलत। यह प्रश्न पूछना ही अपने आप में कुछ बताता है।मुझे नहीं लगता कि गुजरात के लोग ऐसे प्रश्न बहुत बार पूछते होंगे, पर इसपर अधिक प्रकाश तो गुजरात निवासी ही डाल सकेंगे।

    Like

  5. मेरे खयाल में आदमी कमाता कितना है, यह मह्त्त्वपूर्ण नही है, बचाता कितना है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है। मुम्बई जैसी जगह पर खर्चा ज्यादा होगा ये तो पक्का है…सो थोडे बहुत अंतर के लिये तो वहां ना ही जाया जाए तो अच्छा।दूसरी बात, वो जो ’अगर’ ऊपर लगाया था…घर से दूर रहेगा, अकेला रहेगा तो कुटेव/नशा-पत्ती की संभावना ज्यादा रहेगी।लेकिन..इसके विपरीत, ये भी है, कि अगर वाकई जीवट वाला इंसान होगा, तो बडी जगहों पर संभावनाएं अनंत हैं, १०,००० क्या…१,००,००० भी मिलेगा।

    Like

  6. यदि सलाह चिट्ठेबाजों के लिये है तो यह उचित नहीं है. लेकिन यदि यह घरों मे दिखने वालो नौकरों, ड्राईवरों एवं अडोस पडोस के इस किस्म के कामागारों के लिये है तो अच्छा है. यदि जवानी में उन लोगों को कुछ अतिरिक्त पैसे मिल जायें तो कम से कम कुछ कुटुम्ब और तर जायेंगे. इस नजरिये से मैं हाल ही में ग्वालियर से कुछ मजदूरों को केरल लाने जा रहा हूं क्योंकि यहां मजदूरों की बहुत कमी है एवं मप्र से तिगुनी कमाई हो जाती है — शास्त्री हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

    Like

  7. ‘ब’ बम्बई का हाल तो ‘अ’ अभय अच्छी तरह से बता सकते हैं।

    Like

  8. इलाहाबाद से बंबई आकर वो 10,000 भी कमा लेगा तो, शायद दुखी ही जियेगा। अपने ड्राइवर को कहिए अपना स्किल बढ़ाए। खाली समय का थोड़ा औऱ सदुपयोग करे। वहीं सुखी रहेगा। घर-परिवार सब बढ़िया रहेगा।

    Like

  9. इलाहाबाद में वे लोग दो ढाई हजार में जीवन यापन कर लेते होंगे और शायद खुश भी रहते होंगे.बम्बई या गुजरात जाकर इसके दुगने पैसे में भी कुछ ना हो पायेगा.

    Like

  10. आप की सलाह उचित है या नहीं यह तो सलाह प्राप्त्‍ करने वाले ही तय करेंगे। पर इस जिस जीवन को वह यहां जी रहा है वह पीछें जरूर छूट जाएगा। अभी कमाई केवल जीवन के लिए है। बम्बई और गुजरात जा कर जीवन कमाई के लिए तो नहीं हो जाएगा?

    Like

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Design a site like this with WordPress.com
Get started