एक पोस्ट अस्पताल के वार्ड से


कल शाम मेरी माताजी अचानक बीमार हो गयीं। रक्त वाहिनी में थक्का जम जाने से पैर में सूजन और असहनीय दर्द के चलते उन्हें अस्पताल में ले आये। प्राथमिक आपात चिकित्सा से मामला ठीक है। कल परसों तक कुछ परीक्षण होंगे और फिर अस्पताल से छुट्टी। यह दो बार पहले भी हो चुका है।

जैसे पहले घर में तार (टेलीग्राम) का आना बिना मजमून पढ़े रुलाई का कारण बन जाता था; कुछ वैसा ही अस्पताल में भर्ती होना है। टेलीकम्यूनिकेशन के बढ़े साधनों से फोन कॉल्स की भरमार हो जाती है। और लोग बड़े जेनुइन चिन्ता में होते हैं। जो आसपास होते हैं – वे अस्पताल आने की कोशिश करते हैं। अस्पताल में भर्ती होना एक विषादयोगीय अनुष्ठान है। यह हर परिवार यदा कदा करता-झेलता रहता है। Hospital Bed

« अस्पताल के बिस्तर पर सोती अम्मा जी। दूसरे बिस्तर पर रजाई पर लैपटॉप रख मैं पोस्ट लिख रहा हूं – डाक्टर साहब के राउण्ड का इन्तजार करते हुये। 

इस बार मरीज के साथ अस्पताल में रात्रि कालीन रुकने की बारी मेरी पड़ गयी है। मुझे याद नहीं आता कि पहले मैं अकेले किसी मरीज की अटेण्डेंस में रात में रुका होऊं। लिहाजा यह मेरे लिये बड़ी प्लानिन्ग का मामला हो गया। लैपटॉप, पुस्तकें, कलम, कॉपी, कपड़े, रजाई, शेविन्ग किट … जो कुछ साथ ले कर आया हूं वह तो कोई व्यक्ति सामान्य जिन्दगी अनवरत काट सकने के लिये प्रयोग करता होगा। और मित्रों, यह तैयारी तब, जब कि अस्पताल मेरे घर से डेढ़ किलोमीटर भर दूर होगा। अपरिग्रह का सिद्धान्त सोचने में बढ़िया है; पर वास्तविकता में — मॉस्कीटो रिपेलेण्ट लाना तो रह ही गया!

और बेचारे डॉक्टर साहब – मैने सोचा कि अनुभवी अधेड़ होंगे; पर वे तो नीरज रोहिल्ला जैसे जवान निकले। उन सज्जन से मैने वे सब सवाल पूछ लिये जो सामान्यत: मरीज के साथ आया चकपकाया अटेण्डेण्ट नहीं पूछता होगा। तब भी मुझे लगता है कि कुछ वाइटल सवाल बच गये! खैर सवाल पूछने से अपनी व्यग्रता कम होती है। बाकी उन्होंने मुझे यह अश्वासन दे दिया है कि मामला नियंत्रण में है। कुछ टेस्ट कर देख लिया जायेगा और आवश्यकता पड़ी तो दवा बदली जायेगी।

मैं अस्पताल में निरुद्देश्य चक्कर लगाता हूं। तरह तरह के मरीज। तरह तरह की व्यथा। कहीं दक्षता, कहीं लापरवाही, कहीं सहभागिता की उष्णता और कहीं बेरुखी। अस्पताल के मुख्य प्रबंधक महोदय को मैं फोन मिलाता हूं – कुछ पुराने सम्पर्क का लाभ लेने को। वे बहुत सज्जन व्यक्ति हैं। पर वे कहीं दूर से जवाब देते हैं – अपनी एन्जियोप्लास्टी करा कर इलाहाबाद के बाहर किसी अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। उनकी आवाज से लग रहा था कि वे स्वयम एक जद्दोजहद कर रहे हैं। अब मेरे पास और कोई काम नहीं – मां के साथ समय भर गुजारना है। अब, जब व्यग्रता लगभग दूर हो गयी है तो मुझे पोस्ट लिखने की सूझी है।   

जगह जगह से ब्लॉगर बंधु पोस्ट ठेल चुके हैं। एक पोस्ट अस्पताल के प्राइवेट वार्ड से भी सही!


अस्पताल और दफ्तर में ताल-मेल बिठाने के चक्कर में शायद ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़े अगले दो तीन दिन! यह पोस्ट मैं सोमवार को ठेल सकता था; पर जब तैयार कर ही ली है तो आज ही सही।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

25 thoughts on “एक पोस्ट अस्पताल के वार्ड से

  1. anil raghurajji ki baat bilkul sahi hai ki hospital main insaan ko virakti ho jaati hai. magar aap to wahan bhi sarkari inspection ki tarah chahal kadmi kar rahe hain. mataji jald swasth ho kar ghar lauten yahi kamana hai.

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  2. माताजी के शीध्र स्‍वास्‍थलाभ की कामना । आदरणीय आप बहुत अमीर है माँ की सेवा करने का अवसर इस उमर में, ऐसा संयोग भगवान हर किसी को दे । मेरे पास और ज्‍यादा शव्‍द नहीं हैं ।संजीवछत्‍तीसगढ के शक्तिपीठ – 2

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  3. मैं माताजी के जल्दी से स्वास्थ्य लाभ अर्जित करने की कामना करता हूँ ।

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  4. माताजी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना। वैसे अस्पताल में रहना कुछ दिनों में ही इंसान को बैरागी सा बनाने लगता है और जनरल वार्ड में टहल लीजिए तो लगता है कि जन-स्वास्थ्य को लेकर सरकारी घोषणाओं का सच क्या है।

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  5. माताजी के जल्द स्वस्थ हो घर लौटने की कामना करता हूँ. आशा है रात को मच्छरों ने परेशान नहीं किया होगा :)ब्लॉगिंग नशा है, पता नहीं कहाँ कहाँ से निखवायेगी. :)

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  6. ज्ञान जी, माँजी स्वास्थ्य लाभ पाकर शीघ्र ही घर लौटे यही कामना करते हैं. अस्पताल से पोस्ट लिखने का आइडिया बुरा नहीं है, चार साल पहले हमने भी अपने पिताजी के साथ अस्पताल मे रुक कर ऐसे ही लैपटॉप का प्रयोग किया था क्योंकि कमरे से बाहर निकलने की हिम्मत नही जुटा पाते थे.

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