पाशविकता पहले आती है या उसका उद्दीपन


करीब ८-१० दिन पहले शिवकुमार मिश्र की ब्लॉग पोस्ट पर टिप्पणियों में एक झगड़ा चला है – मुम्बई के पांच सितारा होटल के बाहर भीड़ का नारियों के प्रति बर्बर व्यवहार क्या नारियों के टिटिलेटिंग वस्त्रों या व्यवहार से उत्प्रेरित था या नहीं। वस्त्रों को पहनना या पब्लिक में व्यवहार के अपने मानदण्ड हैं और अपने कानून। उनकी परिधि में कुछ आता होगा तो पुलीस संज्ञान में लेगी। अन्यथा मामला मॉब के व्यवहार का है जो पुलीस अपने तरीके से निपटेगी। पर मैं यहां कानून से इतर चर्चा कर रहा हूं।

मुझे एक घटना याद आ रही है। मैं दूसरे वर्ष के इंजीनियरिंग का छात्र था। हम होली मिलन पर घूम रहे थे एक ८-१० के झुण्ड में। अपने अध्यापकों के घर भी होली मिलन के लिये जा रहे थे। हमारे एक एसोशियेट प्रोफेसर थे, कुछ ही समय पहले मासेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से भारत आये थे। उनकी पत्नी उस समय अपने घर पर अकेली थीं। वे बड़े सरल भाव से हम लोगों से मिलीं। गुलाल लगाने की प्रक्रिया में हममें से एक – दो ने कुछ ज्यादा लिबर्टी ले ली। उसपर हम ही में से एक दो संयत और संयमित तत्व गुर्राये। जल्दी से हम लोग वापस लौट आये। उसके बाद वह मस्ती का वातावरण समाप्त हो गया। सभी विचार मंथन की दशा में पंहुच गये थे। कहीं न कहीं हम मान रहे थे कि हमारा ग्रुप व्यवहार सही नहीं था।

नारी के साथ ज्यादती करने की प्रवृत्ति मानव को उसके पशु युग के गुणसूत्रों से मिली है। मॉब या ग्रुप में होने पर वर्जनायें और भी मिट जाती हैं। स्वच्छंदता सीमायें तोड़ने लगती है। कई बार बड़े संयत और प्रबुद्ध लोग भी भीड़ का हिस्सा होने पर गलतियां कर बैठते हैं।

हम सब में पाशविकता है – वह इनेट (innate – जन्मजात) है। पर उसका हिंसात्मक प्रदर्शन मैने तीन कारणों से होते देखा है। पहला भीड़ का हिस्सा होने से हममें व्यक्तिगत संयम टूट जाता है। दूसरे नशीले तत्व हममें सेंस ऑफ प्रोपोर्शन खत्म कर देते हैं। तीसरे, नग्नता या सेक्स के उभार का उद्दीपन (titillation) उसमें ’आग में घी’ का काम करता है। इसमें कौन सही या कौन गलत है की अन्तहीन बहस बहुत ज्यादा फायदेमन्द नहीं होती। पाशविकता या उद्दीपन पर हेयर स्प्लिटिंग मुर्गी पहले आयी या अण्डा जैसी अनरिजॉल्व्ड चर्चा जैसी है।


और दंतनिपोर मेरी पत्नीजी को झांसा दे गया। उसे बुलाया था वाशिंग मशीन ठीक करने के लिये। पूरा भरोसा दिलाया उसने कि उसे वह ठीक करना आता है। “हाल ही में फलानी भाभीजी की वाशिंग मशीन ठीक की है”। उसके बाद मशीन खोल कर देखा कि उसके पानी के पाइप कट गये हैं, उनमें लीकेज है। नये पाइप लाने को २५० रुपये ले कर वह “जानसन गंज गया”। चार दिन हो गये; लौटा नहीं है। वाशिंग मशीन खुली छोड़ गया है।

भरतलाल कयास: गंगा के कछार में दारू बनती-बिकती है। ढ़ाई सौ ठिकाने लगाने में अकेले को ४-५ दिन लगेंगे। दंतनिपोर उसके बाद अवतरित होगा। अभी तो अपने डेरा पर भी नहीं आया था रात में।

भरतलाल ऑब्जर्वेशन: “दंतनिपोर आये। काम त करबइ करे। पर रोवाइ-रोवाइ करे। काहेकी पइसा ओकरे हाथे आइ गबा” (दंतनिपोर आयेगा, काम तो करेगा ही; पर करेगा रुला-रुला कर। उसके हाथ में पैसा जो आ गया है)।

‍दंतनिपोर एक स्वेटर पहन कर आया था वाशिंग मशीन ठीक करने। पूरी बांह का नीला-सफेद और लगभग नया। देख कर भरतलाल का कथन – “वाह, झक्कास! कहीं से मस्त स्वेटर पा गया है दंतनिपोरवा।”


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

15 thoughts on “पाशविकता पहले आती है या उसका उद्दीपन

  1. सही विश्लेषण है आपका!!दिनेशराय जी के कथन से सहमत हूं। हाल ही मे रवि रतलामी जी की एक पोस्ट आई थी कि गलतियों का ठीकरा जीन पर फोड़ा जा सकता है।खैर!!वाकई हममे बहुत कुछ है अभी भी जो यह साबित करता है कि हम पहले पशु थे। कुछ मौकों पर हमारे अंदर का पशु बाहर आना चाहने लगता है और तब यही सब होता है!

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  2. दंत निपोरजी बहुत इंटरेस्टिंग जीव हैं जी। ऐसे लोग विकट जीवट वाले होते हैं। झूठ बोलकर जहां से पैसे लिये, वहां पर दोबारा जाने में संकोच नहीं होता। घीसू माधव कफन फेम के टाइप के लोग हैं यह। पर यह भी मानवीय चरित्र का एक हिस्सा है। मिसेज पांडेजी को समझाइये कि परेशान ना हों। हमारे हिस्से के करोड़ों रुपये सीनियर नेता ले जाते हैं, और दंत भी नहीं निपोरते। ये तो बहुत जूनियर टाइप है। क्षमा बड़ेन को चाहिए, दंतनिपोर को उत्पात

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  3. बिल्कुल सत्य वचन है। भीड़ का हिस्सा होना बुद्धिनाशक है।

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  4. नारी के साथ ज्यादती करने की प्रवृत्ति मानव को उसके पशु युग के गुणसूत्रों से मिली है। SIR Please If you say naari then use nar not manav because manav means both nar , naari and even those who dont fall into these 2 categories . and manav is human but what happens with naari by nar as even written in your post is neither human nor humane with due regards rachna

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  5. It is very natural to get excited to see a sexy person of opposite sex.Excited here doesn’t always mean sexually.But this excitement turns into shameful mob behavior only when you think nothing can be done against you, which is what most youngsters believe in India.Titillation is very rarely a reason of starting this kind of behavior. A mob would very well go ahead and rape Burqa clad women if they are not scared of law (feel powerful). They can very well drive their new car on people sleeping in footpath.Intoxication plays a very small part only and only when people are not scared.Sexually frustrated society with no respect of law cannot do better than this Pandey Jee.I do not agree that intoxication or titillation is a reason for this kind of behavior.

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  6. ज्ञान जी सही विश्‍लेषण है । पर ज़रा इलाहाबादी दंतनिपारों से बचिए । किसी स्‍थाई दुकान से कोई ढंग का मेकेनिक पकड़ा करिए भई । वैसे आपका कैमेरा बड़ा तत्‍पर है । काम की हर चीज इसकी कैद में आ जाती है ।

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  7. पाशविकता के इस जीन से पूर्ण मुक्ति मिले तो मनुष्य पूर्ण हो। अभी तो लगता है संक्रांति काल है। वैसे देव भी इस से मुक्त नहीं हो सके है। इन्द्र को इसी ने देव होते हुए भी अपूज्य बना दिया। उन के स्थान पर छोटे भ्राता विष्णु को स्थापित करना पड़ा। आप के विश्लेषण अदभुत होते हैं।

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  8. Pande ji, you have given an insight into this mad, bad world of mob mentality…..May God infuse sensitivity in all His creations so that the world becomes a wonderful place to live in total ecstasy !!

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