शास्त्री जे सी फिलिप आजकल विषयकेन्द्रित ब्लॉग्स की बहस चला रहे हैं। मुझे भी लगता है कि भविष्य स्पेशलाइज्ड ब्लॉग्स का है है। हमारी मानसिक हलचल को बीटा-थीटा-गामा-जीटा वेव्स के रूप में मनोवैज्ञानिकों द्वारा विष्लेशित अगर अभी नहीं किया जा रहा होगा तो जल्दी ही किया जाने लगेगा। इसके स्पेक्ट्रम से ही स्पेशलाइज्ड ब्लॉग्स जन्म लेंगे। शास्त्री जी का कथन है कि तब शायद देर हो जाये। बेहतर है कि अभी से उस दिशा में यत्न किये जायें। चिठ्ठाजगत उस दिशा में कुहनियाने लग ही गया है!
यत्न किये जायें – और सिन्सियर यत्न किये जायें। जरूर। शायद लोग कर भी रहे हैं। पर अभी बड़ी जद्दोजहद हिन्दी पाठक खोजने की है। ऐसा नहीं है कि हिन्दी पाठक नहीं हैं। हिन्दी के समाचारपत्र बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। पिछले डेढ़ दशक में भास्कर-जागरण-अमर उजाला-राजस्थान पत्रिका आदि ने अभूतपूर्व बढ़त हासिल की है। पर हिन्दी का पाठक अभी थोक में इण्टरनेट पर नहीं आया है।
इसके अलावा ब्लॉग लिखने वालों में विशेषज्ञ लोग नहीं हैं।
ज्यादातर लिखने-पढ़ने वाले – साहित्य या पत्रकारिता के क्षेत्र के हैं। मुझे भी साल भर से कम हुआ जब पता चला कि हिन्दी में फॉण्ट-शॉण्ट की परवाह किये बिना सरलता से लिखा जा सकता है। रतलामी सेव का गूगल सर्च अगर रवि रतलामी के ब्लॉग पर न ले गया होता तो मैं हिन्दी में ब्लॉग प्रयोग न कर रहा होता!
बहुत से ब्लॉगर अभी कई मूलभूत इण्टरनेटीय सवाल करते पाये जाते हैं। इस विधा में मंजे लोगों का टोटा है। अभी तो कई ब्लॉगों में बेसिक अटपटापन दिखाई देता है। पर सब अपने को धकेल रहे हैं आगे बढ़ने को।
हम उलट सोचते हैं कि कल खोमचा उठाने का मन न बन जाये। या कहीं रेलवे में ही लोगों को पता चल जाये कि यह बहुत फालतू समय रखता है ब्लॉग के लिये। इसे सवारी गाड़ियों के यातायात की जगह और कोई काम दे दिया जाये जहां २४ घण्टे भी कम पड़ते हैं; तो ब्लॉगरी २४ घण्टे में टें बोल जायेगी। इसलिये अभी तो लगता है कि जैसे चलता है – चलने दो। ब्लॉगरी करना आ जाये तो समय आने पर ब्लॉग विषयकेन्द्रित भी हो जायेगा। उसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा – १०-१५ दिन पर्याप्त रहेंगे। हां विषयकेंद्रित अध्ययन अवश्य चलते रहना चाहिये।
विषयकेन्द्रित के लिये मैं डाक्टरी का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा। मेरे मित्र संजय; जो ब्लॉग नहीं बना पाये हैं पर मुझे टॉपिक सुझाते रहते हैं, ने बताया कि उनका परिवार डाक्टरों का है। परिवार में चार पीढ़ियों मे डाक्टर हैं।
उत्तरप्रदेश के रिमोट कॉर्नर में ग्रामीण अंचल में पहली डाक्टर वाली पीढ़ी खप गयी। गांव के स्वास्थ्य केंद्र वाले डाक्टर साहब को रात दो बजे गुहार लगाता कोई ग्रामीण चला आता था -’डाक्टर साहेब, न चलब्य त बहुरिया न बचे।’ डाक्टर साहब डायनमो लगी टार्च वाली साइकल पर रात बिरात जाते थे। साथ में होता था उनका डाक्टरी बक्सा। दो रुपये की फ़ीस मिले तो ठीक, न मिले तो ठीक, मरीज को देख कर ही आते थे। मरीज की हैसियत नहीं होती थी तो दवाई फ़्री दे आते थे।
उनके बाद वाली पीढ़ी शहरी माहौल में रही। नर्सिंग होम जैसा सेट-अप बना गयी। रहन सहन अपग्रेड हो गया। बिरहा-चैता सुनने की बजाय टीवी – वीडियो चलने लगा। तीसरी पीढ़ी और आगे पढ़ी। स्पेशलाइज कर गयी। देश के बाहर भी पढ़ने/काम करने लगी। अब चौथी पीढ़ी तैयार हो रही है और स्पेशलाइजेशन की तो इन्तहां हो गयी है! जब यह काम पर लगेगी तो न जाने क्या माहौल बनेगा।
मित्रों, ब्लॉगरी में भी पहली से चौथी पीढ़ी तक का ट्रांजीशन होगा। डाक्टरी में पीढ़ी २०-२५ साल की थी, यहां वह २-२.५ साल की होगी। एक ही ब्लॉगर एक दशक में ४ पीढ़ी का जम्प लेगा। हम तो उतने ऊर्जावान नहीं होंगे; पर नये नये ब्लॉगर स्पेशलाइजेशन में ’आयुर्वेदाचार्य से न्यूरोलाजिस्ट’ बड़ी तेजी से बन जायेंगे।
बस बहुत हो गया। आज ज्यादा ठेल दिया।![]()
1. हां, रविवार को मैने अपूर्वराज जी के ब्लॉग्स देखे। वे तीन ब्लॉग्स पर नियमित ठेल रहे हैं। उनका छू लें आसमां वाला ब्लॉग तो अच्छा विषयकेन्द्रित नजर आया। इतने ब्लॉग्स पर लिखते थक/हांफ न जायें वे; अन्यथा यह ब्लॉग तो लम्बी रेस के लिये फिट है। दांव लगाया जा सकता है इसपर।
2. मैने अपने गूगल रीडर पर फ़ीड किये लगभग 100 ब्लॉग्स का ब्लॉग रोल स्क्रॉल करता हुआ अपने ब्लॉग पर लगा दिया है। यह सब मेरे नियमित रीडर का हिस्सा हैं। इनमें से कुछ सुषुप्त हैं। इनके अलावा भी १०-१५ ब्लॉग और हैं जो मैं पढ़ता हूं। उनमें फ़ीड एग्रेगेटर काम आते हैं। आप दायीं बाजू में स्लेट के रंग का ब्लॉग रोल देखें। »

अमूर्तन बीच-बीच में ठीक है.. मगर सुबह-सुबह ऐसा क्या ठेलना कि आदमी हवा में हाथ हिलाता रहे! दायीं बाजू में स्लेट के रंग का ब्लॉग रोल में क्या है? फिलहाल विशुद्ध हवा है!
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ब्लॉग विषय केन्द्रित करने के लिए व्यक्ति को पीटी कराना अनावश्यक है.. ब्लॉग व्यक्ति केन्द्रित रहे.. व्यक्ति अपने को अभिव्यक्त करेगा.. उसे अगर किसी विषय में विशेष रुचि है तो सामने आ ही जाएगी.. उसके लिए कोई अभियान चलाने की ज़रूरत नहीं.. मनुष्य सहज तौर पर जो करे वही सही होता है.. ब्लॉग रोल मस्त लगाया है आप ने..
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मुझे नहीं लगता कि अभी अगले पांच सालों में विषय आधारित हिन्दी चिट्ठों की उपयोगिता हिन्दी पाठक जगत में होगी, अपने ब्लाग में हम लेखों का वर्गीकरण तो करते ही हैं । हां भविष्य में विषय आधारित होने के फायदे तो बहुत हैं इसे हौआ न बनाते हुए इसलिए समय रहते बदलना ठीक है ।
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प्रश्न है कि लंबे समय तक लेखन चलेगा कि नहीं | यदि ब्लॉग लेखन आपकी हाबी है तो बड़ी समस्या है क्योंकि अधिकतर हाबी समय के साथ छूट जाती हैं | इस समय जीवन में चार मुख्य काम चल हैं: शोध, संगीत, दौड़ना और ब्लॉग लेखन (इसी वरीयता के क्रम में) | शोध के क्षेत्र में ज़रा सी भी कोताही नहीं बरती जा सकती, संगीत के लिए समय निकल आता है चाहे वो स्कूल जाते वक्त कार में गीत सुनना हो या फिर रात में थोड़े समय के लिये | बचा दौड़ना और ब्लॉग लेखन, इनमे आपसे में संघर्ष की स्थिति में ब्लॉग लेखन को ही पटकनी लगेगी | आज ही दौड़ने वालों की एक पार्टी से आया हूँ, लोगों के गले में मैराथन के टंगे हुए मैडल देख कर मन मचल गया :-)इसके अलावा भी एक मुख्य कारण है | किसी भी क्षेत्र में घुसना तो आसान है लेकिन जल्दी ही स्वयं को पता चलता है कि उस क्षेत्र में आपकी स्थिति क्या है | ऐसे में यदि आप अपना खाली समय एक से ज्यादा क्षेत्र में निवेश कर रहे हों तो फ़िर किसी एक क्षेत्र को पकड़ के समय को Optimize करना पड़ता है जहाँ पर आप अपने प्रयास के अनुपात में खुशी/सफलता/संतुष्टि प्राप्त कर सकें | इसीलिए अभी हम तो खिचडी ही पकायेंगे |
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विषय-आधारित ब्लॉग अब धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। भविष्य वाकई उन्हीं का है। पिछले वर्ष मैंने भी आम लोगों की क़ानून संबंधी जागरूकता बढ़ाने और मुकदमेबाजी से बचते हुए विवादों का समाधान करने के उपायों के बारे में एक ब्लॉग बनाने का सोचा था, लेकिन ऐसा महसूस हुआ कि अभी उस तरह की मेहनत का लाभ नहीं होगा। स्पेशलाइज्ड ब्लॉग के लिए पाठक भी उसी तरह के चाहिए। अब स्थितियाँ अनुकूल हो रही हैं।
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मुझे तो लगता कि आप बलॉग एक्सपर्ट हो गये हैं बलॉगरोल भी लगा लिया। इसमें अपने को पा कर अच्छा लगा।
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विषयाधारित चिट्ठे अच्छा कदम है, फिर भी कुछ चिट्ठे तो ऐसे रहेंगे ही जिन का वर्गीकरण कर पाना दुष्कर होगा। मसलन ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल और फुरसतिया।
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जिंदगी जब विषय केंद्रित नहीं तो ब्लॉग कैसे हो जाएगा? तब वेबसाइट और इसमें अंतर ही क्या रह जाएगा? ब्लॉग पर तो लोग शेयरिंग के लिए आते हैं। विषयों की तह में पहुंचने के लिए तो अंतरजाल की दुनिया में अनंत ब्लॉग हैं। इसके लिए लोग वहां जाएंगे, ब्लॉग पर क्यों आएंगे?
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The sophistication of Ideas & their interpretation will be the future by products of BLOG World& the trend will dictate the results.
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विषय केन्द्रित ब्लाग भी बनेगे। एक ब्लागर फिर तमाम ब्लाग बनायेगा। विषय के हिसाब से।
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