साइकल ऑफ-द-शेल्फ मिलने वाला उत्पाद नहीं है। आप दुकान पर बाइसाइकल खरीदते हैं। उसके एक्सेसरीज पर सहमति जताते हैं। उसके बाद उसके पुर्जे कसे जाते हैं। नयी साइकल ले कर आप निकलते हैं तो मित्र गण उसे देख कर पूछते हैं – ‘नयी है! कहाँ से कसवाये भाई!?’।
नयी चीज, नया प्रकरण या नया माहौल – उसमें ‘कसवाना‘ शब्द का प्रयोग या दुष्प्रयोग बड़ा मनोरंजक हो जाता है।
पांड़े जी नयी जींस की नीली शर्ट पहने फोटो खिंचाकर अपने ब्लॉग पर फोटो चस्पाँ करते हैं। टिप्पणियाँ आती हैं – "बड़े चमक रहे हो जी। नयी जमाने की शर्ट है। कब कसवाये?"
मेटर्निटी होम से लौटने पर नौजवान से लोग पूछ बैठें (यह जानने को कि क्या हुआ) – "क्या कसवाये जी? लड़का या लड़की?"
बाऊजी के दांत क्षरित हो गये। नयी बत्तीसी के लिये डेण्टिस्ट से अप्वॉइण्टमेण्ट तय कराया लड़के ने। पिताजी को बोला – "संझा को दफ्तर से लौटूंगा तो चलेंगे। आपके नये दांत कसवाने!"
रविवार को साढ़े इग्यारह बजे मैं कटरा बाजार में पुरानी 4-5 घड़ियों में सेल लगवा रहा था। एक दो में कुछ रिपेयर भी कराना था। मोबाइल पर उपेन्द्र कुमार सिन्ह जी का फोन बजा – "क्या कसवा रहे हैं जी?" कसवाना शब्द मेरी जिन्दगी में इन अर्थों में परिचित कराने का श्रेय उन्हें ही है। पिछले सप्ताह भर से इस शब्द को वे बहुत कस कर प्रयोग कर रहे हैं।
मैने जवाब दिया कि फिलहाल तो घड़ी कसवा रहा हूं। वहीं बगल में साइकल वाले की दुकान थी और उसका कारीगर वास्तव में नयी साइकल कस रहा था।
कसवाने में दूसरे पर निर्भरता निहित है। उदाहरण के लिये अनूप सुकुल को यह नहीं कह सकते कि "आपकी पोस्ट बड़ी मस्त है, किससे कसवाये हो जी!" यह जग जानता है कि वे (भले ही जबरी लिखते हों) अपनी पोस्ट खुद कसते हैं! सोनियाँ गांधी जी से पूछा जा सकता है कि उनकी "स्पीच बहुत धांसू है; किससे कसवाई है?"
‘गुरू गुड़ और चेला शक्कर’ वाले मामलों में कसवाने का मुक्त हस्त से प्रयोग हो सकता है – कसवाया गुरू से और क्रेडिट चेले ने झटक लिया। मसलन ब्लॉग जगत का टेण्ट कसवाया नारद से और झांकी जम रही है नये एग्रेगेटरों की!
सो मित्रों, कसवाना शब्द मैने उपेन्द्र कुमार सिन्ह से – जो खुद ब्लॉगर नहीं हैं; झटका है। पर असकी कसावट तो आप ला सकते हैं अपनी टिप्पणियों से।

धीरे धीरे हम भी आप सब महा कसावटी गुरुओं से कसना सीख ही जाएँगे.
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उतना ही कस्काइये की कसक बनी रहे,शब्दों की भाषा में महक बनी रहे.इधर उधर की बातों से कन्फुसियाएं न हम,भाषाओं में हिन्दी की ठसक बनी रहे.अच्छा प्रयोग है. साधुवाद
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वाह! कस के दिए हैं……:-)
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ग्वालियर के आसपास** साईकिल कसवाई जाती है** नये जूते “पहने” जाते हैं** अपना मकान बनाने के लिये पडोसी के पात्थर “खीचे” जाते हैं** होली पर पडोसी के फर्नीचर “उठा” लिये जाते हैंहिन्दी बहुत रंगबिरंगी भाषा है — शास्त्री
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गाडिया भी कसवाईये जी,सारे नट बोल्ट ढीले हो गये है बहुत ची चा करती है…:)
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गजब का लेख कसे हो आप, मजा आ गया।वैसे टिप्पणीयों को इस तरह से कसने का तरीका मैने समीर जी से सीखा है।
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बड़ी कसावट है जी आपकी पोस्ट में.
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भई ज्ञान जी वाकई पोस्ट तो अच्छी कसवाई आज है आज आपने । आज आपकी इस कसवाई से हमें वो सारी सायकिलें याद आ गयीं जो हमारे लिए हमारे पिताजी ने कसवाई थीं । और एक वो फैशनेबल सायकल स्ट्रीट कैट भी याद आ गयी जो फर्स्ट ईयर में हमने आकाशवाणी पर कैजुअल काम कर करके कसवाई थी । फिर बचपन की सायकिलों पर घुटनों का छिलना याद आया । लोगों से भिड़ना याद आया । टकराने पर कान खिंचना याद आया । भोपाल की गलियां याद आईं जहां हमने अपना बचपन कसवाया था । सच मानिए आज जब कोई पूछेगा कि बड़े खुश हो , तो हम यही कहेंगे आज का दिन हमने ज्ञान जी से कसवाया है ।
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वाह भई वाह अच्छा कस लेते हो आप भी ।वैसे आपकी वज़ह से ये नया शब्द प्रयोग सीख लिया ।
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शब्दों के ऐसे प्रयोग लगातार सुझाते रहें, दिवाली पर होली का मजा आ गया।
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