एक ब्लॉग मित्र ने कल एक पोस्ट देखने और टिप्पणी देने का ई-मेल किया। मैने पोस्ट देखी। बहुत अच्छी पोस्ट थी। बहुत मेहनत से बनाई – संवारी गयी। जिसे पढ़ कर “वाह” की फीलिंग हो। पर जब मैं टिप्पणी देने लगा तो पाया कि टिप्पणी करने के साथ एक बॉक्स पर “टिक” लगा कर इस पर सहमति देनी थी कि मैं टर्म्स ऑफ यूसेज को स्वीकारता हूं। जब टर्म्स ऑफ यूसेज देखे तो सिद्धन्तत: टिप्पणी न करना उपयुक्त समझा। वे टर्म्स ऑफ यूसेज थे –
| By submitting your comments we reserve the right, at our sole discretion, to change, modify, add, or delete your comments and portions of these “Terms of Use” at any time without further notice. (आप की टिप्पणी या उसके अंश को बदलने, परिवर्धित/परिवर्तित करने, जोडने या हटाने के लिये हम स्वतंत्र हैं, और इन टर्म्स ऑफ यूसेज में भविष्य में बिना नोटिस के परिवर्तन किया जा सकता है!) |
पता नहीं अन्य जगह जहां टिप्पणियां कर रहे हैं, वहां भी इस प्रकार की शर्तें हैं क्या? ब्लॉगस्पॉट में तो या आप टिप्पणी करने वाले की टिप्पणी पूरी तरह रख सकते हैं, या उड़ा सकते हैं। उनमें अपनी चोंच नहीं घुसा सकते। वर्डप्रेस और अन्य ब्लॉग सेवाओं में क्या है – क्या आप बतायेंगे?
यह तो तय है कि इस प्रकार की टर्म्स ऑफ यूसेज पर टिप्पणी करना ठीक नहीं है, जहां आपकी बात यथावत रखने की बजाय आपके मुंह में शब्द ठूंस दिये जाने की सम्भावना बनती हो। फ्री डोमेन के ब्लॉग्स या पोर्टल्स पर टिप्पणी करना तो खतरनाक लग रहा है!
आपने इस बारे में सोचा है? समीर लाल जी की तरह प्योर साधुवादी टिप्पणियां तो कहीं भी ठेल दें, पर हमारे जैसे जो कभी कभी भिन्नाई टिप्पणी भी करते हैं – उनको तो यह शर्तें हजम नहीं हो रहीं!
कल भुवनेश शर्मा जी ने स्लैंग्स पर कम्यूनिटी ब्लॉग बनाने का संकल्प किया है। वे शीघ्र कर डालें। फॉर्मेट अर्बनडिक्शनरी.कॉम सा रखें तो उत्तम। लोगों से ई-मेल से प्रविष्टियां लेकर, उचित मॉडरेशन कर पोस्ट कर सकते हैं। अश्लील वाले स्लैंग्स न रखें तो ज्यादा जमेगा – हिन्दी में अभी मानसिकता अश्लील पढ़ने की कम ही है।

कभी – कभी तो मन में अजीबोगरीब बातें आती रहती है ,कि इतने नियम- क़ानून में आबद्ध होकर टिपियाने का क्या मतलब ? आप के पास आ कर नयी बातो का पता चलता हे!आपका आभार !
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वाकई तुस्सी ग्रेट हो जी, खुदई आलस नई करते आप तो, इधर उधर भटकते रहते हो नेट पे जिससे आपको एक से एक बातें/टॉपिक मिलता रहता है लिखने का!!
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ये तो बहुत ही ग़लत बात है. टिपण्णी भी editable?
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बिल्कुल दिनेश जी से सहमत हूँ। और ब्लागस्पाट द्वारा दी गयी सुविधा से भी। हिन्दी ब्लाग जगत टिप्पणियो के दुरुपयोग के बहुत से मामले झेल चुका है। ऐसे मे ब्लागस्पाट की नीतियो की अहमियत और बढ जाती है।
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ज्ञानजी,मे उन्मुक्त ओर दिनेश जी की बात से सहमत हु, बाकी आप के पास आ कर सच मे हमारे ज्ञानचक्षु खुल जाते हे, बहुत सी नयी बातो का पता चलता हे धन्यवाद
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ये तो बिल्कुल ही नई बात आज पढने मे आई है।
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kamal hai sahab logo ka bhi …..apr pandey ji aapne fir bhi yahan apni halchal me un par tippani kar di ham to aise logo se ukta kar hi vapas aa jate hai .
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बाप रे ! इतने नियम कानून टिपियाने के लिये ?
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रोहिला जी, टिप्पणी पर लिंक देने के लिये उसी तरह से html कोड लिखा जाता है जैसा कि चिट्ठी पोस्ट करते समय किया जात है। ब्लॉगर यह करने की अनुमति देता है पत कुछ डोमेन यह सुविधा नहीं देते हैं।
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टिप्पणी के विषय में दिनेश जी की राय से पूर्णतः सहमत। अलबत्ता, ब्लॉगस्पॉट वाले यदि टिप्पणीकार को अपनी टिप्पणी को संपादित करने की सुविधा भी दे देते तो अच्छा हो जाता।नीरज रोहिल्लाजी, रही बात टिप्पणी में लिंक देने की तो इसको ‘सीखने के लिए’ अपनी new post की विण्डो खोलकर एक काल्पनिक लिंक बनाइये फिर इस विंडो में ऊपर लगे आइकन edit HTML को क्लिक करके देखिये। आपको लिंक वाले शब्द के आगे-पीछे कुछ संकेताक्षर और अभीष्ठ URL लिखा हुआ दिख जायेगा। बस इसीको कॉपी करके रख लीजिये। अब जहाँ भी लिंक देना हो, इन संकेतों को इसी क्रम में घुसेड़ दीजिये।बस लग गया लिंक।
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