मेरे जैसे अनेक हैं, जो लेखन की दुनियां से पहले कभी जुड़े नहीं रहे। हम पाठक अवश्य रहे। शब्दों के करिश्मे से परिचित अवश्य रहे। पर शब्दों का लालित्य अपने विचारों के साथ देखने का न पहले कभी सुयोग था और न लालसा भी। मैं अपनी कहूं – तो रेलवे के स्टेशनों और यार्ड में वैगनों, कोचों, मालगाड़ियों की संख्या गिनते और दिनो दिन उनके परिचालन में बढ़ोतरी की जुगत लगाते जिंदगी गुजर रही थी। ऐसा नहीं कि उसमें चैलेंज की कमी थी या सृजनात्मकता की गुंजाइश कम थी। फिर भी मौका लगने पर हम जैसों ने ब्लॉगरी का उपयोग किया और भरपूर किया। कुछ इस अन्दाज में भी करने की हसरत रही कि हम कलम के धनी लोगों से कमतर न माने जायें।
असल में यही भावना उस समय भी थी जब हम छात्र जीवन में थे। इंजीनियरिंग का छात्र होने के नाते हमें ह्यूमैनिटीज का एक इलेक्टिव विषय हर सेमेस्टर में लेना होता था। शायद उसमें इंस्टीट्यूट का ध्येय यह था कि हमारा समग्र विकास हो। और उस समय प्रतिस्पर्द्धा इस तरह हुआ करती थी कि ह्यूमैनिटीज के विषयों में भी प्रथम ८-१० स्थान हम इंजीनियरिंग वाले छात्र पाते थे।
स्कूल में हिन्दी के शिक्षक मेरे आदर्श थे। उन्होने हिन्दी के विषय में जोश और उच्च स्वप्न मुझमें भरे थे – जो केवल उस मजबूरी के चलते ध्वस्त हुये जिसमें निम्न मध्य वर्ग की नौकरी के चांस पुख्ता करने को पहली प्राथमिकता माना जाता है।
मैं जानता हूं कि हिन्दी में मुझे कोई लॉरेल मिलने वाले नहीं हैं। हिन्दी पत्रकारिता के लोगों द्वारा भी हमारी सर्जन क्षमता को दोयम दर्जे की माना जाता रहेगा – भले ही कलम का दूषित प्रयोग करने वाले और मेलेशियस या छद्म लेखन वाले इतरा कर अपने को श्रेष्ठ बताने को गाल बजाते रहेंगे।
पर हिंदी ब्लॉगरी से जुड़े लेखन से इतर क्षेत्रों के लोगों की सृजन क्षमता कमतर कदापि नहीं है। और कई मायनों में विविध अनुभवों से परिपक्व होने के कारण उनका लेखन/पोस्ट प्रेजेण्टेशन एक सॉलिड इन्द्रधनुषीय वैविध्य रखता है। और भविष्य में हम लोग अपने कार्य क्षेत्र के काम के दबाव से अपने को ब्लॉलिंग में धीमा भले कर लें; वह धीमा होना हिन्दी के ऑफीशियल लेखन (पढ़ें साहित्यकारी) की चौधराहट की स्वीकारोक्ति और उससे उपजे दैन्य भाव से प्रेरित नहीं होगा।
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हमारी भाषा में बहुत समय तक हिन्दी से विमुखता या प्रवाह हीनता के कारण अटपटापन हो सकता है। पर वह अटपटापन कमजोरी नहीं वैशिष्ठ्य है। हमारी परिवेश की जानकारी, सोच और विश्लेशण के को प्रस्तुत करने के तरीके में बहुत हाई-फाई पुस्तकों/लेखकों के नामों की बैसाखी भले न लगाई जाये; पर उसके न होने से हमारे विचार न दोयम दर्जे के हो जाते हैं और न हमारी पोस्टें। उनकी ओरिजनालिटी को आप अपने अहं से नकार सकते हैं – उनके गुणावगुण के आधार पर नकारपाना सम्भव नहीं होगा।
ब्लॉगिंग तकनीक ने हम जैसे लेखन से दूर रहे को अभिव्यक्ति तथा सृजनात्मकता के प्रयोग के अवसर दिये हैं। और वह सृजनात्मकता शुद्ध लेखन से किसी तरह कमतर नहीं है। इसे स्वीकार न करने वालों को अपने को श्रेष्ठतर बताने के लिये केवल वक्तव्य देना पर्याप्त नहीं होगा। कड़ी मेहनत करनी होगी।
(यह समय समय पर हिन्दी भाषा पर एकाधिकारवादियों द्वारा लिखी जा रही पोस्टों के रिस्पॉंस मे पहले लिखा था। उसे कुछ परिवर्धित कर अब पोस्ट कर रहा हूं। यह हाल ही में छपी किसी पोस्ट पर प्रतिक्रिया नहीं है।)

सही है!!@क्या काकेश जी, टिप्पणियां पढ़ते पढ़ते मैने सोचा कि अपने आप को तीसरा धांसू लेखक घोषित कर दूं फ़िर देखा तो आपने खुद को घोषित कर दिया। अब मुझे टॉप टेन लिस्ट बनाने के लिए अपने को चौथे स्थान पर रखना होगा! ;)
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ब्लॉगिंग तकनीक ने हम जैसे लेखन से दूर रहे को अभिव्यक्ति तथा सृजनात्मकता के प्रयोग के अवसर दिये हैं। और वह सृजनात्मकता शुद्ध लेखन से किसी तरह कमतर नहीं है।आपकी इस बात से हम पूरी तरह सहमत है।
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मै तो इन्हे साहित्य माफिया कहता हूँ। यह देखकर बुरा लग रहा है कि इनकी घुसपैठ अब ब्लाग जगत मे भी हो गयी है। ये लोग कभी भी अपने रिश्तेदारो के अलावा किसी को उठने नही देंगे। पर हमे भी इनसे अलग अपनी पहचान बनानी होगी। भले ही हमारे जिंस मे लेखन न हो। हाल ही मे हुये भाई-भतीजावाद से यह विचार मन मे आया कि यदि आधे से ज्यादा हिन्दी ब्लागर ब्लागिंग बन्द कर दे और दोबारा शुरू करे इस शर्त पर कि इस माफिया को घुसपैठ न करने दिया जाये तो यह स्वयम को जज मान रहे लोगो के लिये तगडा सबक होगा। हिन्दी ब्लाग जगत मे व्याप्त व्यक्ति पूजा को भी अब विराम देना होगा। क्योकि जिसे हम पूज रहे है वही गन्दगी फैला रहा है।
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ये बड़ी भयंकर बीमारी लग गई है हिन्दी ब्लोग्गिंग को सृजनात्मकता की.अच्छी भली चल रही थी ठीक ठाक थी. कुछ दिनों से देख रहा हूँ पुरस्कार, सृजन इन सब के अलावा कुछ चल ही नही रहा है.इसी के डर से तो बीच- बीच मे भाग जाता हूँ. लेकिन कुछ दिन जाते न जाते कीडा फ़िर काटता है और लौट आता हूँ.@पौराणिक जी – दिमाग की चुले हिल गई है क्या? बालकिशन के आने के बाद नंबर १ को छोड़ कर ही बातें किया कीजिये.
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ज्ञान जी, कुछ याद आया… शहद की धार या चलते दरिया की धार कहूँदेखा हर पोस्ट के भावों को बहते इकसार सा !हरेक का अपना अपना मत है. हमें कहीं कोई अटपटापन नहीं लगता , हाँ हम ही कभी कभी भाव ग्रहण करने मे असमर्थ हो जाते हैं.
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जी हम भी हैं लाइन में…पहले धांसू आलोक जी हो लिये और आप ब्रह्मांड के दूसरे सबसे धांसू रचनाकार हैं ही…तो तीसरे तो हम हैं ना..अभी लिख नहीं पा रहे तो क्या..लिखने में आ गये तो सबके छ्क्के छुड़ा देंगे जी..देखिये आत्मनिर्भरता विकास की कुंजी है ..हम भी आत्मनिर्भर हैं जी.
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चंद लेखको की तुलना में जब अनगिनत लोग हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे होंगे तब असली हिन्दी सामने आयेगी, जो जनता की भाषा होगी. हाल ही में मेरी पोस्ट “असली बिलागर..” को साहित्य की भाषामें लिख दिया आपने. जो मैं न कहाँ सका आप सहजता से कह गये. सहमत हूँ.
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मुझे तो यही लगता है कि हिंदी ब्लॉगिंग सृजनात्मकता का विस्फोट है। बेधड़क मस्ती में हम सब लिख रहे हैं, लिखते जा रहे हैं, लिखते जाएंगे। इससे हिंदी की संप्रेषणीयता भी बढ़ेगी और गहराई भी। अरे, बहनेवाले पानी में ही नयापन और ताजगी रहती है। ठहरे हुए पानी में तो कीड़े ही बजबजाते हैं। और, हिंदी साहित्य ठहरा हुआ है, शायद इसमें कोई दो-राय नहीं है।
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कौन कहता है कि आप लेखक नहीं हैं। आप ब्रह्मांड के दूसरे सबसे धांसू रचनाकार हैं। पहला तो मैं हूं। देखिये आत्मनिर्भरता विकास की कुंजी है। जो मानना हो, खुद को मानकर घोषित कर दीजिये। कऊन रोकता है। जो रोके, उससे कहिये कि वह साबित करे कि आप ब्रहमांड के दूसरे सबसे धांसू लेखक नहीं है। सरजी, सारे मिथ टुट रहे हैं। ये रैकेटबाज महंतों के दिन हिंदी में गये। अब काम में दम है, तो आप बम हैं। दो चार चेलों और चार छङ गोष्टियों के सरताज होकर साहित्यकार , लेखक जो बने घूमते हैं, उनका रुदन आप सुनिये। सारे के सारे ये ही कह रहे हैं कि हमें कोई नहीं पूछता।आप जमाये रहिये। ब्रहमांड के सबसे धांसू रचनाकार ने आपको रचनाकार मान लिया है। और किसी की चिंता ना कीजिये। चिंता सिर्फ उसकी कीजिये, जो आपको रचनाकार माने।
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सृजन ही सही है। वैसे सर्जन भी है जिसका मतलब विसर्जन ही होता है। पर आम बोलचाल की भाषा में सर्जन अब शल्य चिकित्सक के लिए प्रयोग किया जा रहा है। कल आप की पोस्ट के टिप्पणीकारों में सर्जन कुछ अधिक थे। वैसे अजित भाई जैसा कोई ब्ल़ॉगर शब्द सामर्थ्य जैसा चिट्ठा प्रारंभ कर दे तो हिन्दी चिट्ठाकारों के लिए एक शब्द-शिक्षण पाठशाला अवश्य ही सृजित हो सकती है।
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